गड्ढे में फंसी टीम इंडिया..! गुवाहाटी में गौतम गंभीर का ‘लिटमस टेस्ट’, अब हारे तो गाज गिरनी तय?

कोलकाता टेस्ट में भारत की करारी हार ने टीम मैनेजमेंट, पिच रणनीति और कोच गौतम गंभीर की सोच पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. पिछले एक साल में घरेलू मैदान पर टीम इंडिया चार टेस्ट हार चुकी है, जो पिछले 25 सालों की तुलना में बेहद चौंकाने वाला गिरावट है.

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क्या गंभीर की कोचिंग पर तलवार लटक गई है? (Photo, PTI) क्या गंभीर की कोचिंग पर तलवार लटक गई है? (Photo, PTI)

कुमार केशव / Kumar Keshav

  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:27 AM IST

टीम इंडिया की कोलकाता टेस्ट में करारी हार हुई. पिछले एक साल में घरेलू सरजमीं पर टीम की ये चौथी हार है. ये सिलसिला बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी (BGT) से ठीक पहले शुरू हुआ था, जब न्यूजीलैंड ने भारत को तीन लगातार मैचों में शिकस्त देते हुए इतिहास रचा था. इसके बाद वेस्टइंडीज को भारत ने घर में 2-0 से पराजित किया. लेकिन वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियंस के खिलाफ जिसका डर था, वही हुआ.

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ईडन गार्डन्स की सूखी पिच पर साउथ अफ़्रीकी स्पिनर्स की बलखाती गेंदों का सामना करने में भारतीय बल्लेबाजों को पसीना आ गया. नतीजा ये रहा कि चौथी पारी में टीम सवा सौ रन भी नहीं बना पाई. इसके बाद पिच और प्लेइंग 11 पर चर्चा हो रही है और आगे भी होती रहेगी, लेकिन क्या इस हार का कोच गौतम गंभीर के भविष्य पर भी कोई असर होगा, ये अहम सवाल है.

आजतक रेडियो के क्रिकेट पॉडकास्ट 'बल्लाबोल' में सीनियर जर्नलिस्ट निखिल नाज़ और राहुल रावत ने कहा कि गौतम गंभीर के परफॉरमेंस का आकलन होना चाहिए. कारण ये है कि इस सदी की शुरुआत से लेकर अबतक पच्चीस सालों में इंडियन टीम घरेलू पिचों पर गिनती के मैच हारी है. मगर कुछ महीनों के अंदर ही चार मैच गंवा देना भारतीय क्रिकेट के लिए एक बड़ा झटका है. अब 22 नवंबर से शुरू हो रहा गुवाहाटी टेस्ट गंभीर के लिए बड़ी परीक्षा है.

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डर या जानबूझकर: गड्ढे में क्यों फंसे?

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ सालों में इंडियन टीम का गड्ढे वाली पिचों पर फंसने का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि चेतेश्वर पुजारा से लेकर अजिंक्य रहाणे, रोहित शर्मा और विराट कोहली तक का टेस्ट करियर इसी 'गड्ढा-प्रेम' की भेंट चढ़ा है. बावजूद इसके गौतम गंभीर ने इस तरह की पिच की मांग की, जो पहले दिन से टर्न कर रही थी. शायद इसके पीछे उनकी ये सोच रही होगी कि स्पिन बॉलिंग के लिए मददगार पिच पर अफ्रीकी बल्लेबाज 'कथक' करने लगेंगे और भारतीय बल्लेबाजी उनसे बेहतर साबित होगी. हालांकि, हुआ इसके ठीक उलट.

टॉस का सिक्का भी साउथ अफ़्रीका के पक्ष में उछला और अफ्रीकी स्पिनर्स को अतिरिक्त लाभ दे गया. इस सीरीज से पहले प्रैक्टिस मैच में साउथ अफ्रीका की ए टीम ने 400 से ज्यादा का टारगेट चेज कर डाला, क्या इससे डरकर गौतम गंभीर ने टर्निंग ट्रक की मांग की.  ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गंभीर ने खुद अपनी टीम को मुश्किल में धकेल दिया.

व्हाइट बॉल माइंडसेट से नुकसान

निखिल नाज़ का कहना है कि पिछले कुछ समय से इंडियन मैनेजमेंट टेस्ट क्रिकेट में भी व्हाइट बॉल क्रिकेट का फॉर्मूला आजमाती दिख रही है. प्लेइंग 11 में लगातार बिट्स एंड पीसेज प्लेयर्स को स्पेशलिस्ट खिलाड़ियों को तरजीह दी जा रही है. वॉशिंगटन सुंदर, नीतीश रेड्डी, अक्षर पटेल, हर्षित राणा, शार्दूल ठाकुर जैसे खिलाड़ी टीम में जगह पा लेते हैं और इसके चलते कुलदीप यादव, प्रसिद्ध कृष्णा, आकाशदीप जैसे बॉलर्स को बेंच गर्म करना पड़ता है.

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ऑलराउंडर्स के नाम पर विशेषज्ञ बल्लेबाज़ों को भी बाहर बैठना पड़ता है. सरफराज खान जैसे खिलाड़ी जो स्पिनर्स को अच्छा खेलते रहे हैं, उन्हें 'ए' टीम के लायक भी नहीं समझा जा रहा है. आठवें नंबर तक बल्लेबाज भर देने का मोह टीम को रेड बॉल फॉर्मेट में फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है.

सुंदर को नंबर तीन पर भेजने का दांव

चेतेश्वर पुजारा के रिटायरमेंट के बाद 'नंबर तीन' की पहेली अबतक सुलझी नहीं है. टीम इंडिया ने इस दौरान कई प्रयोग कर लिए, लेकिन कोई ख़ास सफलता मिलती नहीं दिख रही है. इंग्लैंड दौरे पर करुण नायर सिलेक्टर्स की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे तो उनकी 'सुई' साई सुदर्शन पर अटकी. फर्स्ट क्लास में सामान्य औसत रखने वाले साई सुदर्शन को लेकर कहा गया कि उन्हें लंबी रस्सी दी जाएगी. हालांकि, वेस्टइंडीज सीरीज के बाद उन्हें अंतिम एकादश में जगह नहीं मिली और वॉशिंगटन सुंदर को उनकी जगह बैटिंग कराई गई.

निखिल नाज़ के मुताबिक, वॉशिंगटन सुंदर अच्छे बल्लेबाज़ हैं और उनकी तकनीक भी अच्छी है. मगर इस फैसले से जो संकेत मिलते हैं वो टीम और सुंदर दोनों के लिए अच्छे नहीं हैं. एक तो ये कि नंबर तीन जो कभी द्रविड़ और पुजारा जैसे सॉलिड बल्लेबाजों की जगह मानी जाती थी, वहां कोई ऑलराउंडर भी  थोड़े बहुत रन बनाकर अपने आप को खेलता हुआ देख सकता है.

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दूसरा, इस कदम से 'बॉलर' सुंदर का नुकसान हो रहा है. क्योंकि छठे बॉलर के तौर पर उनका इस्तेमाल कम ही होगा. हमने कोलकाता टेस्ट में देखा कि वो सिर्फ एक ओवर की बॉलिंग कर पाए. तो आगे चलकर सुंदर को सिर्फ उनकी बैटिंग के आधार पर ही जज किया जाएगा. यदि दो-तीन मैचों में उनके रन नहीं आते हैं तो टीम में उनकी जगह पर भी तलवार लटकी रहेगी. 

 

पॉडकास्ट में दोनों ही एक्सपर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सहवाग, द्रविड़, सचिन, लक्ष्मण और गांगुली भारतीय टीम में इतने बरस तक इसलिए नहीं खेले कि वो बोलिंग भी कर सकते थे. उनकी दक्षता बैटिंग में थी और उनकी बॉलिंग टीम के लिए एक बोनस. गौतम गंभीर इस बारीक फर्क को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि वाइट बॉल अप्रोच के साथ गंभीर के कार्यकाल में टीम इंडिया किसी भी बड़ी टीम के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीत नहीं पाई है. सिर्फ वेस्टइंडीज और बांग्लादेश जैसी टीमों के विरुद्ध इंडिया को जीत नसीब हुई है. 

गुवाहाटी में भी फंसेंगे गंभीर?

कोलकाता के बाद गुवाहाटी में इंडिया और साउथ अफ्रीका के बीच सीरीज का दूसरा और आखिरी मुकाबला है. ऐसे में सबसे ज्यादा दबाव गौतम गंभीर के ऊपर होगा. ईडन गार्डन में रैंक टर्नर की मांग कर उसमें फंसे गंभीर गुवाहाटी में कैसी पिच की मांग करेंगे. पहले टेस्ट के बाद  इंडियन कोच ने पिच की बुराई नहीं की, बचाव ही करते दिखे. हार का ठीकरा बल्लेबाजों के सिर फोड़ा. तो ऐसे में क्या गुवाहाटी में एक बार फिर वो 'गड्ढे' वाली पिच की मांग करेंगे? अगर वो ऐसा करते हैं तो भारत के ऊपर एक बार फिर इस गड्ढे में गिरने का डर बना रहेगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्होंने कोलकाता में ऐसी गलती क्यों की?  

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बहरहाल, टीम इंडिया को अगर इस टेस्ट में जीत नहीं मिलती है तो इस बात की पूरी संभावना है कि गौतम गंभीर के ऊपर गाज गिर सकती है. राहुल रावत की मानें तो वक्त आ गया है जब भारत को रेड बॉल क्रिकेट में अलग कोच तलाशने की जरूरत है और वीवीएस लक्ष्मण एक उपयुक्त विकल्प साबित हो सकते हैं.  

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