Mokshada Ekadashi 2025: 30 नवंबर या 1 दिसंबर कब है मोक्षदा एकादशी? जानें महत्व और व्रत कथा

Mokshada Ekadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मोक्षदा एकादशी 30 नवंबर को शाम 4 बजकर 30 मिनट से लेकर 1 दिसंबर को दोपहर 2 बजकर 20 बजे तक रहेगी. ऐसे में मोक्षदा एकादशी का व्रत 1 दिसंबर दिन सोमवार को रखा जाएगा.

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मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. (Photo: Pexels) मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. (Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:35 PM IST

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है. इस तिथि को मुक्ति प्रदान करने वाला दिन भी माना जाता है. मान्यता है कि इसी एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. ऐसी मान्यताएं हैं कि इस पावन अवसर पर पूजा, उपवास और दान से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है. इस दिन किया गया दान कई गुना फल देता है. आइए जानते हैं कि इस बार मोक्षदा एकादशी कब है और इसकी पौराणिक कथा क्या है.

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मोक्षदा एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त (Mokshada Ekadashi 2025 Shubh Muhurat)

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मोक्षदा एकादशी 30 नवंबर को शाम 4 बजकर 30 मिनट से लेकर 1 दिसंबर को दोपहर 2 बजकर 20 बजे तक रहेगी. ऐसे में मोक्षदा एकादशी का व्रत 1 दिसंबर दिन सोमवार को रखा जाएगा.

मोक्षदा एकादशी की कथा
पौराणिक कथओं के अनुसार, प्राचीन समय में चंपा नामक एक नगरी थी, जिसका शासन धर्मप्रेमी, न्यायप्रिय और चारों वेदों के ज्ञाता राजा वैखानस करते थे. उनके शासन में प्रजा सुख-शांति से जीवन व्यतीत करती थी.

एक रात राजा ने सपने में देखा कि उनके दिवंगत पिता नरक में भयंकर यातनाएं झेल रहे हैं. यह दृश्य देखकर राजा अत्यंत व्याकुल हो उठे. सुबह होते ही उन्होंने यह सपना अपनी पत्नी को बताया. इसके बाद राजा की पत्नी ने उन्हें किसी विद्वान ऋषि मुनि से सलाह लेने की बात कही.

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राजा तुरंत पर्वत मुनि के आश्रम पहुंचे और दुखी मन से अपने स्वप्न का कारण पूछा. मुनि ने बताया कि उनके पिता अपने जीवनकाल में अपनी पत्नी यानी राजा की माता को बहुत कष्ट देते थे. उसी पाप का परिणाम उन्हें नरक में भोगना पड़ रहा है.

यह सुनकर राजा ने मुनि से विनती की कि क्या कोई उपाय है जिससे उनके पिता को इन कष्टों से मुक्ति मिल सके. तब मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी का व्रत करने और विधिपूर्वक पूजा करने का उपाय बताया. राजा ने मुनि के निर्देशों का पालन करते हुए व्रत किया और उसका समस्त पुण्य अपने पिता को समर्पित कर दिया.

कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को नरक से छुटकारा मिल गया. और तभी से मोक्ष प्रदान करने वाली इस एकादशी का व्रत करने की परंपरा आरंभ हुई. इस दिन पूजा-पाठ और दान-पुण्य के कार्यों से आदमी को पाप से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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