संघ की राजनीति का अभिन्न अंग है हिंसा, JNU में भी यही हुआ! विपक्ष

एबीवीपी एक कहानी गढ़ रही है कि लेफ्ट से जुड़े छात्रों ने पूजा में बाधा डाली. यह सच्चाई से कोसों दूर है. एबीवीपी अभी तक इस दावे के समर्थन में एक भी सबूत पेश नहीं कर पाई है.

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10 अप्रैल रामनवमी के दिन जेएनयू में पथराव और तोड़फोड़ की घटना हुई थी. 10 अप्रैल रामनवमी के दिन जेएनयू में पथराव और तोड़फोड़ की घटना हुई थी.

मधुरिमा

  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 5:00 PM IST

10 अप्रैल 2022. रामनवमी. इस दिन के पूरे घटनाक्रम के बारे में बताने से पहले उस प्रक्रिया को जानना जरूरी है जिसके द्वारा मेस (रसोई) में मेन्यू तय किया जाता है. दरअसल, हॉस्टल में रहने वाले स्टूडेंट्स की एक निर्वाचित मेस कमेटी होती है, जो मेन्यू को अंतिम रूप देती है. हर महीने का मेन्यू महीने की शुरुआत में ही तय हो जाता है. मेन्यू में किसी भी बड़े बदलाव को छात्रावास की आम सभा की बैठक में रखा जाता है. यह परंपरा रही है कि प्रत्येक मेस में सोमवार, बुधवार, शुक्रवार और रविवार को नॉनवेज परोसा जाता है. हालांकि, स्टूडेंट्स की पसंद का भी ख्याल रखा जाता है. इसमें वेज (शाकाहारी) ऑप्शन और नॉनवेज (मांसाहारी) ऑप्शन भी रहता है. मेस वार्डन या प्रशासन का कोई भी स्तर मेन्यू तय करने में पूरी तरह से शामिल नहीं होता है. यह स्टूडेंट्स या उनके प्रतिनिधियों द्वारा तय किया जाता है.

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आइए, अब 10 अप्रैल की घटनाओं के बारे में समझते हैं. कावेरी छात्रावास के वार्डन ने मेस कमेटी के एक सदस्य को 10 अप्रैल (रविवार) को नॉनवेज नहीं बनाने के लिए कहा. मेस कमेटी के सदस्यों ने यह लिखित रूप से देने के लिए कहा, जिसे वार्डन ने मना कर दिया. इसके बाद कमेटी ने एक और सुझाव दिया और मेस वार्डन से अनुरोध किया कि 10 अप्रैल को रात के खाने में अगर स्टूडेंट्स को नॉन वेज नहीं दिया जाता है और सवाल उठते हैं तो उनको जवाब देना होगा. वार्डन ने ऐसा करने से मना कर दिया. इस तरह मेस कमेटी ने पूर्व निर्धारित मेन्यू के तहत खाना बनाने का निर्णय लिया.

दोपहर करीब 1.30 बजे कावेरी हॉस्टल में जब सप्लायर डिलीवरी करने आया तो एक तरफ एबीवीपी और दूसरी तरफ मेस कमेटी के सदस्यों और अन्य स्टूडेंट्स के बीच शुरुआत दौर में मारपीट होने लगी. एबीवीपी ने मांग की कि मीट की सप्लाई नहीं की जाए. अन्य छात्र चाहते थे कि खाना पूर्व मेन्यू के अनुसार पकाया जाए. सप्लायर्स अन्य हॉस्टल्स में डिलीवरी करने के लिए चला गया और करीब 3:30 बजे कावेरी लौट आया. यहां उससे कहा गया कि 'तेरा धंधा बंद करवा देंगे.' एबीवीपी के लोगों ने कई अपमानजनक टिप्पणियां की. उसके साथ मारपीट की गई और भगा दिया. इस पर मेस कमेटी के सदस्यों ने हंगामा किया. अंतत: नॉन वेज की डिलीवरी नहीं हुई.

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शाम करीब साढ़े 7 बजे मैंने सुना कि एबीवीपी के लोग फिर से छात्रों की पिटाई कर रहे है. मैं लगभग 20-25 मिनट बाद कावेरी हॉस्टल पहुंची. यहां मैंने देखा कि मेरी एक क्लासमेट सारिका का मोबाइल फोन एबीवीपी के लोगों ने तोड़ दिया था. वह भी घायल हो गई. तभी मुझे लगा कि मेरे पैर में लगातार किक लगाई जा रही है. एबीवीपी के गुंडे वीडियोग्राफी से बचने के लिए जानबूझकर मुझे पैर मार रहे थे. तभी उनमें से एक ने मेरे चेहरे पर हमला कर दिया, जिसके बाद मैं कुछ देर के लिए होश खो बैठी. जब मुझे पानी दिया गया और होश आने लगा तो मैंने देखा कि मेस के शीशे तोड़े जा रहे हैं.

यहां छात्र छिपे थे और एबीवीपी के गुंडे मेस के अंदर-बाहर से पत्थर फेंक रहे थे. पिटाई से बचने के लिए हॉस्टल से बाहर जाने की कोशिश की, लेकिन एबीवीपी ने गेट बंद कर दिया था और हम पर पत्थर, फूलदान, ट्यूबलाइट, कांच की बोतलें फेंक रहे थे. छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे. हम मेस में लौट आए. कुछ देर बाद हम कावेरी हॉस्टल से बाहर निकलने में सफल रहे. हालांकि कुछ एक्टिविस्ट्स को निशाना बनाया गया और बुरी तरह पीटा गया. छात्राओं का यौन शोषण किया गया.

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एबीवीपी यह तय करना चाहता था कि यहां हम क्या खा सकते हैं और क्या नहीं!

एबीवीपी एक कहानी गढ़ रही है कि लेफ्ट से जुड़े छात्रों ने पूजा में बाधा डाली. यह सच्चाई से कोसों दूर है. एबीवीपी अभी तक इस दावे के समर्थन में एक भी सबूत पेश नहीं कर पाई है. दूसरी ओर एबीवीपी के गुंडे मीट सप्लायर पर हमला करते दिख रहे हैं, इसका एक वीडियो सबूत है. मीट सप्लायर ने मीडिया को इंटरव्यू देते हुए कहा कि इन गुंडों ने उन्हें परेशान किया, जिसका सामना उन्होंने जेएनयू में अपने 20 साल के कारोबार में नहीं किया.

कावेरी मेस कमेटी ने भी एबीवीपी के सभी दावों को खारिज किया है और एक बयान जारी किया है. इसमें दोहराया है कि एबीवीपी नॉन वेज खाना पकाने के खिलाफ थी.

ABVP का दावा है कि उसे किसी के भी नॉन वेज खाने से कोई दिक्कत नहीं है. हालांकि, इनकी कार्यकर्ता दिव्या ने बीबीसी को एक साक्षात्कार में बताया है कि उन्होंने नॉन वेज को मेस में पकाने से रोक दिया. क्योंकि 'पूजा में नॉन वेज नहीं खा सकते हैं'.

एबीवीपी ने अपने झूठ की भरपाई करने के लिए शाम 5 बजे पूजा और इफ्तार की एक और कहानी गढ़ी. यह बताने की कोशिश की कि वे सांप्रदायिक नहीं हैं जबकि 10 अप्रैल को इफ्तार शाम 06:45 बजे निर्धारित किया गया था.

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हिंसा: संघ की राजनीति का अभिन्न अंग 

हिंसा पूरे देश में एबीवीपी की राजनीति का अहम हिस्सा है. दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र किसी ना किसी कॉलेज में एबीवीपी के रोजाना हमले के गवाह हैं. 21 फरवरी 2017 को रामजस कॉलेज पर एबीवीपी द्वारा किए गए हमले की दर्दनाक यादें कई लोगों के लिए अभी भी ताजा हैं. 5 जनवरी 2020 को ABVP ने कैंपस में फीस वृद्धि का विरोध कर रहे छात्रों पर हमला किया. 14 नवंबर 2021 को एबीवीपी ने जेएनयूएसयू ऑफिस के अंदर छात्रों पर हमला किया और फिर 10 अप्रैल को एबीवीपी ने छात्रों के राइट टू फूड (भोजन का अधिकार) के सवाल पर फिर से हमला किया. एबीवीपी हिंसा का इस्तेमाल छात्रों को डराने-धमकाने और डर से भरा माहौल बनाने के लिए करती है ताकि कोई भी लोकतांत्रिक परंपरा संभव ना हो. संघ पूरे देश में लोगों में भय पैदा करने के लिए हिंसा को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करता है और इस तरह उन्हें नफरत और विभाजन की राजनीति में मजबूर करता है. इस डर के बिना संघ का विभाजनकारी एजेंडा सफल नहीं हो सकता.


एबीवीपी और जेएनयू प्रशासन के बीच सांठगांठ? 

जेएनयू प्रशासन एबीवीपी की लाइन का तोता रहा है. जेएनयू प्रशासन ने हर मौके पर गुंडों की हिफाजत की है. जेएनयू प्रशासन ने हमेशा एबीवीपी की गुंडागर्दी को तर्कसंगत बनाने की कोशिश की है और फिर बेशर्मी से गुंडों को बचाने की कोशिश की है. प्रशासन की ढील ने गुंडों को बार-बार छात्रों पर हमला करने के लिए प्रोत्साहित किया है. इसलिए 5 जनवरी की हिंसा या 14 नवंबर की हिंसा को अंजाम देने वाले आज भी बेखौफ घूम रहे हैं.

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संघ ब्रिगेड हमारे जीवन के हर पहलू को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है 

यह आरएसएस ब्रिगेड की एक विशिष्ट विशेषता है. ये सिर्फ एक विचारधारा वाली दूसरी पार्टी नहीं है. बल्कि इससे कहीं ज्यादा है. कहा जा सकता है कि आरएसएस ब्रिगेड एक ऐसी व्यवस्था है जो पहले समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है और फिर स्वयं आरएसएस/एबीवीपी द्वारा किए गए अपराधों के लिए झूठे आरोप लगाकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ साजिश रचने लगती है. और समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए वे हमारे जीवन के हर पहलू को निर्देशित करने की कोशिश करते हैं. संघ 'लव जिहाद' के झूठे हथकंडे से यह तय करने की कोशिश करता है कि हम किससे दोस्ती करें, प्यार करें या शादी करें. हिजाब पर प्रतिबंध लगाकर संघ ब्रिगेड महिलाओं के कपड़े पहनने के तरीके को तय करना चाहता है. उन्होंने मीट पर प्रतिबंध और लिंचिंग के जरिए हमारे खाने के ऑप्शन को निर्धारित करने का भी प्रयास किया. कुछ हफ्ते पहले ही साउथ दिल्ली एमसीडी के बीजेपी से मेयर ने साउथ दिल्ली में मीट की बिक्री पर रोक लगा दी थी.

जेएनयू की घटना अकेली नहीं है... 

जेएनयू में मीट वेंडर पर हमला और एबीवीपी का नॉन वेज ना बनाने की सनक पूरे देश में संघ ब्रिगेड के बड़े पैटर्न का हिस्सा है। रामनवमी के बहाने संघ संगठनों ने 10 अप्रैल को देशभर में सांप्रदायिक हमलों की एक सीरीज को अंजाम दिया। हमने हिम्मतनगर और खंबात (गुजरात), खरगोन (मध्य प्रदेश), लोहरदगा और बर्नी (झारखंड) और शिबपुर (पश्चिम बंगाल) में ऐसी घटनाएं देखीं. रामनवमी से पहले भाजपा नेताओं के साथ-साथ प्रशासन के लोगों ने मीट की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. मुसलमानों के स्वामित्व या संचालित मीट की दुकानों पर हमला किया गया और तोड़फोड़ की गई. रामनवमी के जुलूस खुलेआम मुसलमानों को उकसाने वाले गाने बजाने का जरिया बन गए. अक्सर ऐसा मस्जिदों के बाहर ताने मारने और भड़काने के लिए होता था.

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मस्जिदों में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। मुसलमानों की दुकानों और घरों में आग लगा दी गई. यह सब भाजपा सरकार के पूर्ण संरक्षण में हुआ। भाजपा शासित मध्य प्रदेश में प्रशासन ने आगजनी और तोड़फोड़ से बचे मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलवा दिया. एमपी के गृह मंत्रालय ने कहा- 'जिस घर से पत्थर आएंगे, पत्थर का ढेर बना देंगे.' बिना किसी जांच के, मध्य प्रदेश सरकार ने फैसला सुनाया था कि हमले में शामिल मुसलमान ही थे. जेएनयू में भी ऐसा ही हुआ था. बिना किसी जांच के जेएनयू प्रशासन ने बताया कि वामपंथियों से जुड़े छात्रों ने रामनवमी हवन में खलल डाला था, इसी वजह से हमला हुआ. काम करने का तरीका सरल है- लोगों पर हमला करने के लिए संघी गुंडों को बुलाओ, गुंडागर्दी को सही ठहराओ, गुंडों की रक्षा करो.

संघ ब्रिगेड त्योहार की आड़ में सांप्रदायिक माहौल को भड़काने की कोशिश कर रहा है. संघ ऐसा करके हिंदुओं और मुसलमानों को विरोधी छोर पर रखकर पूरे समाज को जहर देने की कोशिश कर रहा है. और ऐसा करके संघ अल्टीमेट पावर का मजा ले रहा है.

अंत में, मैं सिर्फ एक ही बात पर जोर दूंगी. खान-पान की आदतें हमारी संस्कृति और परवरिश का हिस्सा हैं. एक बंगाली होने के नाते मांसाहारी भोजन मेरे दैनिक जीवन का एक हिस्सा है. जब से मैंने ठोस खाना शुरू किया तब से मुझे इसी तरह खिलाया गया. संघ यह तय नहीं कर सकता कि मैं या कोई और क्या खा सकता है और क्या नहीं.

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(मधुरिमा कुंडू JNU में AISA की सचिव हैं)

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