Christmas 2025: कुरान में 35 बार ईसा मसीह का जिक्र, फिर मुसलमान क्यों नहीं मनाते क्रिसमस?

Christmas 2025: क्रिसमस दुनिया भर में 25 दिसंबर को यीशु मसीह (जीसस क्राइस्ट) के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है. ईसाई धर्म के लिए यह बड़ा धार्मिक पर्व है. लेकिन अक्सर यह सवाल उठता है कि जब मुसलमान ईसा (अलैहि सलाम) को पैगंबर मानते हैं, उनका सम्मान करते हैं, तो वे क्रिसमस क्यों नहीं मनाते?

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कुरान में भी ईसा और मैरी के नाम का जिक्र हुआ है (Photo: Pixabay) कुरान में भी ईसा और मैरी के नाम का जिक्र हुआ है (Photo: Pixabay)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:48 AM IST

Christmas 2025: हर साल 25 दिसंबर का दिन ईसाई धर्म के लोगों के लिए बेहद खास होता है. इस दिन को ईसाई धर्म के लोग जीसस की पैदाइश के तौर पर मनाते हैं. जब भी क्रिसमस का जिक्र होता है तो इस बात का जिक्र भी होता है कि इस्लाम को मानने वाले ईसा (अलैहि सलाम) का गहरा सम्मान और प्रेम करते हैं  लेकिन क्रिसमस नहीं मनातें. 

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जीसस मतलब हजरत ईसा
इस्लाम में ईसा (अलैहि सलाम) को अल्लाह द्वारा भेजे गए पैगंबरों में से एक माना जाता है. कुरान में भी उनका जिक्र मिलता है. कुरान ईसा मसीह को एक ऐसी अहम शख़्सियत के तौर पर देखता है जो पैगंबर मोहम्मद के पहले आए थे. बता दें कि कुरान में ईसा का जिक्र पैगंबर मोहम्मद से ज्यादा बार मिलता है. कुरान में ईसा (अलैहि सलाम) का जिक्र कम से कम 35 बार है. 27 बार उनका जिक्र यीशु या ईसा नाम से है, और 8 बार “मसीहा" से है. 

वो जीसस जो ईसाइयत और इस्लाम में एक हैं

ईसाईयों की तरह मुसलमान भी मानते हैं कि ईसा का जन्म बिना पिता के मरियम की कोख से ईश्वर की इच्छा से हुआ था. जैसे अल्लाह ने आदम को बिना पिता और माता के पैदा किया, उसी तरह ईसा का जन्म भी अल्लाह के हुक्म से हुआ. मुसलमान मानते हैं कि ईसा ने लोगों को केवल अल्लाह की इबादत करने की शिक्षा दी, जैसे सभी पैगंबर आदम, नूह, इब्राहिम, मूसा और मुहम्मद (अलैहि सलाम) ने दी थी.

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जीसस को लेकर विश्वास

ईसाई यह मानते हैं कि जीसस को क्रूस पर चढ़ाया गया. मुसलमान मानते हैं कि ईसा को क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया. अल्लाह ने उन्हें बचाया और स्वर्ग में उठा लिया. मुसलमानों का मानना है कि ईसा मसीह कयामत से पहले धरती पर वापस आएंगे. हालांकि ईसाईयों का भी यही मानना है कि ईसा फिर से आएंगे, और उनकी वापसी दुनिया खत्म होने के बड़े संकेतों में से एक है. 

मुसलमान क्रिसमस क्यों नहीं मनाते

इस्लाम यह मानता है कि हम सभी पैगंबरों पर विश्वास करें जो अल्लाह ने भेजे. इसलिए मुसलमान ईसा से गहरा प्रेम और सम्मान रखते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे क्रिसमस नहीं मनाते. इसके पीछे कई वजहें हैं.

ईसाई धर्म में त्रिमूर्ति का दावा किया जाता है, लेकिन मुसलमान एकेश्वरवाद (तौहीद) में विश्वास करते हैं. मुसलमानों के लिए ईसा पैगंबर थे. कुरान में यह साफ कहा गया है कि ईसा को ईश्वर का दर्जा देना इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ है. कुरान की आयत अल-इखलास में यह लिखा है कि  “कहो: वह अल्लाह है, एक अकेला. अल्लाह, हमेशा रहने वाला. न उसने जन्म लिया, न पैदा किया गया. और न ही कोई उसके समान है. वहीं ज्यादातर ईसाई जीसस को ही ईश्वर मानते हैं.  

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क्रिसमस इस्लाम का हिस्सा नहीं

मुसलमान ईसा का सम्मान कई दूसरे तरीकों से करते हैं, जैसे कि बच्चों का नाम ईसा या मरियम के नाम पर रखना, और उनके विनम्रता का पालन करना. मुसलमानों के धार्मिक उत्सव हैं, जैसे ईद अल-फितर (एक महीना रोजा रखने के बाद) और ईद अल-अदहा . ये त्योहार कुरान और पैगंबर मुहम्मद (अलैहि सलाम) की सुन्नत पर आधारित हैं.

मुसलमान पैगंबरों की शिक्षाओं जिसमें सुन्नत और कुरान को मानते हैं.  जिसमें किसी भी जन्मदिन का जश्न मनाने का जिक्र नहीं है. 

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