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भयानक सूखे से ग्रस्त केन्या में गायों की जगह ले रहे हैं ऊंट, जानिए क्यों हुआ ये बदलाव?

आजतक साइंस डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 04 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:29 AM IST
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केन्या के सूखे इलाकों में ऊंट अब गायों का साथी बन रहे हैं. साल 2015 में सांबुरू काउंटी के अधिकारीयों ने एक खास कार्यक्रम शुरू किया था. इससे पहले कई सूखे पड़े थे, जिनमें केन्या के शुष्क और अर्ध-शुष्क इलाकों में कम से कम 70 प्रतिशत गायें मर गईं. Photo: AFP

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इन गायों की मौत से स्थानीय चरवाहों के बच्चों में कुपोषण की समस्या बहुत बढ़ गई. अब ऊंट इस समस्या का हल बन रहे हैं. ये जानवर सूखे में भी जीवित रहते हैं और दूध देते रहते हैं. Photo: AFP

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सांबुरू काउंटी में ऊंट कार्यक्रम की शुरुआत 2015 में हुई. इसके तहत सोमाली ऊंटों की नस्ल दी गई. ये ऊंट स्थानीय ऊंटों से बड़े और ज्यादा दूध देने वाले होते हैं. अब तक करीब 5,000 सोमाली ऊंट वितरित किए जा चुके हैं. Photo: AFP

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इसमें पिछले साल 1000 ऊंट शामिल थे. कार्यक्रम का लक्ष्य है कि काउंटी के हर परिवार के पास अपना ऊंट हो. गांव के प्रशासक जेम्स लोल्पुसिके कहते हैं कि हर परिवार को ऊंट मिलना चाहिए. इससे जीवन आसान हो जाएगा. Photo: AFP

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लोल्पुसिके नाम के एक चरवाहे को 2023 में ऊंट मिले. पहले उन्हें ऊंटों के बारे में कुछ नहीं पता था. अब उनके गांव के छोटे-छोटे घरों वाले इलाके, जिसे 'मैन्याट्टा' कहते हैं, में एक दर्जन ऊंट शांतिपूर्वक सूखी घास चबा रहे हैं. Photo: AFP

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ये ऊंट झाड़ीदार सवाना में आराम से रहते हैं. लोल्पुसिके के रिश्तेदार जेम्स लोल्पुसिके, जो गांव के प्रशासक हैं कहते हैं कि ऊंटों से इलाके में साफ बदलाव दिख रहे हैं. बच्चों की सेहत बेहतर हो रही है. Photo: AFP

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ऊंटों को दिन में पांच बार तक दूध निकाला जा सकता है, इसलिए लोग इन्हें बहुत पसंद कर रहे हैं. ऊंट का दूध इंसानी मां के दूध जैसा पौष्टिक और औषधीय गुणों वाला होता है. केन्या के मेरू यूनिवर्सिटी की 2022 की एक स्टडी में यह बात सामने आई. Photo: AFP

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सूखे के समय उत्तरी चरवाहा समुदायों में ऊंट का दूध आधे से ज्यादा पोषण देता है. ये दूध विटामिन और प्रोटीन से भरपूर होता है. इससे कुपोषण की समस्या कम हो रही है. चरवाहे कहते हैं कि ऊंट सूखे में भी दूध देते रहते हैं, जबकि गायें मर जाती हैं. Photo: AFP

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हालांकि ऊंट अच्छे हैं, लेकिन इनके झुंड को बीमारियों का खतरा है. इससे नुकसान हो सकता है. अधिकारी इस पर नजर रख रहे हैं. लेकिन फायदे इतने ज्यादा हैं कि लोग ऊंटों को अपनाने से पीछे नहीं हट रहे.  Photo: AFP

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केन्या में ऊंट पहले से ही प्रसिद्ध हैं. सितंबर के आखिर में मारालाल इंटरनेशनल ऊंट डर्बी नाम की दौड़ होती है. इस बार करीब 40 ऊंटों ने भाग लिया. विजेता ऊंट ने 21 किलोमीटर की दूरी, जो आधा मैराथन जितनी है, एक घंटे 22 मिनट में पूरी की. आयोजक कहते हैं कि यह दौड़ सिर्फ खेल नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण सांस्कृतिक मेलजोल का थीम है. Photo: AFP

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पहले इलाकों में संसाधनों के लिए झगड़े होते थे. चरवाहे अपनी गायों को हरे इलाकों में ले जाते थे, जिससे खूनी झड़पें होती थीं. सैकड़ों लोग मारे गए. लेकिन ऊंट शांतिप्रिय हैं. ये सूखे इलाके में ही रह जाते हैं. Photo: AFP

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केन्या के शुष्क इलाकों में ऊंट अब आम दृश्य बन रहे हैं. ये गायों की कमी पूरी कर रहे हैं. चरवाहों के बच्चे स्वस्थ हो रहे हैं. झगड़े कम हो रहे हैं, ऊंट कार्यक्रम से जीवन बदल रहा है. जलवायु परिवर्तन के दौर में ऊंट जैसे जानवर भविष्य का रास्ता दिखा रहे हैं. Photo: AFP

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