Shadi Vivah Muhurt: हिंदू धर्म में इन 4 तारीखों पर नहीं होता विवाह, ज्योतिषविद मानते हैं अशुभ

Shadi Vivah Muhurt 2025: हिंदू परंपराओं में कुछ विशेष तिथियों को विवाह के लिए अशुभ माना गया है. कहते हैं कि इन तिथियों पर मांगलिक कार्यों का फल शुभ नहीं होता है. इसलिए लोग इन तिथियों पर विवाह करने से बचते हैं.

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क्या आप वर्ष की उन तिथियों के बारे में जानते हैं, जिन पर शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य करना उचित नहीं माना जाता है. (Photo: Pexels) क्या आप वर्ष की उन तिथियों के बारे में जानते हैं, जिन पर शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य करना उचित नहीं माना जाता है. (Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:55 PM IST

Shadi Vivah Muhurt 2025: देवउठनी एकादशी से शादी-विवाह का मुहूर्त खुल चुका है. अब आने वाले कुछ महीनों तक चारों ओर शहनाई की गूंज सुनाई देगी. कहते हैं कि भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने के बाद शादी-विवाह के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त बनते हैं. इस शुभ घड़ी में शादी करने वालों का दांपत्य जीवन बहुत सुखी रहता है. प्यार-प्रेम और रिश्ते में कोई बाधा नहीं आती है. लेकिन क्या आप वर्ष की उन तिथियों के बारे में जानते हैं, जिन पर शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य करना उचित नहीं माना जाता है. हिंदू धर्म में लोग इन तिथियों पर विवाह करने से बचते हैं.

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अस्त शुक्र
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम, विवाह, सौंदर्य और दांपत्य सुख का कारक माना गया है. ज्योतिषविदों की मानें तो शुक्र जब अस्त होते हैं तो इस घड़ी को विवाह के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है. कहते हैं कि अस्त शुक्र के संयोग में विवाह करने से दांपत्य जीवन की खुशियों को ग्रहण लग जाता है. ऐसे लोग विवाह के बाद कभी खुश नहीं रहते हैं.

खरमास
सूर्य देव जब गुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं तो खरमास लगता है. दरअसल, इन राशियों में सूर्य की स्थिति को कमजोर समझा जाता है. इसलिए खरमास के संयोग में मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते हैं. ज्योतिष में सूर्य ऊर्जा, सफलता, स्वास्थ्य आदि का कारक माना जाता है. और जब सूर्य की शक्ति क्षीण होती है तो पति-पत्नी को इन मोर्चों पर लाभ नहीं मिलता है.

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चातुर्मास
देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. इसके बाद सृष्टि का संचालन भगवान विष्णु के हाथ में आ जाता है. भगवान विष्णु जब देवउठनी एकादशी पर जागते हैं तो शादी-विवाह जैसे कार्य पुन: सक्रिय हो जाते हैं. इन दोनों एकादशियों के बीच की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है. इस अवधि में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं.

विवाह पंचमी
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी तिथि को विवाह पंचमी मनाई जाती है. कहते हैं कि भगवान राम और माता सीता का विवाह इसी तिथि पर हुआ था. ज्योतिषविद इस तिथि पर भी लोगों को विवाह न करने की सलाह देते हैं. दरअसल, राम-सीता के विवाह के बाद उनका दांपत्य जीवन कभी सहजन नहीं रहा है. दोनों को 14 वर्ष का वनवास भोगना पड़ा. रावण ने सीता का अपहरण कर लिया. दोनों को जीवन में कई बार अग्नि परीक्षा देनी पड़े. यही कारण है कि इस तिथि को विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है.

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