अंटार्कटिका में बर्फ के नीचे नई 85 एक्टिव झीलें मिली हैं... इनकी खोज दुनिया के लिए खतरा!

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की बर्फ के नीचे 85 नई 'सक्रिय' झीलें खोजीं. 10 साल के सैटेलाइट डेटा से पता चला. ये झीलें भरती-खाली होती रहती हैं, ग्लेशियरों की गति बढ़ाती हैं. इससे समुद्र जलस्तर प्रभावित होता है. कुल सक्रिय झीलें अब 231 हो गई है.

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यूरोपियन स्पेस एजेंसी के क्रायोसैट सैटेलाइट ने इन झीलों की खोज की है. (Photo: ESA) यूरोपियन स्पेस एजेंसी के क्रायोसैट सैटेलाइट ने इन झीलों की खोज की है. (Photo: ESA)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 25 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:41 PM IST

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की मोटी बर्फ की चादर के नीचे 85 नई झीलों की खोज की है. ये झीलें पहले किसी को पता नहीं थीं. दस साल के सैटेलाइट डेटा से यह राज खुला. ये झीलें 'सक्रिय' हैं, यानी ये समय-समय पर खाली हो जाती हैं और फिर भर जाती हैं.

इससे उनका आकार और शेप महीनों-वर्षों में बदलते रहते है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे ग्लेशियरों की स्थिरता प्रभावित होती है. बर्फ का घिसाव रुक-रुक कर होता है, जो वैश्विक समुद्र स्तर पर असर डाल सकता है.

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यह खोज यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के क्रायोसैट-2 सैटेलाइट के डेटा से हुई. स्टडी को 19 सितंबर को 'नेचर कम्युनिकेशंस' जर्नल में छापा गया. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स की प्रोफेसर अन्ना होग ने कहा कि सबग्लेशियल झील क्षेत्रों का भरना-खाली होना देखना रोमांचक था. इससे पता चला कि अंटार्कटिका की पानी की गतिविधियां पहले सोचे से कहीं ज्यादा डायनामिक हैं. हमें इन झीलों की लगातार निगरानी करनी होगी.

झीलों की डिटेल: कितनी पुरानी थीं और अब क्या?

पहले अंटार्कटिका में 146 सक्रिय सबग्लेशियल झीलें जानी जाती थीं. अब इस खोज से कुल संख्या 231 हो गई. स्टडी लीड अथॉर सैली विल्सन ने बताया कि झीलों के भरने-खाली होने को देखना बहुत मुश्किल है. दुनिया भर में सिर्फ 36 बार ये नजारा देखा गया था. हमारी स्टडी में 12 और नजारे मिले, कुल 48 हो गए. 

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ये झीलें बर्फ के नीचे छिपी हैं. गर्मी धरती के अंदर से ऊपर आती है या बर्फ का बेडरॉक पर घिसाव गर्मी पैदा करता है. इससे बर्फ पिघलकर पानी बनता है. झीलें बन जाती हैं. कभी-कभी ये झीलें अचानक खाली हो जाती हैं. पानी का बहाव बर्फ के नीचे चिकनाई देता है. इससे बर्फ तेजी से बेडरॉक पर फिसलती है. महासागर की ओर बढ़ जाती है.

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कैसे हुई खोज? सैटेलाइट की जादुई नजर

स्टडी के लिए 2010 से 2020 तक का डेटा इस्तेमाल किया गया. क्रायोसैट-2 सैटेलाइट समुद्री बर्फ, ग्लेशियर और बर्फ चादरों की मोटाई मापता है. इसमें रडार अल्टीमीटर है, जो बर्फ की ऊंचाई में छोटे बदलाव पकड़ लेता है. 

झीलों के भरने-खाली होने से बर्फ ऊपर-नीचे होती है. डेटा से पता चला कि दर्जनों जगहों पर बर्फ हल्की डूब रही है या ऊपर आ रही है. वैज्ञानिकों ने 25 झीलों के क्लस्टर और 5 नई नेटवर्क पाए. इनमें झीलें आपस में जुड़ी हैं. एक का खाली होना दूसरे को प्रभावित करता है. इससे बर्फ की गति तेज होती है.

क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज? समुद्र स्तर पर खतरा

यह खोज बर्फ चादरों की गतिविधियों को समझने में मदद करेगी. इससे क्लाइमेट मॉडल बेहतर बनेंगे. विल्सन ने कहा कि अभी के मॉडल्स में सबग्लेशियल पानी की गतिविधियां शामिल नहीं हैं. ये नए डेटा झीलों की लोकेशन, साइज और बदलाव के समय बताएंगे. इससे अंटार्कटिका के नीचे पानी का बहाव समझ आएगा.

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अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से समुद्र स्तर बढ़ता है. अगर ग्लेशियर तेजी से महासागर में जाते हैं, तो तटीय इलाके डूब सकते हैं. दुनिया भर में करोड़ों लोग प्रभावित होंगे. यह खोज जलवायु परिवर्तन के असर को और साफ करती है.

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भविष्य में क्या? निगरानी जरूरी

वैज्ञानिक कहते हैं कि अंटार्कटिका का पानी का सिस्टम ज्यादा जटिल है. हमें सैटेलाइट से लगातार नजर रखनी होगी. इससे समुद्र स्तर की भविष्यवाणी सटीक होगी. भारत जैसे देशों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि बंगाल की खाड़ी में बाढ़ का खतरा बढ़ेगा. यह खोज बताती है कि धरती के राज अभी भी छिपे हैं. वैज्ञानिकों का काम जारी है. जलवायु संकट से लड़ने के लिए ऐसी खोजें जरूरी हैं. 

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