डार्विन पर BJP सांसद की थ्योरी हिंदुत्व से ज्यादा इस्लाम के करीब!

सत्यपाल सिंह रसायन विज्ञान में पीएचडी होल्डर हैं, लेकिन इन सबके बावजूद पृथ्वी पर मानव जीवन के विकास पर दिए गए डार्विन के सिद्धांत की आलोचना करने से उन्हें बिल्कुल भी गुरेज नहीं है.

Advertisement
सत्यपाल का बयान इसलिए नहीं है हिंदुत्व के करीब सत्यपाल का बयान इसलिए नहीं है हिंदुत्व के करीब

प्रज्ञा बाजपेयी

  • नई दिल्ली,
  • 22 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 1:12 PM IST

केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह 2014 में उत्तर प्रदेश से बीजेपी सांसद बनने से पहले मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे. रसायन विज्ञान में वह पीएचडी होल्डर हैं लेकिन इन सबके बावजूद पृथ्वी पर मानव जीवन के विकास पर दिए गए डार्विन के सिद्धांत की आलोचना करने से उन्हें बिल्कुल भी गुरेज नहीं है.

उन्होंने शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा, 'डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से गलत है. स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रमों में इसे बदले जाने की जरूरत है. इंसान जब से पृथ्वी पर देखा गया है, हमेशा इंसान ही रहा है.'

Advertisement

सत्यपाल सिंह ने आगे कहा, 'ना तो हमारे पूर्वजों ने और ना ही किसी और ने कभी यह कहा या लिखा कि उन्होंने किसी बंदर को इंसान में परिवर्तित होते देखा. हमने जो भी किताबें पढ़ीं या फिर हमारे दादा-दादी ने सुनाईं, उनमें भी कभी कोई ऐसा जिक्र नहीं मिला.'

सत्यपाल सिंह का यह बयान केवल इसलिए हैरान करने वाला नहीं है कि उन्होंने चार्ल्स डार्विन के सर्वमान्य सिद्धांत को खारिज कर दिया बल्कि इसलिए भी कि वह मानव विकास की हिंदू धर्म की अवधारणा से भटकते हुए इस्लामिक मत के करीब पहुंच गए.

डार्विन का सिद्धांत क्या है?

चार्ल्स डार्विन 19वीं सदी के एक जीवविज्ञानी थे जिन्होंने कई सालों तक पौधों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियों का अध्ययन किया. अपनी स्टडी के अंत में उन्होंने 'ऑरिजन ऑफ स्पीसीज' नामक पुस्तक में नतीजे प्रकाशित किए.

Advertisement

चार्ल्स डार्विन का मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है.

डार्विन ने 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' (योग्यतम उत्तरजीविता का सिद्धांत) का सिद्धांत दिया. जिस प्रक्रिया द्वारा किसी जनसंख्या में कोई जैविक गुण कम या अधिक हो जाता है उसे 'प्राकृतिक चयन' या नेचुरल सेलेक्शन कहते हैं. यह एक धीमी गति से क्रमशः होने वाली प्रक्रिया है. प्राकृतिक चयन का अर्थ उन गुणों से है जो किसी प्रजाति को बचे रहने और प्रजनन मे सहायता करते हैं और इसकी आवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती है. ये गुण वंशानुगत रूप से भी ले सकते हैं.

डार्विन थ्योरी पर वैज्ञानिक बोले- मंत्री के बयान का वैज्ञानिक आधार नहीं

हिंदू धर्मग्रन्थों में विकास की परिभाषा-

सत्यपाल सिंह ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 'ऑल इंडिया वैदिक सम्मेलन' में शरीक होने के बाद ये बातें कही थीं. विरोधाभास यह है कि ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में मानव विकास पर अनुमान लगाए गए हैं और मानव की उत्पत्ति से संबंधित यह श्लोक अज्ञेयवाद या संशयवाद के करीब पहुंच जाता है.

ऋग्वेद के 10वें मंडल में उल्लिखित इस श्लोक में कहा गया है, तब शून्य भी अस्तित्व में नहीं था,  वहां ना तो हवा थी और ना ही इसके ऊपर स्वर्ग. किसने इसे ढका? यह क्या था? यह किसकी निगरानी में हो रहा था.  क्या सृष्टि के प्रारंभ में इतनी अताह गहराई तक जल था?

Advertisement

एक अन्य सूक्त में कहा गया, कौन जानता है? और कौन बता सकता है? यह सब कब से अस्तित्व में है और सृष्टि की रचना कैसे हुई? देवता भी सृजन के बाद अस्तित्व में आए तो कौन यह सच जानता है कि यब सब कब निर्मित हुआ?

पुराणों के मुताबिक, भगवान विष्णु ने दस अवतार लिए जिसे दशावतार के नाम से जाना जाता है. कई लोगों ने इसकी तुलना चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत से की है. इसमें भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की चर्चा की जाती है जिसे पृथ्वी के विकासकाल के दौरान सिलुरियन काल में मछली की उत्पत्ति से जोड़कर देखा जाता है.

भगवान विष्णु के दशावतारों को जानवर से मानव के विकास क्रम में देखा जाता है. इसमें भगवान राम, कृष्ण और बुद्ध को विशुद्ध मानव रूप माना जाता है. पुराणों में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की भी कल्पना की गई है. इन मान्यताओं में भी सतत विकास की अवधारणा साफ दिखलाई पड़ती है जिसे केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह नकार रहे हैं.

केंद्रीय मंत्री का मत बाइबल और कुरआन के करीब-

उत्तर प्रदेश के बागपत से बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह का मानव विकास के बारे में किया गया दावा बाइबल से मिलता-जुलता है. बुक ऑफ जेनेसीस में ईश्वर कहते हैं , मैंने धरती बनाई और उसके बाद मानव की रचना की.

Advertisement

इस्लामिक मत भी कुछ-कुछ ऐसा ही है. कुरआन में कहा गया है कि आदम और हव्वा पहले मानव थे. हालांकि यह यह जानकारी नहीं मिलती कि वे अस्तित्व में कैसे आए. बाइबल और कुरआन दोनों में मानव अपनी उत्पत्ति की शुरुआत से ही मानव रहा है.

बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 51 ए में नागरिकों के लिए यह कर्तव्य बतलाया गया है कि वे अपने जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करें.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement