Hajj 2022: हज में मुस्लिम क्या करते हैं? इससे जुड़ी जरूरी बातें जो आपको होनी चाहिए मालूम

हज को इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक माना जाता है. कहा जाता है कि शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिमों को अपने जीवन में कम से कम एक बार हज की यात्रा करनी चाहिए. हज यात्रा के दौरान कई नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है. आइए जानते हैं इस्लाम में हज का क्या महत्व है और इससे जुड़ी जरूरी बातें क्या हैं.

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आज से शुरू हो रही हज यात्रा आज से शुरू हो रही हज यात्रा

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 8:02 AM IST
  • हज यात्रा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक
  • कोरोना प्रतिबंधों के दो साल बाद हज यात्रा पर जा रहे भारतीय

हज मुस्लिमों का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है. इस्लाम के अनुसार, हर मुस्लिम को अपने जीवन में एक बार हज जरूर जाना चाहिए. हर साल सऊदी अरब के पवित्र मक्का शहर में धुल हिज्जा महीने में हज की यात्रा की जाती है. धुल हिज्जा इस्लामिक कैलेंडर वर्ष का 12वां महीना है.

सऊदी अरब में चांद दिखने के बाद सात जुलाई यानी गुरुवार से हज की यात्रा शुरू हो गई है. सऊदी अरब में इस बार बड़ी संख्या में लोग हज यात्रा करने पहुंचे हैं.

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हज को इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक माना जाता है. कहा जाता है कि शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिमों को अपने जीवन में कम से कम एक बार हज की यात्रा करनी चाहिए. हज यात्रा करने का उद्देश्य अपने पाप धोने और खुद को अल्लाह के और करीब लाना है.

कैसे की जाती है हज यात्रा

हाजी हज के लिए धुल-हिज्जा के सातवें दिन मक्का पहुंचते हैं. हज यात्रा के पहले चरण में हाजियों को इहराम बांधना होता है. इहराम दरअसल बिना सिला हुआ कपड़ा होता है, जिसे शरीर पर लपेटना होता है. इस दौरान सफेद कपड़ा पहनना जरूरी है. हालांकि, महिलाएं अपनी पसंद का कोई भी सादा कपड़ा पहन सकती है लेकिन हिजाब के नियमों का पालन करना चाहिए.

हज के पहले दिन हाजी तवाफ (परिक्रमा) करते हैं. तवाफ का मतलब है कि हाजी सात बार काबा के चक्कर काटते हैं. ऐसी मान्यता है कि यह उन्हें अल्लाह के और करीब लाता है. इसके बाद सफा और मरवा नाम की दो पहाड़ियों के बीच सात बार चक्कर लगाए जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि पैगंबर इब्राहिम की पत्नी हाजिरा अपने बेटे इस्मायल के लिए पानी की तलाश में सात बार सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच चली थीं.

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यहां से हाजी मक्का से आठ किलोमीटर दूर मीना शहर इकट्ठा होते हैं. यहां पर वे रात में नमाज अदा करते हैं. 

हज के दूसरे दिन हाजी माउंट अराफात पहुंचते हैं, जहां वे अपने पापों को माफ किए जाने को लेकर दुआ करते हैं. इसके बाद, वे मुजदलिफा के मैदानी इलाकों में इकट्ठा होते हैं. वहां पर खुले में दुआ करते हुए एक और रात बिताते हैं. 

हज के तीसरे दिन जमारात पर पत्थर फेंकने के लिए दोबारा मीना लौटते हैं. दरअसल जमारात तीन पत्थरों का एक स्ट्रक्चर है, जो शैतान और जानवरों की बलि का प्रतीक है. दुनियाभर के अन्य मुस्लिमों के लिए यह ईद का पहला दिन होता है. इसके बाद हाजी अपना मुंडन कराते हैं या बालों को काटते हैं.

इसके बाद के दिनों में हाजी मक्का में दोबारा तवाफ और सई करते हैं और फिर जमारत लौटते हैं.

मक्का से रवाना होने से पहले सभी हाजियों को हज यात्रा पूरी करने के लिए आखिरी बार तवाफ करनी पड़ती है.

हज करने वाले यात्रियों की संख्या

हज दुनिया में मुस्लिमों का सबसे बड़ा जमावड़ा है. कोरोना से पहले हर साल लगभग 20 लाख से अधिक लोग मक्का जाते थे.

कोरोना के दौरान सऊदी अरब से बाहर के हाजियों के लिए मक्का बंद कर दिया गया था. 2021 में कोरोना प्रतिबंधों के बीच हज के लिए सिर्फ 58,745 हाजी ही पहुंचे थे.

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सऊदी अरब ने इस साल अप्रैल में कहा था कि देश और इससे बाहर के 10 लाख से अधिक लोगों को इस साल हज की मंजूरी दी जाएगी.

सऊदी अरब के हज और उमराह मंत्रालय का कहना है कि हज की अनुमति सिर्फ उन्हें दी जाएगी जिन्होंने कोरोना के दोनों टीके लगवाए होंगे या फिर जिनकी उम्र 65 साल से अधिक नहीं हो.

ईद अल अजहा

ईद अल अजहा हज यात्रा के आखिर में मनाया जाता है. यह ईद उल फितर के बाद इस्लामिक कैलेंडर का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है.

ईद अल अजहा के पहले दिन मुस्लिमों को जानवर की बलि देने और उसके मांस का एक हिस्सा गरीबों में बांटने की जरूरत होती है. ऐसा पैगंबर इब्राहिम की याद में किया जाता है. 

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