Utpanna Ekadashi 2025: 14 या 15 नवंबर, कब है उत्पन्ना एकादशी? जानें सही तिथि और पूजन का शुभ मुहूर्त

Utpanna Ekadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन श्रीहरि और माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है.

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उत्पन्ना एकादशी 2025 (Photo: ITG) उत्पन्ना एकादशी 2025 (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:01 AM IST

Utpanna Ekadashi 2025: व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एकादशी का व्रत होता है. एकादशी का नियमित व्रत रखे से मन में चंचलता समाप्त होती है और धन-आरोग्य की प्राप्ति भी होती है. वहीं, ज्योतिषियों की मानें तो उत्पन्ना एकादशी का व्रत आरोग्य, संतान प्राप्ति तथा मोक्ष के लिए शुभ माना जाता है. यह मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. मौसम तथा स्वास्थ्य के दृष्टि से इस माह में फल खाना अनुकूल होता है. इस बार उत्पन्ना एकादशी का व्रत 15 नवंबर को रखा जाएगा. चलिए जानते हैं कि उत्पन्ना एकादशी की क्या तिथि रहेगी और किस दिन पारण होगा.

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उत्पन्ना एकादशी 2025 तिथि (Utpanna Ekadashi 2025 Tithi)

उत्पन्ना एकादशी की तिथि 15 नवंबर को अर्धरात्रि 12 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 16 नवंबर को मध्यरात्रि में 2 बजकर 37 मिनट पर होगा.

उत्पन्ना एकादशी का पारण 16 नवंबर 2025, रविवार को किया जाएगा. जिसका समय दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से लेकर 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगा.

उत्पन्ना एकादशी 2025 शुभ योग (Utpanna Ekadashi 2025 Shubh Yog)

पंचांग के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी इस बार बहुत ही खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं. दरअसल, इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, विष्कुंभ योग और अभिजीत मुहूर्त का संयोग बन रहा है.

उत्पन्ना एकादशी 2025 पूजन विधि (Utpanna Ekadashi 2025 Pujan Vidhi)

उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्नानादि करें और फिर घर को साफ करें. फिर, पूजा स्थल को साफ करें और श्रीहरि की पूजा करें. इसके बाद श्रीहरि के आगे देसी घी का दीया जलाएं. इसके बाद भगवान विष्णु को तुलसी दल वाला पंचामृत अर्पित करें. फिर, सूर्यास्त के बाद श्रीहरि को भोग चढ़ाते समय विष्णु सहस्त्रनाम, श्री हरि स्तोत्रम का पाठ करें.

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उत्पन्ना एकादशी के नियम (Utpanna Ekadashi NIiyam)

उत्पन्ना एकादशी का व्रत निर्जल और फलहारी या जलीय रखा जा सकता है. सामान्य तौर पर निर्जल व्रत सेहतमंद व्यक्ति को ही रखना चाहिए. इस व्रत में दशमी की रात्रि को भोजन नहीं करना चाहिए. फिर, इस दिन सुबह श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है और उनको फलों का भोग लगाया जाता है.

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