जिनके बिना भगवान कृष्ण का नाम है अधूरा, आज है उनका जन्मदिन

भगवान कृष्ण का नाम राधा जी के बिना अधूरा रहता है. जानें उनकी जन्मकथा के बारे में और यह भी कि क्यों वह मुरलीवाले को इतनी प्यारी थीं...

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बरसाना में खूब धूम होती है राधाष्टमी की बरसाना में खूब धूम होती है राधाष्टमी की

मेधा चावला

  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:04 PM IST

भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष को राधाष्टमी मनाई जाती है. कहा जाता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण की बाल सहचरी और जगजननी भगवती शक्ति राधाजी का जन्म हुआ था.

इस मौके पर बरसाना में बहुत रौनक रहती है और श्रद्धालु बरसाना की ऊंची पहाडी़ पर पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं. धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है.

राधाजी ही नहीं, ये भी हैं श्री कृष्ण को बेहद प्रिय...

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क्या है राधाष्टमी की कथा
इसकी कई मान्यताएं हैं. पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है. इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे, तब भूमि कन्या के रूप में इन्हें राधाजी मिली थीं. राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया.

इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से भी पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था, तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी , राधा के रूप में पृथ्वी पर आई थीं. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थीं. लेकिन उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ हुआ था. ऐसा भी कहा जाता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी. राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है.

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इस मंदिर की मूर्ति को आता है पसीना...

क्या है महत्व
वेद और पुराणादि में राधाजी का 'कृष्ण वल्लभा' कहकर गुणगान किया गया है. माना जाता है कि राधाजन्माष्टमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसंपन्न बनता है. भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है. श्रीमद देवी भागवत श्री राधा जी कि पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न करने वाला भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता.

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ब्रज और बरसाना में होती है धूम
ब्रज, वृंदावन, मथुरा और बरसाना में जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी भी एक बड़े त्योहार के रूप में मनाई जाती है. इस मौके पर मंदिरों में जन्माष्टमी की तरह खूब सजावट की जाती है.

मंदिरों में बनी हौदियों में हल्दी मिश्रित दही को इकठ्ठा किया जाता है और इस हल्दी मिली दही को गोस्वामियों पर उड़ेला जाता है. इस पर भक्त और खुश होते हैं. राधाजी के भोग के लिए मंदिर के पट बन्द होने के बाद बधाई गायन होता है. इसके बाद दर्शन खुलते ही दधिकाना शुरू हो जाता है. इसका समापन आरती के बाद होता है.

ये है जन्माष्टमी की पूजन विध‍ि...

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ये है पूजन विधि
इस दिन राधाजी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी हुई सुंदर मूर्ति को विग्रह में स्थापित कर इसे पंचामृत से स्नान कराते हैं. इसके बाद उनका श्रृंगार किया जाता है. दोपहर के समय राधाजी की आराधना की जाती है और अंत में भोग लगता है. कई ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्ण की संयुक्त रुप से पूजा की बात भी कही गई है.

वह जगह जहां श्री कृष्ण ने ली थी अंतिम सांस...

इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना चाहिए. सवा मन दूध, दही, शुद्ध घी तथा बूरा और औषधियों से मूल शांति करानी चाहिए. अंत में कई मन पंचामृत से वैदिक मम्त्रों के साथ 'श्यामाश्याम' का अभिषेक किया जाता है. पूजन के बाद पूरा उपवास करें या एक समय भोजन करें. दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं.

नारद पुराण के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाले भक्तगण ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेते है. जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करते हैं वह सभी पापों से मुक्ति पाते हैं.

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