राजस्थान के धौलपुर जिले में सिलिकोसिस बीमारी की आड़ में एक बड़ा घोटाला उजागर हुआ है. ये मामला चिकित्सा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. जनवरी से मार्च 2025 के बीच जिला क्षय निवारण केंद्र से जुड़े कर्मचारियों ने 109 लोगों को सिलिकोसिस पीड़ित बताकर उनके प्रमाण पत्र की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन जब यह मामला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. धर्म सिंह मीणा के संज्ञान में आया, तो उन्होंने जांच बैठा दी. इसमें 106 मरीज फर्जी पाए गए.
डॉ. मीणा के मुताबिक, उन्हें संदेह हुआ जब अचानक सिलिकोसिस के मरीजों की संख्या बढ़कर प्रतिदिन 25 से 35 हो गई, जबकि पहले ऐसे मरीज बहुत कम संख्या में आते थे. जांच के दौरान सामने आया कि अधिकांश मरीजों के एक्स-रे बाहर से कराए गए थे, जबकि ओपीडी नंबर जिला अस्पताल के थे. रेडियोग्राफर द्वारा ओपीडी नंबरों को एक्स-रे से जोड़कर गलत तरीके से बीमारी प्रमाणित की गई. इसके साथ ही अन्य जांचें भी अस्पताल की बजाय बाहर से करवाई जा रही थीं.
जांच के बाद 106 मरीजों को फर्जी घोषित किया गया है और इनके खिलाफ कोतवाली थाना में मामला दर्ज करा दिया गया है. साथ ही पुलिस अधीक्षक, जिला कलेक्टर और स्वास्थ्य विभाग को भी सूचित किया गया है. सूत्रों के अनुसार इस घोटाले में जिला अस्पताल के रेडियोग्राफर और कुछ डॉक्टरों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है. मामला गंभीर होने के चलते पुलिस द्वारा विस्तृत जांच की जा रही है और अन्य कर्मचारियों की संलिप्तता की भी जांच हो रही है.
गौरतलब है कि सिलिकोसिस एक गंभीर बीमारी है, जो पत्थर की खदानों में काम करने वाले मजदूरों को होती है. राज्य सरकार ने सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए एक योजना चलाई है, जिसमें उन्हें ₹1,500 मासिक पेंशन और ₹5 लाख की आर्थिक सहायता मिलती है. यदि ये 106 फर्जी मरीज योजना का लाभ ले लेते, तो सरकार को ₹5.30 करोड़ की आर्थिक चपत लगती, साथ ही पेंशन का भार भी जुड़ता.
फिलहाल, पूरे जिले में सिलिकोसिस मरीजों का नया सत्यापन अभियान चलाया जा रहा है. इस मामले के बाद अन्य जिलों में भी इसी तरह के घोटालों की आशंका जताई जा रही है. यह खुलासा न केवल सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग का मामला है, बल्कि जरूरतमंद गरीब मजदूरों का हक छीनने का भी गंभीर अपराध है.
उमेश मिश्रा