दुनिया भर के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि कोरोना से रिकवर हुए लोग दोबारा क्यों और कैसे पॉजिटिव हो जा रहे हैं. कई मरीज रिकवरी के कुछ हफ्ते या महीनों बाद फिर से कोरोना संक्रमित हो रहे हैं. मुश्किल ये है कि इनके शरीर से लाइव कोरोना वायरस नहीं मिल रहा. कोरोना वायरस के RNA की लाइफ बहुत छोटी होती है. ये मुश्किल से कुछ मिनटों में खत्म हो जाते हैं. हैरतअंगेज बात ये है कि खत्म हुए RNA का अंश हमारे DNA में मिल रहा है. जिसकी वह से लोग दोबारा पॉजिटिव पाए जा रहे हैं. (फोटोःगेटी)
व्हाइटहेड इंस्टीट्यूट मेंबर और MIT में बायोलॉजी प्रोफेसर रुडोल्फ जैनिश ने इसका खुलासा किया है कि क्यों लोग रिकवरी के बाद दोबारा कोरोना पॉजिटिव हो रहे हैं. रुडोल्फ की यह स्टडी 6 मई को प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुई है. (फोटोःगेटी)
इस स्टडी में रुडोल्फ ने बताया है कि कैसे कोरोना वायरस का RNA हमारे शरीर की कोशिकाओं के जीनोम के साथ जुड़ जाता है. इसे रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन (Reverse Transcription) कहते हैं. ऐसे जीनोम को RNA के लिए होने वाले पीसीआर टेस्ट में पता चल जाते हैं. सिर्फ कोविड-19 ही ऐसा वायरस नहीं है जो इंसानों के जीनोम से जुड़ता है. बल्कि ऐसे कई और वायरस भी हैं जो ये काम करते हैं. (फोटोःगेटी)
हमारे शरीर में आमतौर पर 8 फीसदी DNA ऐसे होते हैं जिनमें प्राचीन वायरसों के अंश जुड़े होते हैं. उन्हें रेट्रोवायरस (Retrovirus) कहते हैं. ये इंसानों के जीनोम से जुड़कर खुद का वंश आगे बढ़ाते हैं. व्हाइट हेड इंस्टीट्यूट के पोस्ट डॉक्टोरल फेलो और इस स्टडी के पहले लेखक लिगुओ झांग कहते हैं कि कोरोना कोई रेट्रोवायरस नहीं है. इसे अपना वंश बढ़ाने के लिए रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन की जरूरत नहीं है. इसके बावजूद इंसानों और कई केशरुकीय जीवों में नॉन-रेट्रोवायरल RNA वायरस को जीनोम के साथ जुड़कर रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन करते हुए देखा गया है. (फोटोःगेटी)
इस जांच को पुख्ता करने के लिए लिगुओ, रुडोल्फ और एलेक्सिया ने तीन अलग-अलग तरीकों से DNA की सिक्वेंसिंग की. तीनों ही तरीकों में इन लोगों को इंसानी कोशिकाओं के DNA में वायरस के जेनेटिक मटेरियल मिले. यानी इंसान के जीनोम में कोविड-19 वायरस के RNA अंश मौजूद थे. जिस DNA में कोरोना वायरस ने अपने जेनेटिक मटेरियल चिपकाया था, उसका पता एक खास तरह के जेनेटिक फीचर रेट्रोट्रांसपोसोन (Retrotransposon) हॉलमार्क से चला. (फोटोःगेटी)
ट्रांसपोसोन (Transposon) को साइंटिस्ट आम भाषा में जंपिंग जीन्स (Jumping Genes) भी कहते हैं. ये DNA के अंदर एक इलाके से दूसरे इलाके में घूमते रहते हैं. आमतौर पर ट्रांसपोसोन यानी वायरस का जेनेटिक मटेरियल ज्यादा तनाव, कैंसर या ज्यादा उम्र की स्थिति में DNA के अंदर यात्रा करते हैं. ये इतने ताकतवर होते हैं कि आपकी जीन्स को बदल भी सकते हैं. (फोटोःगेटी)
इंसानों के जीनोम में सबसे सामान्य रेट्रोट्रांसपोसोन (Retrotransposon) के LINE1 रेट्रोट्रांसपोसोन कहते हैं. ये DNA को काटने वाली मशीनरी और रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेस से बने होते हैं. यानी ऐसे एंजाइम से जो RNA के टेंपलेट से DNA मॉलिक्यूल्स का निर्माण करते हैं. ये ठीक वैसी ही प्रक्रिया है जैसा कोरोना वायरस अपने RNA के साथ कर रहा है. यानी वह आपके DNA से चिपककर खुद को शांत रखता है, फिर सही मौका देखकर आपके जीनोम को तोड़कर शरीर में और वायरस बना लेता है. (फोटोःगेटी)
रुडोल्फ ने बताया कि कोरोना वायरस से रिकवरी के बाद फिर पॉजिटिव होने वाले लोगों के शरीर में इस बात के होने के पुख्ता सबूत मिले हैं. हमारी जांच में पता चला है कि LINE1 का जुड़ाव हो रहा है. कोरोना वायरस हमारे शरीर की कोशिकाओं के DNA में जहां जुड़ता है वहां पर 20 बेस पेयर डुप्लीकेशन देखने को मिला है. (फोटोःगेटी)
इतना ही नहीं LINE1 इंटीग्रेशन के साथ-साथ LINE1 एंडोन्यूक्लिएस रिकगनिशन सिक्वेंस भी हो रहा है. यानी हमारे DNA में 70 फीसदी कोरोना वायरस के जेनेटिक अंश भी देखने को मिले हैं. रुडोल्फ ने बताया कि ये अद्भुत प्रक्रिया हो रही है. ये हैरान कर देने वाली अत्यधिक सूक्ष्म गतिविधि है. कोरोना वायरस का RNA हमारी कोशिकाओं के DNA में अलग-अलग तरह से प्रवेश कर रहा है. (फोटोःगेटी)
प्रयोगशाला में जांच करने के बाद रुडोल्फ की टीम ने कोरोना मरीजों के जेनेटिक सिक्वेंस के रिपोर्ट्स की जांच की. इसमें भी इस बात का पता चला को हमारे शरीर की कोशिकाओं के अंदर मौजूद DNA से वायरस के जेनेटिक मटेरियल चिपके हुए हैं. कोरोना वायरस के जेनेटिक मटेरियल यानी RNA की मात्रा हर इंसान में अलग-अलग होती है. (फोटोःगेटी)
हालांकि रुडोल्फ और उनकी टीम यह पता नहीं कर पाई कि कोरोना वायरस का जेनेटिक मटेरियल यानी उसका RNA इंसानों के DNA के साथ कैसे चिपक रहा है. उसकी फ्रिक्वेंसी क्या है. क्योंकि ये किसी मरीज के सैंपल में कम मिला और किसी में तुलनात्मक रूप से ज्यादा. हालांकि ये बेहद दुर्लभ है. क्योंकि अब तक 14 करो़ड़ से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, करोड़ों रिकवर भी कर चुके हैं. लेकिन दोबारा पॉजिटिव होने वाले केस अत्यधिक कम हैं. (फोटोःगेटी)
वहीं लिगुओ झांग अब इस बात के प्रयोग में लगे हैं कि कैसे कोशिका के अंदर ही कोरोना वायरस के जेनेटिक मटेरियल को प्रोटीन में बदला जाए. अगर ऐसा होता है तो शरीर में प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम मजबूत होगा. इससे भविष्य में हमें कोरोना वायरस के हमले से बचने में ब़ड़ी मदद मिलेगी. (फोटोःगेटी)
रुडोल्फ कहते हैं कि हमें अपने आगे की जांच में ये पता करना है कि क्या कोरोना वायरस का जेनेटिक मटेरियल हमारे DNA से चिपक कर उसे महामारी के लिए फिर से तैयार कर रहा है. इससे लंबे समय के लिए कोरोना मरीजों के शरीर में ऑटोइम्यून रेसपॉन्स पैदा हो रहे हैं. इसलिए मरीजों को PCR जांच से यह पता कराना चाहिए कि कहीं उनके शरीर में कोरोना वायरस के अंश तो नहीं बचे हैं. (फोटोःगेटी)