Putrada Ekadashi 2021: क्यों मनाई जाती है पुत्रदा एकादशी? जानें इसकी व्रत कथा

आज सावन माह की पुत्रदा एकादशी है. मान्यता है कि जो भी दंपति इस व्रत को पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ करता है उसे संतान सुख अवश्य मिलता है. ये व्रत रखने समस्त पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. बिना व्रत कथा सुने ये व्रत पूरा नहीं माना जाता है.

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सावन माह की पुत्रदा एकादशी आज सावन माह की पुत्रदा एकादशी आज

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 10:12 AM IST
  • पुत्रदा एकादशी आज
  • जानें पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
  • संतान की कामना होती है पूरी

आज सावन माह की पुत्रदा एकादशी है. इसे पवित्रा एकादशी भी कहा जाता है. संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत का खास महत्व माना जाता है. मान्यता है कि जो भी दंपति इस व्रत को पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ करता है उसे संतान सुख अवश्य मिलता है. ये व्रत रखने समस्त पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. बिना व्रत कथा सुने ये व्रत पूरा नहीं माना जाता है.

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पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा- श्री पद्मपुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांति और धर्म प्रिय था लेकिन उसका कोई पुत्र नहीं था. राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई. महामुनि ने बताया कि राजा ने अपने पिछले जन्म में कुछ अत्याचार किए हैं. एक बार एकादशी के दिन दोपहर के समय वो एक जलाशय पर पहुंचे. वहां एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे. राजा का ऐसा करना धर्म के विपरीत था. पूर्व जन्म के कुछ पुण्य कर्मों के कारण वो अगले जन्म में राजा तो बने, लेकिन उस एक पाप के कारण अब तक संतान विहीन हैं. महामुनि ने बताया कि यदि राजा के सभी शुभचिंतक श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो उन्हें निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी. महामुनि के कहने पर प्रजा के साथ-साथ राजा ने भी यह व्रत रखा. कुछ महीनों के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया. मान्यता है ति तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा.

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श्रावण पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि- आज के दिन स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं. तुलसी, फल और तिल से भगवान की पूजा करें. ये व्रत निराहार करना चाहिए. शाम में पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं.  पुत्रदा एकादशी की कथा सुनने के बाद विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का भी बहुत महत्व है. 

 


 

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