क्या है वट सावित्री व्रत, कैसे करते हैं इसे? जानिए महत्व

पांच वटों से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया है. कहते हैं कि कुंभजमुनी के परामर्श भगवान श्री राम ने सीता एवं लक्ष्मण के साथ वनवास काल में यहां निवास किया था. हानिकारक गैसों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वृक्ष का विशेष महत्व है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

रोहित

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  • 12 मई 2018,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST

मान्यता है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु और अग्रभाग में शिव रहते हैं. इसीलिए वट वृक्ष को देव वृक्ष कहा गया है. देवी सावित्री भी वट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं. इसी अक्षय वट के पत्र पर प्रलय के अंतिम चरण में भगवान ने बाल रूप में मार्कंडेय ऋषि को प्रथम दर्शन दिया था.

प्रयागराज में गंगा के तट पर वेणीमाधव के निकट अक्षय वट प्रतिष्ठित है. भक्त शिरोमणि तुलसीदास ने संगम स्थित अक्षय वट को तीर्थराज का छत्र कहा है. इसी प्रकार पंचवटी का भी विशेष महत्व है. पांच वटों से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया है. कहते हैं कि कुंभजमुनी के परामर्श से भगवान श्रीराम ने सीता एवं लक्ष्मण के साथ वनवास काल में यहां निवास किया था. हानिकारक गैसों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वृक्ष का विशेष महत्व है.

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वटवृक्ष की औषधि के रूप में उपयोगिता से लगभग सभी परिचित हैं. जैसे वटवृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय बना रहता है, उसी प्रकार दीर्घायु अक्षय सौभाग्य तथा निरंतर विजय की प्राप्ति के लिए वट वृक्ष की आराधना की जाती है. इसी वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने मृत पति को पुनः जीवित किया था. तब से यह व्रत वट सावित्री के नाम से किया जाता है.

प्रत्येक मास के व्रतों में वट सावित्री व्रत एक प्रभावी व्रत है. इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है. महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए यह व्रत करती हैं. सौभाग्यवती महिलाएं श्रद्धा के साथ जेष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक 3 दिनों का उपवास रखती हैं. त्रयोदशी के दिन वृक्ष के नीचे इस प्रकार संकल्प करना चाहिए जिसे पूर्ण किया जा सके. यदि 3 दिन उपवास करने में समर्थ ना हो तो त्रयोदशी को रात्रि भोजन, चतुर्दशी को अयाचित और अमावस्या को उपवास करके प्रतिपदा का पालन करना चाहिए.

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अमावस्या को एक बांस की टोकरी में सप्तधान्य के ऊपर ब्रह्मा सावित्री और दूसरी टोकरी में सत्यवान सावित्री की प्रतिमा स्थापित कर वट के समीप यथाविधि पूजन करना चाहिए. साथ ही यम की भी पूजा करनी चाहिए. पूजन के अनंतर स्त्रियां वट की पूजा करती हैं और उसके मूल को जल से खींचते हैं. वट वृक्ष की परिक्रमा करते समय 108 बार या यथाशक्ति सूत लपेटा जाता है. वटवृक्ष की प्रदक्षिणा करनी चाहिए. तीन दिवसीय वट सावित्री व्रत रविवार 13 मई से शुरू है और मंगलवार तक चलेगा.

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