Utpanna Ekadashi 2025: उत्पन्ना एकादशी पर रहेगा राहुकाल का साया! साथ ही जानें पूजन मुहूर्त

Utpanna Ekadashi 2025: मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाता है. यह दिन माता एकादशी के जन्म से जुड़ा है. मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान विष्णु के शरीर से देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए पूजा-पाठ व दान-दक्षिणा के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है.

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उत्पन्ना एकादशी 2025 पूजन का मुहूर्त (Photo: AI Generated) उत्पन्ना एकादशी 2025 पूजन का मुहूर्त (Photo: AI Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:40 AM IST

Utpanna Ekadashi 2025: पंचांग के अनुसार, 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा. ज्योतिषियों के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन श्रीहरि और माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है. साथ ही, यह दिन माता एकादशी के अवतरण का दिन भी माना जाता है. 

ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार उत्पन्ना एकादशी बहुत ही खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का संयोग बन रहा है. साथ ही, इस शुभ दिन राहु काल का अशुभ साया भी पड़ने वाला है. तो आइए जानते हैं कि इस दिन राहु काल कितने से कितने बजे तक रहेगा और पूजा का क्या मुहूर्त रहेगा. 

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उत्पन्ना एकादशी पर राहु काल का साया (Utpanna Ekadashi 2025 Rahu Kaal)

ज्योतिषियों के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी के दिन राहु काल का अशुभ संयोग बन रहा है जिसका समय सुबह 9 बजकर 25 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक रहेगा. कोशिश करें इस दिन इस बीच श्रीहरि और मां लक्ष्मी की पूजा न करें क्योंकि राहु काल में कोई शुभ काम करना वर्जित माना जाता है.

उत्पन्ना एकादशी 2025 तिथि (Utpanna Ekadashi 2025 Tithi)

उत्पन्ना एकादशी की तिथि 15 नवंबर को अर्धरात्रि 12 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 16 नवंबर को मध्यरात्रि में 2 बजकर 37 मिनट पर होगा. इस व्रत का पारण 16 नवंबर 2025, रविवार को किया जाएगा. जिसका समय दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से लेकर 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगा.

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उत्पन्ना एकादशी 2025 पूजन विधि (Utpanna Ekadashi Pujan Vidhi)

इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है. व्रती को भगवान विष्णु की पूजा सफेद वस्त्र पहनकर और शुद्ध मन से करनी चाहिए. पूजन के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को गंगाजल या शुद्ध जल से पवित्र करें. फिर एक चौकी पर पीला या लाल वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. अब दीपक जलाकर, अक्षत, पुष्प, तुलसीदल, धूप, फल और पंचामृत से भगवान की पूजा करें. पीले फूल और तुलसी भगवान विष्णु को अति प्रिय हैं, इसलिए उन्हें अवश्य अर्पित करें. पूजन के बाद विष्णु सहस्रनाम या 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करें.

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