70 बरस पहले अहिंसा के पुजारी की हत्या हुई तो मुहं से निकला हे राम. बीते सत्तर बरस के दौर में राम शब्द में भी सांप्रादायिकता खोजी गई और अल्लाह शब्द में भी. सांप्रादायिक हिंसा ने जिस तरह बरस दर बरस, प्रांत दर प्रात को अपनी चपेट में लिया. शायद ही कोई ऐसा प्रांत बचा हो जो सांप्रदायिक हिंसा से शुरु होकर दंगो में प्रवर्तित हुआ न हो और धीरे धारे मौत का तांडव. सरकारी संपत्ति का नुकसान, घरों में आग, दुकानें स्वाहा, खरबों की सरकारी संपत्ति स्वाहा हुई और लाखों मौतें हुई. तो क्या बापू नहीं तो 70 बरस बाद देश को संभालने वाला भी कोई नहीं. देखें पूरी रिपोर्ट...