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धर्म

श्रीकृष्ण के 5 सबसे बड़े शत्रु, कंस से ज्यादा खतरनाक था बहरूपिया पौंड्रक

सुमित कुमार/aajtak.in
  • 23 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 5:19 PM IST
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श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी इस बार दो दिन पड़ रही है. हिन्‍दू पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी आठवें दिन मनाई जाती है. इस बार 23 और 24 अगस्‍त को जन्‍माष्‍टमी मनाई जा रही है. आइए इस अवसर पर आपको बताते हैं कि श्रीकृष्ण के जीवन में उनके 5 सबसे बड़े दुश्मन कौन थे.

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कंस
श्रीकृष्ण की मां देवकी के भाई कंस श्रीकृष्ण के सबसे बड़े दुश्मन थे. कंस का अपनी बहन के प्रति लगाव था, लेकिन जब भविष्यवाणी हुई कि देवकी के गर्भ से पैदा हुआ बालक ही कंस का वध करेगा तो उसने पहले सात बच्चों की हत्या कर दी. जब कृष्ण का जन्म हुआ तो पिता वासुदेव उन्हें दबे पांव मथुरा में यशोदा के यहां छोड़ आए. कंस को इसकी भनक तक नहीं लगी. आगे चलकर श्रीकृष्ण ही कंस की मौत का कारण बने.

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जरासंध
कंस की मौत के बाद उनके ससुर जरासंध कृष्ण की जान के दुश्मन बन गए. जरासंध बृहद्रथ नाम के राजा का पुत्र था. श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने के लिए भीम और अर्जुन की सहायता ली. तीनों हुलिया बदलकर जरासंध के पास पहुंचे. लेकिन उसे इस ढोंग के बारे में पता चल गया. अंत में भीम ने उसे कुश्ती करने की चुनौती दे डाली. भीम को पता था कि जरासंध को हराना इतना आसान नहीं है. श्रीकृष्ण ने जैसे ही एक तिनके के दो हिस्से कर उन्हें विपरीत दिशाओं में फेंका भीम इशारा समझ गए और उन्होंने जरासंध को बीच में चीरकर उसके जिस्म के दोनों हिस्सों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया.

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कालयवन
कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया था. तभी श्रीकृष्ण ने उसे संदेश भेजा कि युद्ध सिर्फ कृष्ण और कालयवन में होगा. कालयवन ने स्वीकार कर लिया. कालयवन को शिव का वरदान मिला था, इसलिए उसे कोई नहीं मार सकता था. युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण मैदान छोड़कर भाग निकले और कालयवन उनके पीछे एक गुफा में चला गया. गुफा में सो रहे राजा मुचुकुंद को कृष्ण ने अपनी पोशाक से ढक दिया. कालयवन ने जैसे ही मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठाया उनकी नजर पड़ते ही वो भस्म हो गया. मुचुकुंद को वरदान मिल रखा था कि जब भी कोई उसे नींद से जगाएगा, उनकी नजर पड़ते ही वो भस्म हो जाएगा.

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शिशुपाल
शिशुपाल 3 जन्मों से श्रीकृष्ण से बैर-भाव रखे हुआ था. एक यंज्ञ में सभी राजाओं को बुलाया गया. ये यज्ञ श्री कृष्ण और पांडवों ने रखा था. यज्ञ के दौरान शिशुपाल श्रीकृष्ण को अपमानित करने लगा. ये सुनकर पांडव गुस्सा गए और उसे मारने के लिए खड़े हो गए. कृष्ण ने उन्हें शांत किया और यज्ञ करने को बोला. श्रीकृष्ण ने शिशुपाल से कहा कि उन्होंने 100 अपमानजनक शब्दों को सहने का प्रण लिया हुआ है और वो अब पूरे हो चुके हैं. शांत बैठो, इसी में तुम्हारी भलाई. है.' जिसके बाद शिशुपाल ने जैसे ही गाली दी तो श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कटकर गिर गया.

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पौंड्रक
खुद को श्रीकृष्ण बताने वाले राजा पौंड्रक की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. नकली सुदर्शन चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता था. पौंड्रक की हर गलतियों के लिए लोग श्रीकृष्ण को जिम्मेदार ठहराने लगे थे. इस बीच पौंड्रक ने श्रीकृष्ण को युद्ध की चुनौती दे डाली. इसके बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण पुन: द्वारिका चले गए.

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