Muharram 2025: तैमूर ने शुरू की थी ताजिया बनाने की परंपरा? जानें हसन-हुसैन से क्या है कनेक्शन

Muharram 2025: इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल का पहला महीना मुहर्रम होता है. इसे 'गम का महीना' भी माना जाता है. इसी मुहर्रम के महीने में हजरत मोहम्‍मद के नाती हजरत इमाम हुसैन को कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था.

Advertisement
मुहर्रम 2025 मुहर्रम 2025

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 10:28 PM IST

Muharram 2025: इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल का पहला महीना मुहर्रम होता है. इसे 'गम का महीना' भी माना जाता है. इसी मुहर्रम के महीने में हजरत मोहम्‍मद के नाती हजरत इमाम हुसैन को कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. हर साल मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की कर्बला में हुई शहादत को याद करते हैं. इस मौके पर ताजिया (मोहर्रम का जुलूस) निकाले जाते हैं. 

Advertisement

कर्बला की याद और ताजियादारी

भारत में ताजिया बनाकर जुलूस निकालने की परंपरा 14वीं शताब्दी में तैमूर लंग के समय से हुई थी. तैमूर हर साल मुहर्रम के दौरान इराक के कर्बला में इमाम हुसैन की दरगाह पर जाया करते थे, लेकिन बीमारी की वजह से वो एक बार कर्बला नहीं जा सके. तैमूर के दरबारियों ने बांस और कागज से इमाम हुसैन की कब्र (मकबरा) की एक छोटी प्रतिकृति बनाई, जिसे फूलों और रंगीन कपड़ों से सजाया गया था और इसे ही ताजिया नाम दिया गया था. जिसे तैमूर के महल में इसे रखा गया था. इस तरह से भारत में ताजिया बनाने और जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत हुई. 

उनके बाद जिस भी सुल्तान ने भारत में राज किया उन्होंने 'ताजिए की परंपरा' को चलने दिया. हालांकि, वो मुख्य रूप से सुन्नी थे और शिया नहीं थे. इस तरह यह परंपरा हिंदुस्तान के अलग-अलग क्षेत्रों में फैल गई. भारत के अलावा ताजिया पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार में भी निकाला जाता है. इसके अलावा, इंडोनेशिया में भी ताजिए की परंपरा छोटे स्तर पर है जिसे इंडोनेशिया में इसे 'ताबुइक्स' कहा जाता है और समुद्र में उतारा जाता है. 

Advertisement

क्या है इमाम हुसैन और कर्बला की जंग का इतिहास?

पैगंबर हजरत मोहम्‍मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को इसी मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवीं) में परिवार और उनके मानने वालों के साथ शहीद कर दिया गया था. कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी. मुहर्रम में मुस्लिम समुदाय हजरत इमाम हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं और इसी शहादत की याद में ताजिया भी निकाला जाता है. 

हजरत इमाम हुसैन का मकबरा इराक के शहर कर्बला में है. कर्बला में ही यजीद और इमाम हुसैन के बीच जंग हुई थी. ये जगह इराक की राजधानी बगदाद से करीब 120 किमी दूर है और इसे बेहद सम्मानित स्थान माना जाता है. बता दें कि देश के कई हिस्सों में हिंदू, किन्नर और दूसरे समुदायों के लोग भी ताजियादारी में पूरी श्रद्धा से हिस्सा लेते हैं. हालांकि, कुछ इस्लामी विचारधाराएं जैसे देवबंदी ताजिया को इस्लाम का हिस्सा नहीं मानती. वे इसे बिदत (यानी नया जोड़ा गया रिवाज) मानते हैं.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement