मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसी कारण यह तिथि गीता जयंती के रूप में मनाई जाती है. गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन मार्गदर्शन का स्वरूप भी है. इसके उपदेश आज भी उतने ही दिव्य माने जाते हैं, जितने प्राचीन काल में थे. हर युग में इसकी प्रासंगिकता बनी रहने के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है. कहते हैं कि इस तिथि पर गीता का पाठ करने से मोक्ष, शांति और विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाता है. इस साल गीता जयंती 1 दिसंबर को पड़ रही है. यानी गीता जयंती से ही साल के आखिरी माह दिसंबर की शुरुआत हो रही है.
गीता जयंती की पूजन विधि
सबसे पहले एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और उस पर भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें. गीता की नई किताब को लाल या पीले कपड़े में लपेटकर वहां रखें. फिर भगवान श्रीकृष्ण को फल, मिठाई और पंचामृत का भोग अर्पित कर उनके मंत्रों का जाप करें. इसके बाद गीता का संपूर्ण पाठ या ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें. पहले गीता की आरती करें और फिर श्रीकृष्ण की आरती उतारें. अंत में अपनी मनोइच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करें.
महाउपाय
1. यदि इस दिन आप श्रद्धापूर्वक भगवान कृष्ण से मनोकामना करते हैं तो वह आपकी याचना जरूरी स्वीकार करते हैं. इस दिन भगवान को पंचामृत का भोग जरूर लगाएं. आपके घर की खुशहाली बनी रहेगी.
2. ऐसी मान्यताएं हैं कि गीता जयंती पर शंख की पूजा और शंखनाद करने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं. शास्त्रों में शंख को लक्ष्मी जी का भाई माना गया है जो श्री हरि को अत्यंत प्रिय हैं. इसलिए शंख पूजन से आपकी आर्थिक स्थिति संवरेगी.
3. इस दिन गीता ग्रंथ का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है. ऐसा करने से गलतियों का प्रायश्चित होता है और पापों से मुक्ति प्राप्त होती है. आप गीता के साथ किसी गरीब या जरूरतमंद को खाने की सामग्री भी दान कर सकते हैं.
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