Hindu Dharam: हिंदू धर्म में बहुत सारे महाकाव्य हैं जिनको पूजा जाता है और पढ़ा भी जाता है. उन्हीं में से सबसे खास महाकाव्य हैं महाभारत और रामायण. अलग-अलग समय में रचे गए ये महाकाव्य इतने विशाल हैं कि कई बार लगता है कि इनका एक-दूसरे से कोई सीधा संबंध नहीं होगा. लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि दोनों ग्रंथों में कुछ ऐसे पात्र हैं जो एक युग से दूसरे युग तक जीवित रहें. यही पात्र हमें बताते हैं कि भारत के महाकाव्य अलग-अलग नहीं, बल्कि एक ही सांस्कृतिक धारा की निरंतर कहानी है. गहराई में जाकर जानते हैं कि कौन कौन से हैं वो खास पात्र.
1. हनुमान जी
पहले पात्र हैं हनुमान जी. हनुमान जी दोनों ग्रंथों को जोड़ने वाली सबसे सशक्त कड़ी हैं. रामायण में वे श्रीराम के परम भक्त, युद्ध के नायक और संजीवनी पर्वत लाने वाले महाबली के रूप में दिखते हैं. मां सीता की खोज से लेकर लंका दहन तक, उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही थी. वहीं, महाभारत में भी उनका उल्लेख मिलता है, जहां उनकी भेंट भीम से एक बूढ़े बंदर के रूप में हुई थी. इसके अलावा, महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज पर भी हनुमान जी विराजमान थे.
2. परशुराम
दूसरे पात्र हैं परशुराम जी. इनका जिक्र भी रामायण और महाभारत दोनों में मिलता है. रामायण में परशुराम जी माता सीता के स्वयंवर में राम जी के धनुषभंग के समय प्रकट हुए थे और श्रीराम की दिव्यता को पहचानकर वह वापिस लौट गए थे. वहीं, महाभारत में परशुराम भीष्म और कर्ण के गुरु थे, उन्होंने दोनों को दिव्यास्त्रों का ज्ञान दिया था. ऐसा भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र परशुराम जी ने ही सौंपा था.
3. देवी गंगा
तीसरी पात्र हैं देवी गंगा. इनका वर्णन भी रामायण और महाभारत दोनों महाकाव्यों में मिलता है. रामायण में ऋषि विश्वामित्र श्रीराम को कहानी सुनाते हैं कि भागीरथ की तपस्या के कारण देवी गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था ताकि उनके पूर्वजों का उद्धार हो सके. वहीं, महाभारत में गंगा, भीष्म की माता थी.
4. जामवंत
चौथे पात्र हैं जाम्बवंत. रामायण के मुख्य पात्र में से एक हैं जामवंत और इन्होंने श्रीराम जी की सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हनुमान जी को उनकी शक्ति याद दिलाने वाले भी जामवंत ही थे. वहीं, महाभारत काल में श्रीकृष्ण से जामवंत का युद्ध कृष्ण जी से लगातार 8 दिनों तक चला था और फिर जामवंत ने अपनी बेटी जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण से करवाया था.
5. विभीषण
रामायण में रावण के बाद लंका का राजा बने विभीषण सिर्फ रामायण तक सीमित नहीं थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे महाभारत काल तक जीवित रहे. जब महाभारत का युद्ध तय हुआ, तो पांडवों को अलग-अलग राज्यों से सहयोग जुटाना था. इसी क्रम में भीम के पुत्र घटोत्कच लंका पहुंचे और उन्होंने विभीषण से पांडवों के लिए समर्थन मांगा.
विभीषण, जो हमेशा धर्म के पक्ष में रहते थे, पांडवों को न्याय का पक्ष मानते हुए उनका नैतिक समर्थन दिया था. वे युद्ध में शामिल नहीं थे लेकिन पांडवों की विजय के लिए उन्होंने अपनी ओर से सहयोग का आश्वासन दिया था.
6. महर्षि वशिष्ठ
छठे पात्र हैं महर्षि वशिष्ठ. रामायण में महर्षि वशिष्ठ अयोध्या के कुलगुरु, राजा दशरथ और श्रीराम के मार्गदर्शक थे. उन्होंने ही श्रीराम और उनके भाइयों को शिक्षा दी थी जिन आठ वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गौ चुरा ली थी, उन्हें महर्षि वशिष्ठ ने श्राप दिया था. जानकारी के लिए आपको बता दें कि वे 8 वसु महाभारत में गंगा जी के गर्भ से जन्मे, जिनमें से एक भीष्म थे.
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