त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में बनता है शहतूत का रेशम. इसे दुनिया के बेहतरीन रेशमों में से एक माना जाता है. इसका निर्माण शहतूत के पत्तों पर पाये जाने वाले बॅाम्बिक्स मोरी नामक रेशमकीट से किया जाता है. शहतूत के ककून से रेशम (मलबरी सिल्क) बनाने की प्रक्रिया का स्थानीय अर्थव्यवस्था और आजीविका को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान है. Photo: AFP
रेशम उत्पादन, जिसे सेरीकल्चर भी कहा जाता है. रेशमकीटों को पालना और फिर उनके ककून से रेशम निकालना एक कला भी है और विज्ञान भी. अगरतला में शहतूत का रेशम उत्पादन एक कृषि-आधारित उद्योग है. यह स्थानीय किसानों और कारीगरों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है. Photo: PTI
अगरतला में रेशम बनाने वाले कारखाने में शहतूत के ककूनों को प्रोसेस करती श्रमिक महिलाऐं. यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है, जिसमें रेशमकीटों को पालना, ककून बनाना, और फिर उनसे रेशम के महीन धागों को निकालना शामिल है. केंद्रीय रेशम बोर्ड और त्रिपुरा सरकार ने अगरतला में रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. Photo: PTI
जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली अनियमित बारिश और तापमान में बदलाव शहतूत की खेती और रेशमकीटों के पालन को प्रभावित करता है. रेशम निकालने के लिए ककून को तीन चरणों में पकाया जाता है. पहले 70-75 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी में 45-60 सेकंड के लिए डुबोया जाता है, फिर 90-93 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भाप दी जाती है, और आखिर में फिर से 70-75 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी में डुबोया दिया जाता है. Photo: PTI
पकाए गए कोकून से रेशम के धागे निकालने की प्रक्रिया को रीलिंग कहते हैं. इस प्रक्रिया में कई ककूनों के धागों को एक साथ मिलाकर एक मजबूत धागा बनाया जाता है. Photo: PTI
अगरतला में शहतूत रेशम उत्पादन ने स्थानीय किसानों और कारीगरों को रोजगार दिया है. यह विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का एक बड़ा स्रोत है. Photo: PTI
रेशम के धागों से सेरिसिन (एक चिपचिपा पदार्थ) को हटाने के लिए गर्म पानी और साबुन से धोया जाता है. इस प्रक्रिया से उच्च गुणवत्ता वाले रेशम का निर्माण होता है, जो चमकदार, मुलायम, और मजबूत होता है. रेशम के धागों को रंगने के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह नहीं होता है. Photo: PTI
शहतूत रेशम स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है. यह त्रिपुरा की सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देता है. शहतूत रेशम की चमक, मुलायमपन, और मजबूती इसे दुनिया भर में लोकप्रिय बनाती है. Photo: PTI
रेशम के धागों को बुनकर कपड़ा बनाया जाता है. अगरतला में स्थानीय कारीगर पारंपरिक हथकरघे का उपयोग कर रेशम के कपड़े की बुनाई करते हैं. साड़ियों, दुपट्टों, और दूसरे किस्म के परिधानों को बनाने के लिए इस कपड़े का उपयोग किए जाता है. Photo: PTI