Ayodhya Ram Mandir Dhwajarohan 2025: क्या है कचनार का रामजन्मभूमि की धर्मध्वजा से कनेक्शन? जानें

Ayodhya Ram Mandir Dhwajarohan 2025: श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर आज केसरिया रंग की धर्म ध्वजा फहराई गई. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कोविदार वृक्ष के धार्मिक और औषधीय महत्व पर प्रकाश भी डाला.

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कचनार के फूल का धर्मध्वजा से कनेक्शन (Photo: ITG) कचनार के फूल का धर्मध्वजा से कनेक्शन (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:49 PM IST

Ayodhya Ram Mandir Dhwajarohan 2025: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर 25 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केसरिया रंग की धर्म ध्वजा फहराई. यह क्षण ऐतिहासिक माना जा रहा है, क्योंकि यह आयोजन विवाह पंचमी जैसे अत्यंत शुभ दिन पर हुआ. प्रधानमंत्री मोदी ने राम दरबार और गर्भगृह में विशेष पूजा-अर्चना भी की. इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई प्रमुख हस्तियां उपस्थित रहीं.

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161 फीट ऊंचे मंदिर शिखर पर फहराई गई यह केसरिया धर्म ध्वजा कई विशेषताओं से भरी है. ध्वज पर उकेरा गया तेजस्वी सूर्य भगवान राम की तेजस्विता और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है. इसके अलावा इस पर 'ऊं' का चिह्न और कोविदार (कचनार) वृक्ष की कलाकृति भी बनी है, जो रघुकुल की प्राचीन परंपरा से जुड़ा प्रतीक माना जाता है.

मोहन भागवत ने क्यों किया कचनार (कोविदार) वृक्ष का उल्लेख?

समारोह के दौरान RSS प्रमुख मोहन भागवत ने त्रेतायुग के रघुकुल में कोविदार (जिसे कचनार भी कहा जाता है) के महत्व पर विशेष रूप से प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि प्राचीन समय में सूर्यवंश के राजाओं के ध्वज पर कोविदार वृक्ष का चिह्न अंकित होता था. यही कारण है कि राममंदिर की धर्म ध्वजा पर भी इस पवित्र वृक्ष की आकृति बनाई गई है.

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मोहन भागवत ने यह भी कहा कि कोविदार वृक्ष में औषधीय गुण होते हैं और इसका उपयोग अन्न के रूप में भी किया जाता है. कई विद्वान यह भी शोध कर रहे हैं कि कोविदार वृक्ष असल में मंदार और पारिजात, दो देववृक्षों का संकर रूप है, जिसमें दोनों के दिव्य गुण पाए जाते हैं.

उन्होंने रघुकुल की परंपरा का उल्लेख करते हुए कुछ प्रसिद्ध पंक्तियां भी सुनाई, जिसमें उन्होंने कहा कि "छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे" अर्थात, जो दूसरों को छाया देते हैं और स्वयं धूप में खड़े रहते हैं. यह रघुवंश की त्याग और लोककल्याण की भावना का प्रतीक है.

ध्वज पर अंकित कोविदार वृक्ष का धार्मिक महत्व

ध्वज पर उकेरा गया कोविदार वृक्ष का प्रतीक अत्यंत पवित्र माना गया है. इसका उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. देखने में यह आज के कचनार वृक्ष से मिलता-जुलता है, परंपरा में इसे देववृक्षों का संयोग माना गया है. सूर्यवंश के राजाओं के ध्वज पर सदियों से इसी वृक्ष का चिह्न अंकित होता आया है. वाल्मीकि रामायण में भी भरत के ध्वज पर कोविदार का वर्णन है, जब वे श्रीराम से मिलने वन में पहुंचे थे.  

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