मस्तिष्क के 10 अलग-अलग हिस्से ह्यूमन साइट से जुड़े होते हैं. विजुअल कॉर्टेक्स इसमें मुख्य है. ये ब्रेन के पीछे का बड़ा हिस्सा होता है, जो देखने में मदद करता है. इसी तरह का काम अमिग्डेला भी करता है, लेकिन इसका असल काम है देखने को यानी गेज को प्रोसेस और डिटेक्ट करना. अलग किसी के देखने पर लगे कि खतरा है तो इंसान तुरंत अलर्ट हो जाता है. यहां तक कि हमारे आसपास खड़े लोगों की नजरें अगर यहां से वहां घूमती हैं तो इसे भी हमारी आंखें फॉलो करती हैं.
बच्चे भी आंखों की एक्टिविटी समझने लगते हैं
वयस्कों ही नहीं, नवजातों में भी गेज डिटेक्शन देखने में आता है. साइंस डायरेक्ट में इन्फेंट बिहेवियर एंड डेवलपमेंट नाम के शोध में आंखों के घूमने या देखने को पकड़ने को मानवीय विकास का अहम हिस्सा माना गया, जो कि 5 दिन के शिशु तक में देखने में आता है. वे भी आई मूवमेंट को समझने लगते हैं.
बिना देखे कैसे पता लग जाता है?
अक्सर किसी के घूरने पर हमें बगैर देखे भी पता लग जाता है. गेज डिटेक्शन या गेज परसेप्शन के पीछे पूरा साइंस है. दरअसल इंसानों की आंखें बाकी पशु-पक्षियों से काफी अलग हैं. आंखों की पुतली, जिसे प्यूपिल कहते हैं, के आसपास का सफेद हिस्सा स्क्लेरा काफी बड़ा होता है. ये इतना फैला हुआ है कि अगर पुतलियां किसी भी दिशा में घूमेंगी या उनमें कोई भी बदलाव होगा, जैसे सिकुड़ना या फैलना तो बड़े सफेद हिस्से के चलते ये आसानी से पकड़ में आ जाएगा. वहीं बाकी पशुओं में प्यूपिल ही ज्यादा जगह घेरता है, जबकि स्क्लेरा के लिए कम स्पेस रहता है. ये इसलिए हुआ होगा कि शिकारी पशु बिना भास दिए अपना शिकार पकड़ सकें.
मस्तिष्क देता है इशारा
ये तो हुई तब की बात, जब हम किसी की आंखों और उसमें हो रहे बदलाव को सीधे देख सकें. लेकिन बिना देखे कैसे पता लगता है कि कोई हमें देख रहा है, इसके पीछे का सीधा कारण वैज्ञानिक एमिग्डेला को मानते हैं. वे मानते हैं कि हमारा ब्रेन लगातार हमें किसी खतरे के लिए सचेत करता होता है. गेज डिटेक्शन उसी का हिस्सा है. स्टडीज ये भी मानती हैं कि हम आंखों की परिधि के लंबे दायरे में सिर्फ किसी के बॉडी मूवमेंट के आधार पर भी पता कर पाते हैं कि किसी की नजरें हमपर हैं.
करंट बायोलॉजी में साल 2013 में छपा एक अध्ययन दावा करता है कि इंसान चूंकि डरे हुए होते हैं इसलिए वे मानकर चलते हैं कि कोई लगातार उन्हें देख रहा है. ह्यूमन्स हैव एक्सपेक्टेशन दैट गेज इज डायरेक्टेड टुवर्ड देम नाम से छपे अध्ययन में कहा गया है कि कोई हमें देख रहा है, ये जान लेने में कोई विज्ञान या सिक्स्थ सेंस नहीं, बल्कि यही मानवीय डर है. अगर आसपास कोई हो तो हम मान लेते हैं कि वो हमें देख ही रहा होगा, और अक्सर ऐसा सही भी हो जाता है.
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