राजस्थान में SC कोटे के सीटों पर BJP का दबदबा, क्या बनाए रख पाएगी जीत का ट्रेंड?

राजस्थान में कुछ ही महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं. कांग्रेस के सामने सत्ता में वापसी की चुनौती है तो बीजेपी फिर अपनी सरकार बनाने के लिए तैयारियों में जुट गई है. हर चुनावों के ट्रेंड होते हैं. कुछ रिपीट होते हैं और कुछ अलग हो जाते हैं. राजस्थान में भी चुनावी ट्रेंड रहा है. सत्ता परिवर्तन से लेकर रिजर्व सीटों पर दबदबा तक का. आइए जानते हैं...

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राजस्थान में चुनाव को लेकर बीजेपी ने रणनीति को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है. (फाइल फोटो- PTI) राजस्थान में चुनाव को लेकर बीजेपी ने रणनीति को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है. (फाइल फोटो- PTI)

देव अंकुर

  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 10:49 AM IST

राजस्थान में विधानसभा की तैयारियां तेज हो गई हैं. कुछ फैक्ट ऐसे हैं, जो इस चुनाव को दिलचस्प बनाने वाले हैं. राजस्थान में पिछले 25 साल से सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है. 1998 के बाद से हर पांच साल में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस की सरकारें आती-जाती रही हैं. दूसरा फैक्ट यह है कि एससी और एसटी रिजर्व सीटों के आंकड़े बीजेपी के पक्ष में रहे हैं. विधानसभा की 200 सीटें हैं, इनमें से 59 सीटें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के उम्मीदवारों के लिए रिजर्व हैं. इस चुनाव में दोनों दलों की कोशिश इन समुदाय को अपने पाले में बनाए रखने की है.

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राजस्थान में दोनों पार्टियां अक्सर राजपूत समुदाय को लुभाने की कोशिश करती आई हैं. इसके अलावा, SC और ST के लिए रिजर्व सीटों पर भी फोकस रखा है. 59 आरक्षित विधानसभा सीटों में से 34 एससी के लिए और 25 एसटी के लिए आरक्षित हैं. राज्य की 18 प्रतिशत आबादी यानी 1.2 करोड़ लोग अनुसूचित जाति से संबंधित हैं. इस कैटेगिरी में 50 से ज्यादा जातियां और उपजातियां आती हैं.

पूरे राजस्थान में है SC समाज की आबादी

अनुसूचित जाति की आबादी पूरे राज्य में फैली हुई है. उत्तरी राजस्थान में कॉन्सन्ट्रेशन ज्यादा है, जिसमें गंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जैसे जिले शामिल हैं. पश्चिमी और मध्य राजस्थान में भी बड़ी संख्या में एससी आबादी है और कई एससी आरक्षित सीटें हैं. दक्षिणी राजस्थान में उदयपुर, डुंगुरपुर और बांसवाड़ा जैसे जिले शामिल हैं. वहां अनुसूचित जाति के लोग बहुत कम हैं. यहां की 35 विधानसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटें ही एससी के लिए आरक्षित हैं. हालांकि इस क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों का कॉन्सन्ट्रेशन ज्यादा है.

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एससी आरक्षित सीटों पर कैसे रहे नतीजे

चौथे परिसीमन के बाद से राज्य में 6 बड़े चुनाव हुए हैं. तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव. इन 6 चुनावों के नतीजों में एक बेहद दिलचस्प तस्वीर देखने को मिलती है. तीन-तीन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों का दबदबा रहा. हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद सिर्फ एक बार कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराया. जबकि बीजेपी ने 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 और 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया.

2009 में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन

2013 और 2014 में कांग्रेस एससी आरक्षित क्षेत्रों में एक भी सीट नहीं जीत पाई. 2019 में कांग्रेस सिर्फ एक विधानसभा सीट जीत पाई. जबकि इससे 6 महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 19 एससी आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी. इन आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने सबसे बेहतर प्रदर्शन 2009 के लोकसभा चुनाव में किया. तब कांग्रेस ने 34 एससी आरक्षित विधानसभा क्षेत्रों में से 25 पर बढ़त हासिल की थी. उस साल इन आरक्षित सीटों पर कांग्रेस को 46 फीसदी वोट मिले थे.

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2008 के बाद SC सीटों पर बीजेपी का दबदबा

वहीं, कई अन्य राज्यों की तरह बीजेपी राजस्थान में भी एससी आरक्षित सीटों पर ज्यादा वोट जुटाने में सफल रही है. 2008 के बाद से बीजेपी को इन सीटों पर हर चुनाव में कम से कम 35 फीसदी वोट मिले हैं. 2019 में पार्टी को 59 फीसदी वोट मिले. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी जब कांग्रेस सीटों और वोटों के मामले में आगे थी, तब बीजेपी को इन सीटों पर सिर्फ 1.57 फीसदी कम वोट मिले थे.

मजबूत आधार बनाने में सफल रही है बीजेपी

आंकड़ों से पता चलता है कि 2009 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर जब भी कांग्रेस ने नेतृत्व किया है तो जीत का अंतर मामूली रहा है. लेकिन जब बीजेपी ने नेतृत्व किया है तो पार्टी ने हमेशा बड़ी बढ़त बनाए रखी है. जैसे, 2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को कांग्रेस पर 17 प्रतिशत वोट शेयर की बढ़त मिली थी, जो 15 वर्षों में सबसे कम बढ़त थी. 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने एससी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस से करीब 25 प्रतिशत वोट शेयर की बढ़त हासिल की थी. इससे पता चलता है कि बीजेपी इन इलाकों में अपना आधार मजबूत करने में सफल रही है.

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वर्तमान में बीजेपी का क्या प्लान है?

राजस्थान में कुछ ही महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में बीजेपी की कोशिश है कि वो आरक्षित सीटों पर अपने वोट बैंक को साधकर रखे. इसके लिए एससी/एसटी सीटों वाली सीटों पर सीनियर लीडर्स की मीटिंग फिक्स की जा रही है. रैलियों और सभाएं कराए जाने की तैयारी है. ताकि इन इलाकों में उसका पारंपरिक दबदबा कायम रहे. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर जिले में एक सभा की थी. इस महीने के अंत में भी पीएम सीकर जिले में एक और बैठक करने वाले हैं.

शाह से लेकर नड्डा तक... राजस्थान में मीटिंग और रैलियां

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत पार्टी के अन्य नेता भी बीजेपी की चुनावी प्लानिंग को गति दे रहे हैं. तीनों नेताओं ने इस साल जयपुर, जोधपुर और राज्य के अन्य क्षेत्रों में रैलियां और सार्वजनिक बैठकें की हैं. मेवाड़ क्षेत्र में 17 आरक्षित सीटें (कुल 28 में से) हैं. यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच लगभग कांटे की टक्कर रही है. बीजेपी के पास सात सीटें और कांग्रेस के पास छह सीटें हैं. यह दोनों पार्टियों के लिए प्रचार का अहम क्षेत्र होने जा रहा है.

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राजस्थान में बसपा की विडंबना...

2018 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने छह विधानसभा सीटें जीतीं. हालांकि, पार्टी को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 विधानसभा क्षेत्रों में एक भी सीट नहीं मिली. बसपा ने दलितों की लामबंदी के जरिए कई राज्यों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश की है. उसे राजस्थान में भी कुछ समर्थन मिला है. लेकिन, पार्टी राज्य में सिर्फ 8 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी.
-  उत्तर और मत्स्य क्षेत्रों में बसपा को 11 प्रतिशत और 16 प्रतिशत वोट मिले. हालांकि, एससी आरक्षित सीटों पर पार्टी का प्रदर्शन (छह प्रतिशत) राज्य में पार्टी के औसत से नीचे था.
- 2008 के बाद से राजस्थान में बसपा के प्रदर्शन में गिरावट ही आई है. पार्टी का वोट शेयर पांच फीसदी से नीचे बना हुआ है.
- 2008 के बाद से सभी तीन विधानसभा चुनावों में बसपा वोट शेयर में गिरावट के बावजूद कुछ सीटें जीतने में सफल रही. लेकिन, पार्टी एससी आरक्षित सीटों में एक भी सीट नहीं जीत सकी. 
- 2023 के चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बसपा के इस ट्रेंड में बदलाव देखने को मिलेगा या नहीं.

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(आशीष रंजन के इनपुट के साथ)

 

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