प्रवासी बिहारियों के वोट किस गठबंधन के लिए गेमचेंजर साबित होंगे? सबकी अपनी-अपनी रणनीति

बिहार विधानसभा चुनावों में जीत का परचम लहराने में इस बार प्रवासी बिहारियों की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है. जिस तरह कांटे का संघर्ष दिख रहा बिहार में दिख रहा है उसमें एक एक वोट बहुत कीमती हो जाता है. आइये देखते हैं कि प्रवासी वोटर्स को रिझाने में कौन पार्टी क्या कर रही है?

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छठ पर घर जाने की जद्दोजहद एक बिहारी ही समझ सकता है. छठ पर घर जाने की जद्दोजहद एक बिहारी ही समझ सकता है.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 3:37 PM IST

बिहार में प्रवासी वोटर्स की भूमिका बहुत बड़ी है. एक अनुमान के मुताबिक करीब 30 से 32 लाख प्रवासी बिहारी वोट हर विधानसभा चुनावों में वोट डालने आते हैं. इन्हें लाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर पार्टियां तैयारी करती हैं. क्योंकि ये एक तरह से ठोस वोट होते हैं. जो शख्स कई सौ किलोमीटर की यात्रा करके जिस पार्टी के खर्चे पर जाता है अमूमन उसे ही वोट करता है. पार्टियां न केवल उनके टिकट की व्यवस्था करती हैं बल्कि उनके नुकसान की भरपाई भी करती हैं. जाहिर है कि इतना होने के बाद किसी का भी वोट पक्का हो जाता है कि उसका वोट किसे जाना है. इस बार भी प्रवासी वोटर्स को लाने के जबरदस्त तैयारी हो रही है.

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पर छठ त्योहार के बाद वोट देने के लिए 10 दिन से 15 दिन रुकना पड़ सकता है. जिसके चलते यह कहा जा रहा है कि एनडीए को वोट देने वाले इतना टाइम नहीं दे पाएंगे जबकि महागठबंधन के वोटर्स के पास टाइम ही टाइम है. जाहिर है कि इस बात में दम है. पर एनडीए को अपनी तैयारी और संसाधनों के बल पर भरोसा है कि प्रवासी बिहारियों का अधिकतर वोट उसे ही मिलेगा. आइए देखते हैं कि प्रवासी बिहारियों को पटाने में सबसे आगे कौन दिख रहा है?

बिहार में कुल प्रवासी वोटर्स और उनका प्रभाव

सबसे पहले देखते हैं कि बिहार में कुल प्रवासी वोटर कितने हैं. बिहार आर्थिक सर्वे 2024 के अनुसार, 3 करोड़ से अधिक बिहारी देश के विभिन्न हिस्सों में रोजगार के लिए पलायन करते हैं. इनमें लगभग 50 लाख पंजीकृत मतदाता हैं, जो निर्वाचन आयोग (ECI) की वोटर लिस्ट में शामिल हैं. यह आंकड़ा NSSO 78वां राउंड (2020-21) और ECI की जनवरी 2025 अपडेट पर आधारित है. 
 दिल्ली-NCR  में सबसे अधिक करीब 12 प्रतिशत बिहारी समुदाय रोजगार के लिए आते है. दूसरे नंबर पर गुजरात है जहां करीब 8 प्रतिशत बिहारी प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिलता है. इस सूची में महाराष्ट्र 7 प्रतिशत के साथ तीसरे नंबर पर, हरियाणा 5 प्रतिशत और पंजाब 4 प्रतिशत के चौथे और पांचवें नंबर पर है.

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मतलब साफ है कि अधिकतर बिहारी बीजेपी शासित राज्यों में ही हैं. जाहिर है कि इसका सबसे अधिक फायदा बीजेपी उठाने की तैयारी में है. छठ पूजा (27- 28  अक्टूबर 2025) के दौरान IRCTC की 200+ स्पेशल ट्रेनों में 1 करोड़ से अधिक यात्रियों की बुकिंग हुई है. जबकि  2020 के आंकड़ों के अनुसार, 50 लाख में से 25-30 लाख ही घर आकर वोट डाल पाते हैं. शेष काम की मजबूरी, ट्रेन की भीड़ या आर्थिक दबाव के कारण नहीं आ पाते. 

ECI ने Form-12D के जरिए बाहर रहते हुए वोट डालने की सुविधा दी है, लेकिन 95% से अधिक प्रवासी घर आकर ही मतदान करते हैं. अब तक इतिहास रहा है कि अगर प्रवासी वोटर्स का प्रतिशत बढ़ता है तो एनडीए की जीत सुनिश्चित होती है. माना जाता है कि 2005 में प्रवासी वोटर्स के चलते 45% से 52% तक बढ़ गया नतीजा यह हुआ कि NDA की जीत हुई. इसी तरह 2010 में छठ पर घर लौटे 28 लाख वोटरों ने नीतीश को दूसरी बार सत्ता दिलाई.  2020 में वोटिंग प्रवासी वोटर्स के चलते 6% वोटिंग अधिक हुई और NDA को 125 सीटें मिलीं.

क्या छठ पूजा के बाद एक हफ्ता से 2 हफ्ता रुकेंगे लोग

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में, छठ पूजा (25-28 अक्टूबर 2025) के बाद प्रवासी बिहारियों का रुकना एक बड़ा सवाल है. एक सर्वे के अनुसार छठ पर 48 लाख से अधिक प्रवासी (45.78 लाख देसी, 2.17 लाख विदेशी) घर लौटते हैं. लेकिन पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को है. यानि कि 9-10 दिनों का गैप है. क्या आज की तारीख में कोई भी कामगार या नौकरीपेशा व्यक्ति अपने वोट के लिए 10 से पंद्रह दिन बरबाद करेगा? नौकरीपेशा लोगों को तो इतनी लंबी छुट्टी नहीं मिलने वाली है. छोटे मोटे रोजगार करने वाले जैसे सब्जी बेचने वाले और चाय पान की दुकान करने वाले अपना रोज का नुकसान केवल वोट देने के लिए नहीं करेंगे. पर यह जानकर हैरानी होगी कि कम से कम 30 लाख वोटर्स वोट देने के लिए रुक ही जाते हैं. 

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2005-2010 में छठ के बाद चुनावों में मतदान 45% से 52% बढ़ा, क्योंकि प्रवासी रुके थे और NDA को फायदा हुआ. 2015 में 10 दिनों के गैप में 56.91% टर्नआउट हुआ था. 2020 में छठ के साथ ही मतदान, लेकिन इस बार EC ने जानबूझकर गैप दिया ताकि 70 लाख रिटर्नी वोट डाल सकें. अब इसका कितना फायदा होगा इसका अनुमान लगाना कठिन है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि कोसी, तिरहुत, पूर्णिया में 50% रिटर्नी रुकेंगे और वोट डालकर ही वापस जाएंगे.

किस पार्टी की क्या तैयारी है

पिछले कई विधानसभा चुनावों से प्रवासी वोटर्स NDA को ऐतिहासिक फायदा पहुंचा रहे हैं. लेकिन इस बार महागठबंधन पलायन मुद्दे पर हमलावर है.जनसुराज ने भी पलायन रोकने के लिए प्लान पेश किया है. पर बीजेपी अलग ही लेवल पर खेल रही है.

बीजेपी ने प्रवासियों को बिहार लाकर अपने पक्ष में वोट डलवाने के लिए जबरदस्त आउटरीच प्लान बनाया है. पार्टी ने 3 करोड़ प्रवासियों को लक्ष्य बनाकर सभी वोटर पर फोकस किया है. करीब 4 महीने पहले से ही जुलाई से 70 शहरों (दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र) में प्रवासियों से मुलाकात की जा रही है. अमित शाह का मिशन प्रवासी बिहारी छठ के 48 घंटे बाद डोर-टू-डोर अभियान चल़ने वाला है. 

प्रवासियों को बिहार तक लाने के लिए फ्री ट्रेन/बस व्यवस्था, कंपनियों से पेड छुट्टी दिलाने आदि के लिए करीब 54 कद्दावर नेताओं की ड्यूटी लगाई है. हरियाणा में करीब 800 लोगों को पार्टी ने इस कार्य को संपन्न करने के लिए तैनात किया गया है. बिहार फर्स्ट वीडियो और WhatsApp ग्रुप्स से 2 करोड़ प्रवासियों से संपर्क साधा गया है.

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विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र की योजनाओं (जैसे PM आवास, उज्ज्वला) और बिहार की सड़क-बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के चलते प्रवासी बिहारियों को घर पहुंचना आसान हुआ है. जाहिर है कि इसका फायदा NDA को मिलेगा.

जद(यू) ने EBC और महिला प्रवासियों पर  फोकस किया गया है. 2 करोड़ महिलाओं को स्वरोजगार, 125 यूनिट फ्री बिजली की बात प्रवासियों को समझायी जा रही है. लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) रणनीति से OBC प्रवासियों को साधने की कोशिश हो रही है.इसी तरह चिराग पासवान ने अपने समुदाय के करीब 46 लाख प्रवासियों का लक्ष्य किया है. 

तेजस्वी यादव ने सभी बिहारी परिवारोंं को एक नौकरी देने का वादा करके पलायन बंद करने पर फोकस किया है. आरजेडी प्रवासियों को समझा रही है कि वे कुछ दिन और रुके. Voter Adhikar Yatra के जरिए यह बताने के कोशिश भी है कि आरजेडी की वजह से प्रवासियों का वोट बच गया. जन सुराज भी प्रवासी वोटर्स को लेकर जबरदस्त तैयारी में है. प्रशांत किशोर ने 1 साल में पलायन रोकने का वादा किया है. 

प्रवासी वोटर्स भी जाति देखकर देंगे वोट

एक बात और गौर करने लायक है कि बिहार का वोटर दस साल या 20 साल से बाहर है पर अपने राज्य में लौटने के बाद वह अपनी जाति का ही होता है. जाहिर है कि प्रवासी बिहारी वोटर वोट डालते हुए भी अपनी जाति को प्राथमिकता देंगे. यह बिहार की राजनीति का अटल सत्य है. 50 लाख पंजीकृत प्रवासी (3 करोड़ कुल) में 55% OBC-EBC, 25% SC/ST, 20% अन्य हैं. NSSO और CSDS सर्वे बताते हैं कि 72% प्रवासी वोटर पहले जाति देखते हैं, फिर विकास या नौकरी. दिल्ली, गुजरात, मुंबई में रहने वाले बिहारी जातीय संगठनों (यादव महासभा, कुर्मी संघ, कुशवाहा समाज) से जुड़े हैं, जो वोटिंग डायरेक्शन देते हैं.
दिल्ली एनसीआर में यादव समाज की मीटिंग में तेजस्वी को समर्थन की घोषणा हो चुकी है. इसी तरह कुर्मी संघ ने नीतीश को समर्थन दिया है.गुजरात (सूरत)  मेंकुशवाहा समाज ने राजद को 8 सीटों पर वोट देने का ऐलान किया है.महाराष्ट्र का दलित संगठन चिराग पासवान के साथ खुल कर आ चुका है.

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सबसे अधिक संसाधन वाले दल को सबसे अधिक फायदा

जाति के बाद एक और अटल सत्य संसाधन है. संसाधन के बल पर बहुत से वोट अपने पक्ष में कर लिए जाते हैं. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे अधिक संसाधन वाला दल NDA (बीजेपी-जद(यू) गठबंधन) है, जो प्रवासी वोटर्स से सबसे बड़ा फायदा उठा सकता है. केंद्र की ताकत (PM मोदी का ब्रांड, भोजपुरी अपील) और राज्य संसाधनों (नीतीश की EBC योजनाएं) के साथ NDA का बजट महागठबंधन से 3-4 गुना ज्यादा है. विकास-योजनाओं को इतना प्रचारित प्रसारित किया गया है कि अधिकतर प्रवासी NDA के पक्ष में जा सकते हैं.

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