20 मई 1983 की सुबह की बात है, पंजाब के लुधियाना शहर की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) के 1200 एकड़ के परिसर में माहौल थोड़ा शांत और सुस्त था. इसी शांत माहौल में एक शख्स अपनी रॉयल एनफील्ड 350 से पहुंचता है. इसपर कोई और नहीं, बल्कि ओलंपिक के तीन बार पदक जीत चुके मशहूर हॉकी खिलाड़ी पृथिपाल सिंह सवार थे. उन्होंने 1960 ओलंपिक में सिल्वर, 1964 में गोल्ड और 1968 में कांस्य पदक जीता था. 1964 टोक्यो ओलंपिक का स्वर्ण उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी. 1968 में वे भारतीय हॉकी टीम के संयुक्त कप्तान भी थे. वे यूनिवर्सिटी कैंपस में ‘पृथिपाल’ या ‘पिर्थी पाजी’ के नाम से जाने जाते थे.
सफेद कुर्ते, हल्के हरे रंग की पगड़ी और ग्रे पतलून में सजे पृथिपाल ने अपनी रॉयल एनफील्ड को थापर हॉल के पास पेड़ की छांव में खड़ा किया. उसी समय, किसी ने पीछे से धीरे से आवाज दी –"पाजी" ये सिर्फ एक धीमा शब्द था- एक चेतावनी जैसा.
जैसे ही पृथिपाल पीछे मुड़े उनके चेहरे पर किसी ने गोली चला दी. सफेद शर्ट पर खून का गहरा लाल धब्बा उभर आया. उनके पैर लड़खड़ाए, हाथ बाइक से फिसल गए. अगले ही पल, दूसरे हमलावर ने पीछे से एक और गोली मारी. दोनों हमलावर पैदल चले गए. फिर एक रुका और उसने देखा की पृथिपाल की सांसें शायद अभी चल रही हैं. वह फिर आया और दो गोली और मार दी.
गोलियों की आवाज से परिसर में मौजूद दर्जनों लोग जमा हो गए. लेकिन तब तक हमलावर आसानी से भाग निकले. लोग पृथिपाल को लेकर पास के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज पहुंचे, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
इस घटना ने पूरे पंजाब को झकझोर दिया. पुलिस, प्रशासन और राजनीति जगत में खलबली मच गई. दोपहर तक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक यह खबर पहुंच चुकी थी.
क्यों हुई थी पृथिपाल सिंह की हत्या
असल में, ये एक लंबे तनाव का नतीजा था जो यूनिवर्सिटी में पिछले पांच वर्षों से चल रहा था. दरअसल, 11 मई को पियारा सिंह नामक एक शख्स की हत्या हुई थी, जिसके अंतिम संस्कार में छात्र नेता अजयब सिंह ने उसकी राख उठाकर कसम खाई थी की वो पृथिपाल को खत्म करेंगे.
पृथिपाल को भी अंदेशा था कि उनकी जान को खतरा है. उन्होंने पुलिस और कुलपति को पत्र लिखकर 20 मई की तारीख का ज़िक्र किया था. फिर भी, सुरक्षा के नाम पर 6-8 पुलिसकर्मी तो मौजूद थे, लेकिन वे सही जगह तैनात नहीं थे. पृथिपाल खुद भी खतरे को हल्के में ले गए. उन्हें सलाह दी गई थी कि कार से आया करें, लेकिन उन्होंने अपनी रॉयल एनफील्ड से आना ही चुना. शायद वे सोचते थे कि कुछ छात्र उनका क्या बिगाड़ लेंगे.
उनकी जेब में एक कागज मिला, जिसमें 16 छात्रों के नाम थे- जो एक अन्य छात्र ने उन्हें दिए थे. लेकिन बाद में अस्पताल के अधिकारी ने कोर्ट में कहा कि उसने यह लिस्ट कभी पुलिस को नहीं दी.
गवाह एक-एक कर मुकर गए. किसी ने पहले नाम लिया, फिर कहा- "शायद मैं गलती कर रहा था". पुलिस को उनके घर से एक फाइल भी मिली, जिसमें यूनिवर्सिटी में फैले भ्रष्टाचार के दस्तावेज थे, जिसमें छात्रों, शिक्षकों और कुलपति अमरीक सिंह चीमा की मिलीभगत का जिक्र था. पृथिपाल इसे गवर्नर तक पहुंचाना चाहते थे. उन्हें 8 जून को अपॉइंटमेंट भी मिल चुका था, लेकिन वह दिन कभी नहीं आया.
आरोपी बछीत्तर सिंह ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया, हत्या की बात कबूली, हथियार तक पुलिस को दिखाया. लेकिन बाद में उसने कहा कि ज़बरदस्ती उससे यह बयान लिया गया था. मामला खारिज हो गया.
(रिपोर्ट- संदीप मिश्र, वरिष्ठ खेल पत्रकार)
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