रक्षा बंधन पारंपरिक रूप से भाई-बहन के पवित्र बंधन का उत्सव है. ऐतिहासिक रूप से, इस त्योहार का इतिहास कई सदियों पुराना माना जाता है, जिसका उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों और महाकाव्यों में मिलता है. रक्षा बंधन भाई-बहन के रिश्ते से कहीं आगे बढ़कर सुरक्षा, सम्मान और आपसी आदर की एक व्यापक सामाजिक परंपरा का पर्व है. विभिन्न भारतीय समुदायों में, बहनें न केवल अपने सगे भाइयों को, बल्कि अपनी बहनों को भी राखी बांधती हैं.
संस्कृतियां, जो छोटी शुरुआत से व्यापक बन जाती हैं
मैकिम मैरियट ने अपनी पुस्तक 'लिटिल कम्युनिटीज़ इन एन इंडिजिनस सिविलाइज़ेशन' में जो विश्लेषण किया है, वह भारतीय संस्कृति में महान परंपराओं और छोटी परंपराओं के बीच गतिशील अंतःक्रिया की गहन समझ प्रदान करता है. उनकी अवधारणा स्पष्ट करती है कि कैसे स्थानीय, या छोटी परंपराएं, व्यापक महान परंपराओं के साथ फैलती हैं. इससे एक ऐसी प्रक्रिया उत्पन्न होती है जिसे वे "सार्वभौमिकीकरण" कहते हैं. यह प्रक्रिया संस्कृति की विशेषता को प्रसार के रूप में प्रकट करती है. जहां स्थानीय सांस्कृतिक प्रथाओं को धीरे-धीरे व्यापक स्वीकृति मिलती है और वह प्रमुख धार्मिक ढांचों में समाहित हो जाती हैं.
छोटी परंपरा से बड़ा त्योहार कैसे बना रक्षाबंधन
लक्ष्मी पूजा की तरह, रक्षाबंधन (जिसमें बहनें अपने भाइयों की सुरक्षा और कल्याण के लिए उनकी कलाई पर राखी बांधती हैं) का उत्सव, पूरे भारत में एक लोकप्रिय त्योहार है. खास बात है कि यह भी ऐसी ही छोटी परंपरा से ही उत्पन्न हुआ है. किशनगढ़ी और अन्य स्थानों पर सलूनो उत्सव भी इसी परंपरा से जुड़ा है. कहा जाता है कि देश के अन्य भागों में प्रचलित छोटी परंपराओं के ऐसे त्योहारों को रक्षाबंधन के रूप में सार्वभौमिक बना दिया गया.
किशनगढ़ी में, सलूनो के दिन विवाहित बेटियां अपने अविवाहित बहनों और भाइयों के माथे पर जौ का तिलक लगाती हैं और बदले में धन या उपहार प्राप्त करती हैं. इसी प्रकार ब्राह्मण पुजारी अपने संरक्षकों (जजमान) को राखी बांधते हैं और बदले में कुछ प्राप्त करते हैं. मैरियट का तर्क है कि रक्षाबंधन का त्योहार सलूनो जैसे त्योहारों के सार्वभौमिकरण(universalization) के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आया.
जब इंद्राणी ने बांधी थी इंद्र समेत देवताओंं को राखी
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, देवताओं और दानवों के बीच हुए महायुद्ध में, जब देवता हार गए, तो वे व्यथित होकर देवताओं के राजा इंद्र के पास गए. उनके भय को देखते हुए, इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बांध दिया. इस कृत्य ने देवताओं में साहस और आत्मविश्वास का संचार किया, जिससे वे दानवों पर विजय प्राप्त कर सके. इसलिए, रक्षा के प्रतीक के रूप में राखी बाँधने की परंपरा शुरू हुई.
द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली में बांधा था चीर
महाभारत की एक प्रचलित कथा में बताया गया है कि कैसे द्रौपदी ने कृष्ण के सुदर्शन चक्र से शिशुपाल के वध के दौरान भगवान कृष्ण की घायल उंगली पर अपनी साड़ी का एक टुकड़ा बांधा था. यह बलिदान श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन किया गया था, जो बाद में रक्षाबंधन का दिन बन गया. इस दिन बहनें अपने भाइयों की रक्षा और सुरक्षा की कामना करते हुए राखी बांधती हैं.
एक अन्य कथा में कहा गया है कि ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने अपनी और अपनी सेना की सुरक्षा के लिए कृष्ण से सलाह मांगी. कृष्ण ने रक्षाबंधन मनाने का सुझाव दिया, जिसमें राखी के धागे में छिपी दिव्य शक्ति पर ज़ोर दिया गया था जो किसी भी बाधा को पार कर सकती है.
राजपूत परंपरा में राखी
राजपूत परंपराओं में, महिलाएं युद्ध में जाने से पहले अपने योद्धा भाइयों के माथे पर तिलक लगाती थीं और रेशमी धागा बांधती थीं, यह विश्वास करते हुए कि यह पवित्र धागा विजय और सुरक्षित वापसी लाएगा. एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना मेवाड़ की रानी कर्णावती से जुड़ी है, जिन्होंने बहादुर शाह से सुरक्षा के लिए मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी. अंत में, राजा पोरस और सिकंदर महान की कथा हमें बताती है कि कैसे सिकंदर की पत्नी ने राजा पोरस को राखी भेजकर उसे अपना भाई बनाया और उनके बीच युद्ध को रोका. यह त्योहार के शांति और सुरक्षा के सार्वभौमिक संदेश का प्रमाण है.
इस प्रकार, समृद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से बुना रक्षाबंधन एक चिरस्थायी और प्रिय त्योहार बना हुआ है जो पूरे भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम, सुरक्षा और आपसी सम्मान के पवित्र बंधन का प्रतीक है.
बिश्वजीत