Saphala Ekadashi 2025: कब है सफला एकादशी? जानें श्रीहरि के पूजन का मुहूर्त और उपासना विधि

Saphala Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में सफला एकादशी का अत्यंत विशेष महत्व माना गया है. इस दिन किया गया पूजा-पाठ, उपवास और दान साधक को सफलता, सौभाग्य और मनचाहे फल प्रदान करता है. मान्यता है कि पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सफला एकादशी मनाई जाती है. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर, सोमवार को रखा जाएगा.

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सफला एकादशी (Photo: ITG) सफला एकादशी (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:24 AM IST

Saphala Ekadashi 2025: सफला एकादशी का अर्थ ही है सफलता दिलाने वाली एकादशी. मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा और नियम से व्रत करता है, उसके रुके हुए कार्य पूरे होने लगते हैं और जीवन में बनी रुकावटें समाप्त होती हैं. इस बार सफला एकादशी 15 दिसंबर को मनाई जाएगी. कहा जाता है कि यह एकादशी शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय और धन-संबंधी क्षेत्रों में अटके कामों को गति देती है और किस्मत को अनुकूल बनाती है. ब्रह्मवैवर्त पुराण और पद्म पुराण में भी इस व्रत का महत्व विस्तार से बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि यह व्रत लक्ष्य सिद्धि और बाधा-निवारण के लिए अत्यंत प्रभावी है.

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सफला एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त (Saphala Ekadashi 2025 Shubh Muhurat)

सफला एकादशी की तिथि इस बार 14 दिसंबर को शाम 6 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 15 दिसंबर को रात 9 बजकर 19 मिनट पर होगा. सफला एकादशी का पारण 16 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 7 मिनट से शुरू होकर सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर होगा. 

सफला एकादशी की पूजा-विधि (Saphala Ekadashi Pujan Vidhi)

सफला एकादशी के व्रत के लिए दो-तीन दिन पहले से तैयारी शुरू कर दी जाती है. भोजन हल्का और सात्त्विक रखने की सलाह दी जाती है ताकि शरीर और मन दोनों व्रत के लिए सहज हो सकें. जो लोग मांसाहार करते हैं, उनके लिए इसे कुछ दिन पहले ही त्यागना आवश्यक बताया गया है, क्योंकि मान्यता है कि मांसाहार की उपस्थिति सफला एकादशी के शुभ फल को कम कर देती है. व्रत वाले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जागना, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनना और घर के मंदिर की सफाई करना आवश्यक माना गया है. सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अर्घ्य देकर दिन की शुभ शुरुआत की जाती है, क्योंकि सूर्य को अर्घ्य देने से कार्यों में ऊर्जा और सकारात्मकता प्राप्त होती है.

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श्रीहरि को अर्पित करें ये एक चीज

इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिन्हें पीले वस्त्र बिछाकर चौकी पर स्थापित किया जाता है. गंगाजल से स्नान, चावल, पुष्प और तिलक अर्पित करने के बाद घी का दीपक जलाया जाता है और 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का 108 बार जप किया जाता है. इस दौरान पूजा करने वाला व्यक्ति अपनी मनोकामनाएं स्पष्ट रूप से भगवान के चरणों में रखता है चाहे वह पढ़ाई में सफलता हो, नौकरी में उन्नति हो, व्यापार में प्रगति हो. इसके बाद भगवान विष्णु को भोग के रूप में पीले फल जैसे केला, संतरा, के साथ घर में बने बेसन के लड्डू या बर्फी अर्पित की जाती है. हर भोग में तुलसी दल रखा जाता है क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय मानी जाती है. दिनभर व्रत रखने वाला व्यक्ति अपनी सेहत के मुताबिक निर्जल, केवल जल या फलाहार का पालन कर सकता है. महत्वपूर्ण यह है कि पूरे दिन मन भगवान में लगा रहे और समय-समय पर मंत्र का जाप होता रहे, ताकि मन शांत और लक्ष्य पर केंद्रित रहे.

किन लोगों के लिए विशेष रूप से शुभ है सफला एकादशी?

जो लोग लंबे समय से किसी अनचाही समस्या से जूझ रहे हों, चाहे कार्य शुरू ही न हो पा रहा हो या बीच-बीच में बार-बार अटक रहा हो, उनके लिए यह एकादशी विशेष रूप से लाभदायक मानी जाती है. छात्रों के लिए भी यह व्रत महत्वपूर्ण है, खासकर उनके लिए जिनकी मेहनत के बावजूद अच्छे अंक नहीं आ रहे या पढ़ाई में मन नहीं लगता है. नौकरीपेशा लोगों के लिए भी यह दिन करियर में प्रगति, प्रमोशन और प्रतियोगिता में सफलता दिलाने वाला माना गया है.

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यही नहीं, जिन लोगों का व्यवसाय बढ़ नहीं पा रहा हो या दिन-प्रतिदिन आर्थिक तंगी महसूस हो रही हो, उनके लिए सफला एकादशी धन के नए मार्ग खोलने वाली कही गई है. बहुत से लोग सामान्य एकादशी तो रखते हैं, लेकिन सफला एकादशी का महत्व समझने के बाद ही पता चलता है कि यह व्रत व्यक्ति के जीवन में कितने गहरे सकारात्मक प्रभाव छोड़ सकता है.

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