यह विचार व्यक्त करता है कि केवल मंदिर या मस्जिद में बैठकर और कुछ शब्द बोलकर सनातन या धर्म का नाम लेना काफी नहीं है. हमें उन लोगों से सवाल करना चाहिए जो जंगल राज, मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम के भेदभाव को भूलकर बिहार को वास्तविक रूप से क्या योगदान दे.