रामनवमी पर वर्षों बाद बन रहा है बेहद शुभ कार्य सिद्धियोग

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्मदिन के सुअवसर पर चैत्र शुक्ल मास के नवमी तिथि को रामनवमी का विशेष पर्व मनाया जाता है.

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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम

वन्‍दना यादव

  • नई दिल्‍ली,
  • 13 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 4:16 PM IST

उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में राम नवमी का त्यौहार पूरे हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है. श्री राम का जन्मोत्सव वैसे तो बेहद शुभ समय होता है, लेकिन इस शुभ दिन कुछ और भी योग संयोग बन रहे हैं, जो शुभता को कई गुना बढ़ाने वाले हैं. किसी भी प्रकार की खरीदी, गृहप्रवेश और शुभ कार्यों के लिए यह विशेष संयोग लाभकारी सिद्ध होगा.

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वर्षों बाद बन रहा है ऐसा शुभ संयोग
गणना के अनुसार इस बार 15 अप्रैल को श्रीराम का जन्मोत्सव, रामनवमी भी है और पुष्य नक्षत्र के साथ-साथ बुधादित्य योग का विशेष संयोग भी बन रहा है. इस रामनवमी पर उच्च का सूर्य, बुध के साथ मिलकर बुधादित्य योग बना रहा है, जो कि‍ बेहद खास मुहूर्त है. इस दिन अबूझ मुहूर्त में पुष्य नक्षत्र भी है, जो सूर्योदय से लेकर 3 बजकर 35 मिनट तक रहेगा.
पुष्य नक्षत्र को बहुमूल्य और विशेष वस्तुओं की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है, लेकिन इसके साथ बुधादित्य योग और रामनवमी का संयोग होने से यह अत्यंत शुभ मुहूर्त बना रहा है. कई वर्षों बाद यह विशेष संयोग बन रहा है.

राम नवमी की कथा
पौराणिक कथानुसार राम नवमी के ही दिन त्रेता युग में महाराज दशरथ के घर विष्णु जी के अवतार भगवान श्री राम का जन्म हुआ था. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म रावण के अंत के लिए हुआ था. श्रीराम को लोग उनके सुशासन, मर्यादित व्यवहार और सदाचार युक्त शासन के लिए याद करते हैं.
इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या आते हैं और प्रातःकाल सरयू नदी में स्नान कर भगवान के मंदिर में जाकर भक्तिपूर्वक उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. राम नवमी के दिन जगह-जगह रामायण का पाठ होता है. कई जगह भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और भक्त हनुमान की रथयात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं.

श्री राम नवमी पूजन विधि
नारद पुराण के अनुसार राम नवमी के दिन भक्तों को उपवास करना चाहिए. श्री राम जी की पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और गौ, भूमि, वस्त्र आदि का दान देना चाहिए. इसके बाद भगवान श्रीराम की पूजा संपन्न करनी चाहिए.

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