सीजफायर के बाद पाकिस्तान में जश्न और भारत में सिर्फ सवाल, युद्ध को लेकर क्या फर्क है दोनों देशों में?

भारत और पाकिस्तान की राजनीतिक संस्कृति में जमीन आसमान का अंतर है. दूसरे पाकिस्तान किसी भी कीमत पर भारत से लंबे युद्ध के लिए तैयार नहीं था. जो देश युद्ध के बीच ही आईएमएफ से बेलआउट पैकेज ले रहा हो उसके बारे में क्या ही सोचा जा सकता है. मतलब साफ है कि एक हाथ में कटोरा और दूसरे हाथ में बंदूक.

Advertisement
पाकिस्तान में सीजफायर के बाद जश्न मनाते लोग पाकिस्तान में सीजफायर के बाद जश्न मनाते लोग

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2025,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद दोनों देशों में अलग माहौल है. पाकिस्तान में लोग विजय जुलूस निकाल रहे हैं , पटाखे छोड़ कर सेलिब्रेट कर रहे हैं. दूसरी ओर भारत में लोग सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि पाकिस्तान पर रहम क्यों किया? भारत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें यह महसूस हो रहा् है कि सीजफायर को स्वीकार कर लेना हमारे लिए हार को मान लेने जैसा ही है. दरअसल भारत और पाकिस्तान दोनों ही एक देश रहे हैं, पर बंटवारे के बाद दोनों ही देशों की प्रकृति में बहुत बड़ा बदलाव हो गया. पाकिस्तान ने खुद को एक इस्लामिक मुल्क घोषित कर दिया. जो इस्लामिक के साथ साथ सैन्य प्रभुत्व वाले देश में बदल गया. जबकि भारत ने खुद को एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में डिवेलप किया और लोकतंत्र को यहां फलने फूलने का मौका मिला. नतीजा यह हुआ कि भारत और पाकिस्तान दोनों के ही प्रकृति में जमीन और आसमान का अंतर हो गया. यही कारण है कि दोनों देशों के लोग युद्ध को लेकर भी अलग  दृष्टिकोण रखते हैं. आइये देखते हैं कि पाकिस्तान में जश्न का माहौल क्यों है?

Advertisement

1- ऐतिहासिक संदर्भ, पाकिस्तान में हार को जीत बताने की परंपरा रही है

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग एक निर्णायक जंग थी. इस जंग के बाद ही पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया था. पाकिस्तान की यह एक बहुत बड़ी हार थी. पाकिस्तान के करीब 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने झुककर अपने हथियार सौंपे थे.

यह पाकिस्तान के लिए बहुत ही शर्मनाक था. लेकिन आपको जानकर यह आश्चर्य हो सकता है कि पाकिस्तान इस जंग को भी जीता हुआ मानता है. वहां के जूनियर कक्षाओं में जो किताबें चलती हैं उनमें छात्रों को यही बताया जाता है कि पाकिस्तान ने इस जंग में भारत को कड़ी मात दी थी. पाकिस्तान का सबसे बड़ा अखबार डॉन उस दिन दिन अपने फर्स्ट पेज की लीड में लिखता है WAR TILL VICTORY.  1947, 1965 और 1999 (कारगिल) के युद्धों को भी पाकिस्तान जीता हुआ बताता है. 

Advertisement

दरअसल पाकिस्तान में सेना और सरकार को जनता का समर्थन बनाए रखने के लिए भारत के खिलाफ मजबूत छवि की जरूरत होती है. हार को स्वीकार करने से नेतृत्व की विश्वसनीयता कम हो सकती है, इसलिए इसे जीत के रूप में पेश किया जाता है.

भारत के खिलाफ भावनाओं को भड़काकर जनता को एकजुट किया जाता है. हार को जीत बताना इस भावना को जीवित रखता है और जनता का ध्यान आंतरिक समस्याओं जैसे आर्थिक संकट, बलूचिस्तान अशांति आदि से हटता है.

पाकिस्तानी सेना देश की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाती है. हार को स्वीकार करना सेना की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए युद्ध के परिणामों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है.

2- सीजफायर को जीत के रूप में क्यों देख रहा है पाकिस्तान

पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और सीमित सैन्य संसाधनों के कारण पूर्ण युद्ध विनाशकारी हो सकता था. भारत की कार्रवाई के चलते पाकिस्तान में इतनी बरबादी हुई है कि युद्ध को रोकना ही उनके नेताओं के लिए उपलब्धि है. स्वयं पीएम शहबाज शरीफ ने युद्ध रोकवाने के लिए अमेरिका और चीन की जिस तरह प्रशंसा की है उसे देखकर साफ लगता है कि पाकिस्तान युद्ध रोकने के लिए कितना डेस्पेरेट रहा होगा.

सरकार और सेना ने सीजफायर को भारत के खिलाफ मजबूत रुख के रूप में दिखाकर जनता का समर्थन हासिल किया. भारत की कार्रवाइयों को कमजोर दिखाने के लिए दुष्प्रचार किया गया कि भारतीय सेना ने मस्जिदों पर हमले किए, बच्चों और सिविलियन को निशाना बनाया गया.

Advertisement

पाकिस्तान किसी भी कीमत पर भारत से लंबे युद्ध के लिए तैयार नहीं था. जो देश युद्ध के बीच ही आईएमएफ से बेलआउट पैकेज ले रहा हो उसके बारे में क्या ही सोचा जा सकता है. मतलब साफ है कि एक हाथ में कटोरा और दूसरे हाथ में बंदूक. पाकिस्तान में महंगाई अपने चरम पर है, विदेशी मुद्रा भंडार इतना ही रहता है कि बस महीने भर का खर्च  किसी तरह चल जाए.

सरकार के पास ले देकर एक परमाणु बम की हैसियत है. उस पर बानगी यह है कि पाकिस्तान के सारे परमाणु हथियारों तक भारत की पहुंच हो चुकी है. 9 मई को हमले में  भारत ने यह दिखा दिया है. उसके एयर डिफेंस प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है. यह भी संभव है कि पाकिस्तान एटम बम छोड़ने के लिए मिसाइल छोड़े और भारत उसके पहले ही उसे ध्वस्त कर दे.

3-युद्ध को लेकर बहुत फर्क है भारत और पाकिस्तान में

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को लेकर दृष्टिकोण में गहरे अंतर हैं, जो ऐतिहासिक अनुभवों, सैन्य और आर्थिक ताकत, रणनीतिक उद्देश्यों, और सामाजिक-राजनीतिक कारकों से उपजते हैं. ये सभी जानते हैं कि पाकिस्तान एक इस्लामी राष्ट्र है. वहां के सेना प्रमुख आसिम मुनीर खुद हिंदू-मुसलमान करते रहते हैं. मुनीर ने पहलगाम अटैक के करीब एक हफ्ते पहले देश के लोगों को हिंदुओं और भारत के खिलाफ नफरत भरी घुट्टी पिलाई थी. पाकिस्तानी नेता खुलेआम कहते हैं कि पाकिस्तान का हर नागरिक काफिरों को मारकर गाजी बनने के लिए जीता है.

Advertisement

इसके ठीक उलट भारत में सभी धर्म के अनुयायियों के लिए बराबर अधिकार मिलते हैं. कोई भी सेना या सरकार का जिम्मेदार शख्स उस तरह की बात नहीं कर सकता जिस तरह की बातें आसिम मुनीर ने की थीं. भारतीय सेना युद्ध को आतंकवाद के खिलाफ लक्षित कार्रवाई और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने का साधन मानता है. भारत का फोकस आतंकी ठिकानों को नष्ट करना और दीर्घकालिक शांति स्थापित करना है. भारत में युद्ध को अंतिम उपाय के रूप में देखा जाता है, यही कारण है कि भारत की परमाणु नीति ‘नो फर्स्ट एग्जेगरेशन’ पर आधारित है.

4.भारत दुनिया में आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है

सैन्य और आर्थिक रूप से पाकिस्तान और भारत का कहीं से भी मुकाबला नहीं है. भारत का रक्षा बजट पाकिस्तान से 9 गुना बड़ा और सक्रिय सैन्यकर्मियों की संख्या दोगुनी है. भारत अब अपने आधुनिक रक्षा प्रणाली के चलते चीन से मुकाबले में है. भारत की अर्थव्यवस्था जिस रफ्तार से भाग रही है उसके मुकाबले में पाकिस्तान कहीं नहीं ठहरता है. ग्रोथ रेट में आज चीन भी भारत से पीछे हो चुका है.

2027 तक भारत दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है. भारत अगर युद्ध में फंसता है तो यह लक्ष्य उससे दूर हो सकता था. आज वैश्विक परिस्थितियां ऐसी बन रही हैं कि पूरी दुनिया का प्रोडक्शन चीन से शिफ्ट होकर भारत की ओर आ सकता है. भारत सरकार को इसके लिए मेहनत करनी है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारत को युद्ध में फंसाने की चीन की कोई साजिश भी रही हो. क्योंकि बांग्लादेश और नेपाल को भारत के खिलाफ भड़काने का कोई भी मौका चीन छोड़ता नहीं है.  

Advertisement

5-दोनों देशों की राजनीतिक संस्कृति

पाकिस्तान में लोकशाही का अभाव उसके जन्म से ही रहा है. पाकिस्तान की बुनियाद टू नेशन थियरी पर टिकी हुई है. हाल ही में पहलगाम अटैक के पहले सेना प्रमुख मुनीर ने इस थियरी की वकालत करते हुए कहा था कि हिंदू और मुसलमान दोनों दो राष्ट्र हैं. पर मुनीर यह बताना भूल गए कि बांग्लादेश भी उन्हीं का एक हिस्सा था और वहां के लोग भी इस्लाम को ही मानते हैं. इस्लाम मानने वाले ही बलूच और सिंध के लोग भी हैं जो अब पाकिस्तान के साथ एक पल भी नहीं रहना चाहते हैं. पाकिस्तान में कब तख्ता पलट हो जाए और मुनीर को जेल में डाल दिया जाए वो खुद भी नहीं जानते होंगे. इमरान खान जो इस समय देश के  सबसे लोकप्रिय नेता हैं उन्हें जेल में डालकर यातनाएं दी जा रही हैं. 

कहने का कुल मतलब यही है कि वहां की जनता, वहां के राजनीतिक दल वही जानते हैं जो उन्हें सेना बताती है. जबकि भारत में ऐसा नहीं है. यहां कि सरकार जनता के इच्छा पर चलती है. इंदिरा गांधी जिन्होंने पाकिस्तान पर इतनी बड़ी जीत हासिल की थी उन्हें जनता ने जरूरत होने पर कुर्सी से उतार दिया था. यही कारण है कि यहां के लोग सवाल करते हैं. यही कारण है कि 7 मई और 9 मई को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी इसके बावजूद भारतीय इसे जश्न के रूप में नहीं ले रहे हैं. वो अपनी सरकार से सवाल कर रहे हैं कि पाकिस्तान से सीजफायर करने के पहले जनता से क्यों नहीं राय ली गई. यह भारत की राजनीतिक संस्कृति है. यहां पर सरकार से सवाल करने की आजादी है. यहां आंख मूंदकर अपनी सेना या सरकार का समर्थन नहीं किया जाता है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement