Premanand Maharaj: हिंदू धर्म में जल को देवत्व का प्रतीक माना गया है, और जब यही जल तांबे के पात्र में रखा जाता है, तो पंचतत्व में से “जल” और “पृथ्वी” तत्व का दिव्य संगम बन जाता है. ऐसा जल न केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि आत्मा को शांति भी देता है. इसलिए कई संत और साधक अपनी दिनचर्या की शुरुआत इसी जल से करते हैं. प्रेमांनद महाराज ने भी तांबे में रखे जल की उपयोगिता बताई है. जानते हैं उसके बारे में
बौद्धिक शक्ति बढ़ाता है तांबे में रखा जल
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि तांबे के बर्तन में रखा जल केवल सेहत नहीं ज्ञान और ऊर्जा का भी माध्यम है. जब आप इसका इस्तेमाल करते हैं , तो यह आपके भीतर बौद्धिक शक्ति को जगाता है. प्रेमानंद महाराज के अनुसार, तांबे का जल तब सबसे ज्यादा असरदार होता है जब इसे रातभर के लिए पात्र में रखा जाए. ऐसा करने से यह धातु जल में अपनी सकारात्मक ऊर्जा जमा कर देता है. सुबह जब व्यक्ति उस जल का सेवन करता है, तो यह पाचन तंत्र को सही करता है, पेट की समस्याओं से राहत देता है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार करता है. इससे बौद्धिक शक्तियों का भी विकास होता है. प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि तांबे के बर्तन में रखा जल पवित्र होता है और इसे पीना एक साधना के समान है.
आयुर्वेद और विज्ञान में भी है महत्व
तांबे के पात्र में रखे जल अपनी अलग खासियत होती है. आयुर्वेद और विज्ञान दोनों ही मानते हैं कि तांबा मानव शरीर और मन के लिए बेहद फायदेमंद है. तांबे के पात्र में रखा जल एक खासियत रखता है. यह साधारण पानी नहीं, बल्कि ऊर्जा, शुद्धता और जीवनशक्ति का स्रोत होता है. जब जल तांबे के बर्तन में कुछ समय तक रहता है, तो उसमें तांबे के सूक्ष्म तत्व मिल जाते हैं, जो शरीर के लिए औषधि का काम करते हैं.
आयुर्वेद में तांबे को ‘शुद्ध धातु’ कहा गया है, जो शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालती है और पाचन क्रिया को संतुलित करती है. वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तांबे में प्राकृतिक एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सिडेंट गुण पाए जाते हैं, जो पानी को बहेद शुद्ध बनाते हैं.
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