Durga Puja 2022: पश्चिम बंगाल समेत भारत में कई जगहों पर दुर्गा पूजा का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. ये महोत्सव नवरात्रि के पांचवें दिन से लेकर विजय दशमी तक चलता है. इस दौरान भव्य पंडालों में मां दुर्गा की विशाल मूर्तियों को स्थापित किया जाता है और विजय दशमी के दिन इसे विसर्जित कर दिया जाता है. इसमें मां दुर्गा की जो मूर्ति स्थापित की जाती है, उसमें खास किस्म की मिट्टी शामिल की जाती है.
मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए कहीं पांच तो कहीं दस तरह कि मिट्टी ली जाती है. ऐसा कहते हैं कि देवों और प्रकृति के अंश से मां दुर्गा का तेज प्रकट होता है, इसलिए इसमें कई जगहों की मिट्टी को शामिल किया जाना जरूरी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस प्रतिमा को बनाने के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का प्रयोग किए जाने की भी परंपरा है.
क्यों ली जाती है वेश्यालय से मिट्टी?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक वेश्या मां दुर्गा की बड़ी भक्त थी. लेकिन वो समाज में अपने तिरस्कार से बहुत दुखी थीं. तब मां दुर्गा ने उसकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए ये वरदान दिया था कि जब तक उसकी प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक देवी का उस मूर्ति में वास नहीं होगा.
इसके अलावा इस मिट्टी के इस्तेमाल के पीछे कई और धारणाएं भी हैं जिनमें एक धारणा ये है कि जब कोई पुरुष किसी वेश्यालय में जाता है तो वो अपनी सारी पवित्रता और गुणों को वेश्यालय की चौखट के बाहर छोड़ देता है और वहां से लौटते हुए पाप का बोझ लेकर जाता है. इसलिए चौखट के बाहर की मिट्टी पवित्र हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि वेश्याओं के घर की मिट्टी कई पुरुषों के पुण्यों से भरी होती है.
जबकि एक और मान्यता ये है कि पुरुषों के लोभ और वासना की वजह से ही वेश्यालयों की शरुआत हुई है. वेश्याएं पुरुषों की काम, वासना को धारण कर खुद को अशुद्ध और समाज को शुद्ध करती हैं. लेकिन इसके बदले वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिष्कृत माना जाता है. वो अपनी पूरी जिंदगी तिरस्कार झेलती हैं. यही कारण है कि वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग दुर्गापूजा जैसे पवित्र कार्यों में कर उन्हें थोड़ा ही सही लेकिन सम्मान देने के लिए किया जाता है.
वहीं, कई लोग इस परंपरा को समाज में सुधार और बदलाव लाने के तौर पर भी देखते हैं. इन लोगों का मानना है कि मूर्तियों के निर्माण में वेश्यालय की मिट्टी के इस्तेमाल का मकसद उस पितृसत्तामक समाज के मानस को कचोटना है जिसकी वजह से महिलाओं को नर्क में धकेलने वाला ये कारोबार चलता है.
इन सभी मान्यताओं की वजह से इस अनोखी प्रथा का चलन शुरू हुआ और दुर्गा प्रतिमा के निर्माण के लिए वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल जरूरी हो गया.
शास्त्र-पुराण की जानकारी रखने वाले ये भी कहते हैं कि देवी की मूर्ति बनाने के लिए पांच या दस जगहों की मिट्टी ली जाती हैं. इसमें वेश्याओं के आंगन की मिट्टी के अलावा, पर्वत, नदी के किनारे, बैल के सींघ, हाथी के दांत, दीमक के ढेर, महल के द्वार और चौराहे आदि की मिट्टी को भी शामिल किया जाता है.
यहां बनती है सबसे ज्यादा मूर्तियां
मां दुर्गा की सबसे ज्यादा मूर्तियां कोलकाता के कुमरटली इलाके में बनाई जाती हैं. यहां कोलकाता के सबसे बड़ी वेश्यालय सोनागाछी की मिट्टी ली जाती है. इसके अलावा, इसमें गंगा घाट से ली गई मिट्टी का भी प्रयोग होता है. देवी की मूर्ति बनाने वाले कारीगर देशभर से यहां मिट्टी लेने आते हैं. मूर्ति बनने के बाद इन्हें बड़े-बड़े पंडालों में स्थापित किया जाता है और पंचमी तिथि से इसकी पूजा-पाठ शुरू हो जाती है. दशमी तिथि को धूमधाम से पूजा करने के बाद इस मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है.
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