Muharram 2023 Date: मुहर्रम का पवित्र महीना कल से शुरू? जानें रोज-ए-आशुरा का इतिहास

Muharram 2023 Date: मुहर्रम का महीना 19 जुलाई से शुरू हो रहा है. इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरू हो जाता है. इस्लाम धर्म के लोग इस महीने को बेहद पवित्र मानते हैं. मोहर्रम की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है.

Advertisement
Muharram 2023 Date: कब से शुरू हो रहा मुहर्रम का पवित्र महीना, जानें रोज-ए-आशुरा का इतिहास Muharram 2023 Date: कब से शुरू हो रहा मुहर्रम का पवित्र महीना, जानें रोज-ए-आशुरा का इतिहास

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 8:59 PM IST

Muharram 2023 Date: इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीने मुहर्रम 19 जुलाई यानी कल से शुरू हो रहा है. इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरू हो जाता है. इस्लाम धर्म के लोग इस महीने को बेहद पवित्र मानते हैं. मुहर्रम की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है. इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. इसलिए इस महीने को गम या शोक के तौर पर मनाया जाता है.

Advertisement

मुहर्रम के महीने को लेकर शिया और सुन्नी दोनों की मान्यताएं अलग हैं. शिया समुदाय के लोगों को मुहर्रम की 1 तारीख से लेकर 9 तारीख तक रोजा रखने की छूट होती है. शिया उलेमा के मुताबिक, मुहर्रम की 10 तारीख यानी रोज-ए-आशुरा के दिन रोजा रखना हराम होता है. जबकि सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को रोजा रखते हैं. हालांकि, इस दौरान रोजा रखना मुस्लिम लोगों पर फर्ज नहीं है. इसे सवाब के तौर पर रखा जाता है.

मुहर्रम का चांद दिखते ही सभी शिया मुस्लिमों के घरों और इमामबाड़ों में मजलिसों का दौर शुरू हो जाता है. इमाम हुसैन की शहादत के गम में शिया और कुछ इलाकों में सुन्नी मुस्लिम मातम मनाते हैं और जुलूस निकालते हैं. शिया समुदाय में ये सिलसिला पूरे 2 महीने 8 दिन तक चलता है. शिया समुदाय के लोग पूरे महीने मातम मनाते हैं. हर जश्न से दूर रहते हैं. चमक-धमक की बजाए काले रंग के लिबास पहनते हैं.

Advertisement

ताजिया निकालने का है रिवाज
वैसे तो मुहर्रम का पूरा महीना बेहद पाक और गम का महीना होता है. लेकिन मुहर्रम का 10वां दिन जिसे रोज-ए-आशुरा कहते हैं, सबसे खास होता है. 1400 साल पहले मुहर्रम के महीने की 10 तारीख को ही पैगम्बर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन को शहीद किया गया था. उसी गम में मुहर्रम की 10 तारीख को ताजिए निकाले जाते हैं.

इस दिन शिया समुदाय के लोग मातम करते हैं. मजलिस पढ़ते हैं, काले रंग के कपड़े पहनकर शोक मनाते हैं. यहां तक की शिया समुदाय के लोग मुहर्रम की 10 तारीख को भूखे प्यासे रहते हैं, क्योंकि इमाम हुसैन और उनके काफिले को लोगों को भी भूखा रखा गया था और भूख की हालत में ही उनको शहीद किया गया था. जबकि सुन्नी समुदाय  के लोग रोजा-नमाज करके अपना दुख जाहिर करते हैं.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement