बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग का दिन आ गया है. कल गुरुवार को 6 नवंबर को 121 सीटों पर मतदाता वोटिंग करेंगे. एनडीए (बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी आदि) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस आदि) के साथ जनसुराज भी कई जगहों पर तगड़ी फाइट दे रही है.
हर चुनाव में किसी न किसी पार्टी की लहर चल रही होती है. चुनाव परिणाम के पहले तक इसे समझना थोड़ा मुश्किल होता है. पर वोटिंग के दिन आम तौर पर क्लीयर हो जाता है कि वेव किस पार्टी के पक्ष में चल रहा है. इसका कारण यह होता है कि झुंड के झुंड किसी खास पार्टी के समर्थन में निकलते हैं. कई बार वो नारेबाजी भी करते हैं. बूथ के सामने लगे पार्टियों के तंबूओं में जुटने वाली भीड़ भी इस बात की संकेत होती है कि कौन सी पार्टी लीड ले रही है. जाहिर है कि कल गुरुवार को बहुत कुछ स्पष्ट हो जाएगा. कम से कम कुछ खास चीजें जो खास तौर पर 2025 विधानसभा चुनावों में हाई स्टैक पर हैं उनके बारे में अंदाज तो लग ही जाएगा .
1-हिंदुओं का ध्रुवीकरण हुआ या नहीं?
पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में यह देखने को मिला है कि बीजेपी हिंदू कार्ड खेलने से बच रही है. चाहे दिल्ली विधानसभा के चुनाव रहे हों या महाराष्ट्र-हरियाणा के विधानसभा चुनाव रहे हों , बीजेपी ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का खेल नहीं खेला. पर बिहार में कई बार ऐसा लगा कि बीजेपी कट्टर हिंदुत्व की जरिए बिहार में लीड लेना चाहती है. चाहे डेमोग्रेफिक असंतुलन का मुद्दा, घुसपैठियों को बाहर करने की बात ,माता सीता का भव्य मंदिर बनाने की प्लानिंग रही हो कहीं न कहीं हिंदू वोटर्स को एकजुट करना पार्टी की प्रॉयरिटी में रहा है. तेजस्वी के वक्फ बोर्ड संशोधन कानून को रद्द कराने की बात को मुद्दा बनाकर हिंदुओं के ध्रुवीकरण की कोशिश का फायदा भी एनडीए को मिल सकता है. एक सर्वे (फ्रंटलाइन) के मुताबिक, 40% हिंदू मतदाता धार्मिक मुद्दों से प्रभावित हैं, खासकर ऊपरी जातियों (भूमिहार, राजपूत) में.हालांकि, ध्रुवीकरण पूरे बिहार में चौतरफा असर करता नहीं दिख रहा है.
इसके मुकाबले नीतीश कुमार के विकास और महिला सशक्तिकरण पर फोकस ज्यादा कारगर साबित हो रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया के एक विश्लेषण में कहा गया कि 2025 में जाति से ऊपर उठकर 'सुशासन' का नैरेटिव हावी है, जिससे हिंदू वोटों का 60% विभाजन हो रहा है. हालांकि सीमांचल (पूर्णिया, किशनगंज) में इसका फायदा बीजेपी के विरोधी मुसलमानों को एकजुट करने में उठा रहे हैं.
2-ओवैसी फैक्टर कितना काम किया?
असदुद्दीन ओवैसी का एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) फैक्टर सीमांचल क्षेत्र में महागठबंधन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाता रहा है. 2020 में ओवैसी ने सीमांचल में 5 सीटें जीत कर इतिहास रच दिया था. 2025 में 'सीमांचल न्याय यात्रा' से उन्होंने फिर से उसी फॉर्मूले पर दांव लगाया. एआईएमआईएम 10-15 सीटों पर लड़ रही है, जो आरजेडी के मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण को 20% तक कमजोर करने का हैसियत रखती है.
इंडिया टुडे के चार्ट्स दिखाते हैं कि 1990 से मुस्लिम वोट (17% कुल मतदाता) आरजेडी का मजबूत आधार रहे, लेकिन ओवैसी ने 2015-2020 में 5-7% वोट काटे. एक्स पर #OwaisiFactorBihar ट्रेंड में यूजर्स ने ओवैसी को 'बीजेपी का एजेंट' कहा, क्योंकि उनका वोट कटना एनडीए को फायदा पहुंचाता है. तेजस्वी यादव ने ओवैसी को 'उग्रवादी' तक कह दिया, जिसका जवाब ओवैसी ने 'अपनी धार्मिक पहचान पर गर्व' से दिया.
मगर द हिंदू के अनुसार, किशनगंज जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ओवैसी का असर कम हो रहा, क्योंकि स्थानीय मतदाता 'शांति और विकास' चाहते हैं. पहले चरण में 36 मुस्लिम बहुल सीटें हैं, जहां ओवैसी 5-10% वोट काटने की हैसियत रखते हैं. पर इस बार उन्हें ये वोट मिलना भी मुश्किल लग रहा है. गुरुवार को स्पष्ट हो जाएगा कि ओवैसी फैक्टर कितना काम कर रहा है.
3-नीतीश फैक्टर अब भी चल रहा है नहीं?
बिहार की राजनीति के नीतीश कुमार वो सितारा हैं जिनकी चमक पिछले 3 दशकों में कम नहीं हुई है. नीतीश कुमार का 'सुशासन बाबू' फैक्टर 2025 में भी जीवित है, अब देखना ये है कि क्या इसकी चमक फीकी पड़ रही है ?
20 साल की सत्ता के बाद महिलाओं (50% मतदाता) और कल्याण योजनाओं (पेंशन 400 से 1100 रुपये, हर घर बिजली) से उनका कोर वोटबैंक मजबूत है. कई राजनीतिक विश्वलेषकों का मानना है कि नीतीश की पकड़ कमजोर हो रही है. इसके पीछे उनके स्वास्थ्य को लेकर फैली अफवाहें हो सकती हैं. फिलहाल ईबीसी बहुल एरिया में वोटर्स का उत्साह बताएगा कि नीतीश कुमार के लिए जनता अब क्या सोचती है.
4-चिराग पासवान पहले वाला प्रदर्शन दुहरा रहे हैं या नहीं?
चिराग पासवान 2025 में 2020 जितना ही आक्रामक दिख रहे हैं, लेकिन अब एनडीए के 'जूनियर पार्टनर' के रूप में. 2020 में अकेले लड़कर उन्होंने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन इस बार 29 सीटें पाकर उन्होंने शक्ति प्रदर्शन किया. टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, चिराग पहले से 'विजेता' हैं, क्योंकि दलित वोट (16%) को एकजुट कर एनडीए को मजबूत किया. पर विधानसभा चुनावों की राजनीति इतनी आसान नहीं होती है.
पहले चरण में उनके 15 से अधिक सीटों पर दांव हैं. पर उनकी भूमिका इससे कहीं अधिक है. चिराग पासवान का जादू अगर काम करता है तो जेडीयू और बीजेपी को कई दर्जन सीटों पर फायदा हो सकता है. जाहिर है कि यह तभी संभव होगा जब चिराग के कहने पर उनके समर्थक अपना वोट दूसरे को ट्रांसफर करने को तैयार हों. क्योंकि चिराग की पार्टी को वोट देना अलग है और सहयोगी पार्टियों को वोट देना बिल्कुल अलग मामला होता है.
5-क्या एंटी इंकंबेंसी है बिहार में?
बिहार में एंटी इंकंबेंसी है भी और नहीं भी है. क्योंकि बिहार में आज भी लालू यादव के जंगलराज की चर्चा सबसे अधिक है. दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जो नीतीश कुमार को पसंद करते हैं पर उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए परिवर्तन चाहते हैं. जाहिर है कि एक तीसरी श्रेणी भी है जो यह समझते हैं कि नीतीश कुमार ने कुछ नहीं किया है. हालांकि ऐसे लोग अकसर लालू समर्थक ही हैं . जिन्हें हर हाल में वोट तो आरजेडी या कांग्रेस को ही देना है.
फिलहाल जिस तरह का माहौल बिहार में दिख रहा है उसमें कहीं भी ऐसा नहीं है कि सत्ताधारी दलों के नेताओं को लोग देखना नहीं चाहते हैं. नीतीश कुमार की रैलियों में पहले जैसी ही भीड़ हो रही है. जेडीयू के कैंडिडेट जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं.जाहिर है कि नीतीश की लोकप्रियता पर ही बीजेपी का भी भविष्य भी बिहार में है. अगर जेडीयू के तंबुओं में कल भीड़ देखने को मिलती है तो जाहिर है नीतीश का जादू अभी भी चल रहा है.
संयम श्रीवास्तव