Paryushana Parva 2025: जैन साधु-साध्वी क्यों करते हैं केशलोचन? जानें कितनी दर्दनाक सिर-दाढ़ी के बाल नोंचने वाली ये परंपरा

जैन धर्म पूरी तरह त्याग, संयम और कठिन तप पर आधारित है और उसी कठिन तप का एक विशेष अनुष्ठान है केशलोचन. केशलोचन प्रक्रिया को केश लुंचन प्रक्रिया के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रक्रिया जैन साधना पद्धति का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह त्याग और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है.

Advertisement
जैन साधु-साध्वी क्यों करते हैं केश लोचन (Photo: AI Generated) जैन साधु-साध्वी क्यों करते हैं केश लोचन (Photo: AI Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST

Paryushana Parva 2025: आज से जैन धर्म के महापर्व पर्युषण की शुरुआत हुई है. जैन धर्म में पर्युषण को पर्वों का राजा माना जाता है. इस दौरान जैनी अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर आत्मचिंतन पर विचार करते हैं. माना जाता है कि जैन धर्म पूरी तरह त्याग, संयम और कठिन तप पर आधारित है और उसी कठिन तप का एक विशेष अनुष्ठान है 'केशलोचन'. 

Advertisement

जैन धर्म में जब कोई मुनि या साध्वी (आर्यिका) दीक्षा लेते हैं, तो वे सांसारिक जीवन छोड़कर साधु जीवन की शुरुआत करते हैं. इस समय वे अपने सिर और दाढ़ी-मूंछ के सारे बाल अपने हाथों से उखाड़ते हैं. इसी प्रक्रिया को केशलोचन कहा जाता है. यह जैन साधना पद्धति का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह त्याग और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है. इस प्रक्रिया को साल में एक या दो बार किया जाता है, जो कि बहुत ही अनिवार्य होता है.

इसलिए नहीं करते है ब्लेड-दाढ़ी का इस्तेमाल

केशलोचन का अर्थ होता है- केशों का लोचन, यानी बालों को उखाड़ना. जब कोई व्यक्ति नया-नया साधु जीवन अपनाता है तो वह अपने सिर और चेहरे के सारे बाल खुद अपने हाथों से उखाड़ता है. यह प्रक्रिया दर्दनाक होती है, लेकिन जैन साधु इसे धैर्य और संकल्प के साथ पूरा करते हैं. केशलोचन में दो कारणों से ब्लेड या कैंची का इस्तेमाल नहीं होता है. पहला, त्वचा में छिपे सूक्ष्म जीवों को इन औजारों से हानि न हो. दूसरा, शारीरिक सौंदर्य से अत्यधिक लगाव न रखना.

Advertisement

दरअसल, बालों को शरीर का आभूषण माना जाता है, जिसे हटाना भौतिक सुखों को छोड़ना माना जाता है. केश लोचन के दौरान होने वाले दर्द को जैन साधु सहन करते हैं, ताकि वे अपने मन में शांति और सहनशीलता को बढ़ा सकें. यह अनुष्ठान जैन साधुओं को आम लोगों से अलग करता है और दिखाता है कि वे त्याग और तपस्या के मार्ग पर पूरी तरह से चलने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

कैसे होती है केशलोचन प्रक्रिया? 

दीक्षांत समारोह के दिन साधु-साध्वी समाज के बीच बैठते हैं. इस समय वातावरण मंत्रों और धार्मिक वचनों से भरा होता है. साधु अपने हाथों से सिर और दाढ़ी-मूंछ के बाल उखाड़ना शुरू करता है. कभी-कभी वरिष्ठ साधु भी इसमें सहायता करते हैं. बाल उखाड़ते समय साधु किसी तरह की पीड़ा का प्रदर्शन नहीं करते, क्योंकि यह उसकी साधना और संयम की परीक्षा मानी जाती है. इसके बाद बाल जमीन पर गिरा दिए जाते हैं और साधु नए जीवन की ओर कदम बढ़ाता है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement