कैसे कम होगी धरती की गरमी, क्या विकसित देश दिखाएंगे नरमी? ब्राजील में मंथन जारी

COP30 सम्मेलन से उम्मीद लगाई जा रही है कि तमाम देश विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अहम कदम उठाएंगे. यह इस लिहाज से भी अहम माना जा रहा है कि पिछला साल अब तक का सबसे गर्म साल दर्ज किया गया था. इसके प्रभाव पहले ही दुनिया भर में तूफान, बाढ़, आग और भीषण गर्मी के रूप में दिख रहे हैं.

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ब्राजील में 10 से 21 नवंबर तक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए COP30 की बैठक. ब्राजील में 10 से 21 नवंबर तक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए COP30 की बैठक.

चंदन मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

क्राइम थ्रिलर की दुनिया में मशहूर लेखिका अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास का एक किरदार है, हरक्यूल पोयरो. पोयरो का मानना था कि अपराध को सुलझाने की असली ताकत हमारी ईमानदार सोच और तार्किक तरीके से नतीजे तक पहुंचना है.

अगर हमें अपनी धरती को क्लाइमेट चेंज और एक्स्ट्रीम वेदर से बचाना है, तो दुनिया को इसी फॉर्म्युले को अपनाने की जरूरत है. संभवतः इसी मसले को सुलझाने को लिए दुनिया का सबसे बड़ा जलवायु सम्मेलन COP30 ब्राज़ील के शहर बेलेम में शुरू हो गया है. यहां 190 से अधिक देशों के प्रतिनिधि इकट्ठा हुए हैं. 10 नवंबर से शुरू हुए इस सम्मेलन में ये सभी प्रतिनिधि 21 नवंबर तक गहन वार्ताओं में जुटे रहेंगे.
 
COP30 सम्मेलन से उम्मीद लगाई जा रही है कि तमाम देश विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अहम कदम उठाएंगे. यह इस लिहाज से भी अहम माना जा रहा है कि पिछला साल अब तक का सबसे गर्म साल दर्ज किया गया था. इसके प्रभाव पहले ही दुनिया भर में तूफान, बाढ़, आग और भीषण गर्मी के रूप में दिख रहे हैं.
 
इस समस्या से निजात पाने का अहम तरीका है कि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का जो लक्ष्य तय किया गया था, उसे हर हालत में हासिल किया जाए. दरअसल, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की Emissions Gap Report-2024 कहती है कि अगर दुनिया की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है तो 2030 तक ग्लोबल एमिशन में 2019 की तुलना में 43% की कमी करनी होगी. हालांकि, अभी जो नीतियां अपनाई जा रही हैं हैं, उस हिसाब से दुनिया इस समय सिर्फ 4 से 10% कमी की दिशा में आगे बढ़ रही है. इसका मतलब है कि हमारी रफ्तार बहुत धीमी है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो 1.5°C की सीमा 2030 से पहले ही टूट जाएगी. इससे मौसम से जुड़ी घटनाएं जो बहुत नुकसान पंहुचा सकती हैं. मसलन- बाढ़, सूखा, और हीटवेव और भी तेज़ हो जाएंगी.
 
भारत को क्यों है सोचने की जरूरत
अगर देखा जाए तो क्लाइमेट चेंज से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले 10 बड़े देशों में भारत का नाम भी शुमार है. बुधवार को ही जारी एक रिपोर्ट में भारत के अलावा दूसरे संवेदनशील देशों पर लू, तूफान और बाढ़ जैसी चरम मौसम (एक्सट्रीम वेदर) की घटनाओं के असर को प्रमुख कारक बताया गया है. पिछले दिनों पंजाब में आई बाढ़ इसकी मिसाल है. बताया गया कि पंजाब में जो विनाशकारी बाढ़ आई वह करीब 37 साल बाद आई, जो 1988 के बाद से सबसे भीषण थी. फिर साइक्लोन मोंथा ने दक्षिणी और पूर्वी राज्यों में कहर बरपाया.
 
अब तक दुनिया भर के देशों में क्यों नहीं बन पाई सहमति
दरअसल, ग्लोबल तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाना बेहद जरूरी है. इसके लिए सभी देशों का एकजुट आना जरूरी है. लेकिन मतभेद भी यहीं से चलता आ रहा है. दरअसल, एक रिपोर्ट के अनुसार, कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन करने वालों में 70 फीसदी पश्चिमी देश हैं. भारत जैसे विकासशील देश अक्सर कहते रहे हैं कि इससे उनकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है. वहीं, विकसित गेंद इधर के पाले में डाल देते हैं.
 
COP30 से कितनी हैं उम्मीदें
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, मौजूदा नीतियों के हिसाब से दुनिया 2.8 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की दिशा में बढ़ रही है. यदि सरकारें अपने भविष्य के नए वादों को पूरा कर पाती हैं, तो इस वृद्धि को 2.3 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है. एक तरह से यह सकारात्मक तो है, क्योंकि एक दशक पहले पृथ्वी लगभग 4 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की राह पर थी. लेकिन गर्मी का यह घटा हुआ स्तर भी व्यापक विनाश का कारण बन सकता है और पृथ्वी को विनाशकारी मोड़ की ओर धकेल सकता है.
 
इसलिए फिर हमें वही बात याद रखने की जरूरत है, जो अगाथा क्रिस्टी का किरदार हरक्यूल पोयरो अपने आपराधिक मामलों को सुलझाने के लिए करता है. हमें भी क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए उसी दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है यानी ईमानदार सोच और तार्किक तरीके से जलवायु परिवर्तन के कारकों को पर काबू पाना.

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