क्या नई दिल्ली सीट का विधायक 2025 में भी मुख्यमंत्री बनेगा? | Opinion

नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अब तक हुए 7 चुनावों में 6 बार जीतने वाले विधायक दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं. पहले शीला दीक्षित, फिर अरविंद केजरीवाल, लेकिन बीजेपी को अब तक ये मौका नहीं मिला है - क्या बीजेपी को सत्ता मिली और प्रवेश वर्मा जीते तो उनको मुख्यमंत्री बनाया जाएगा?

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2013 के बाद अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट पर पहली बार मुश्किल लड़ाई में फंसे हैं. 2013 के बाद अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट पर पहली बार मुश्किल लड़ाई में फंसे हैं.

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 07 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:11 PM IST

नई दिल्ली विधानसभा सीट से जुड़े एक अपवाद को छोड़ दें तो जीतने वाला विधायक ही दिल्ली का मुख्यमंत्री बनता है. और इस बार ये तस्वीर भी 8 फरवरी को साफ हो जाएगी. चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा कर दी है. दिल्ली में इस बार 5 फरवरी को वोटिंग होगी, और 8 फरवरी को वोटों की गिनती होनी है. 

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2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में लड़ाई और भी दिलचस्प हो गई है - क्योंकि, मुकाबला एक पूर्व मुख्यमंत्री और दिल्ली के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों के बीच होने जा रही है. 

अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र के ही विधायक हैं, और चौथी बार चुनाव मैदान में हैं. जेल से जमानत पर छूटने के बाद इस्तीफा देकर अरविंद केजरीवाल पूर्व मुख्यमंत्री हो चुके हैं. 

नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी ने पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा और कांग्रेस ने भी पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को टिकट दिया है. प्रवेश वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, और दिल्ली की ही मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित कांग्रेस की तरफ से अरविंद केजरीवाल को चैलेंज कर रहे हैं.  

लड़ाई तो दिलचस्प होनी ही है, लेकिन उससे भी दिलचस्प होगा वो सवाल कि क्या नई दिल्ली का विधायक 2025 में भी दिल्ली का मुख्यमंत्री बनेगा?

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नई दिल्ली सीट क्या फिर चुनावी मशाल बनेगी?

2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार अरविंद केजरीवाल चुनावी राजनीति में उतरे थे, और कांग्रेस की दिग्गज नेता तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शिकस्त देकर चुनाव जीते थे. बाद के चुनावों में भी कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से चुनौती मिली, लेकिन नतीजे नहीं बदले. 

ताजा हालात पहले से काफी अलग हैं. एक तो अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली शराब नीति केस में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं, दूसरे दिल्ली मुख्यमंत्री आवास में हुए रेनोवेशन में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर बीजेपी और कांग्रेस ‘शीशमहल’ का नाम लेकर निशाना बना रहा हैं - और इस बार पाला भी बीजेपी के प्रवेश वर्मा जैसे मजबूत नेता से पड़ा है. 

संदीप दीक्षित के मैदान में होने से, हो सकता है कांग्रेस के बचे खुचे समर्थक संदीप दीक्षित के साथ सहानुभूति रखते हों, और संभव है चुनाव में उनको फायदा भी मिले - लेकिन प्रवेश वर्मा की तरफ से कड़ी टक्कर मिल सकती है. 

शायद यही कारण है कि संदीप दीक्षित की जगह, आम आदमी पार्टी के निशाने पर पहले नंबर पर प्रवेश वर्मा आये हैं. आम आदमी पार्टी ने प्रवेश वर्मा पर नई दिल्ली में महिलाओं को 1100-1100 रुपये बांटने का आरोप लगाया था, उनके खिलाफ ईडी में शिकायत भी दर्ज कराई है, जिसे बीजेपी नेता ने खारिज कर दिया है. 

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पलटवार में प्रवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल को शराब नीति केस में निशाना बनाते हुए कहा है, जब दिल्ली कोविड से जूझ रही थी, जब लोगों को ऑक्सीजन की जरूरत थी, तब अरविंद केजरीवाल जी 'हर बोतल पर मुफ्त बोतल' बांट रहे थे. प्रवेश वर्मा आरोप लगाते हैं, करोड़ों रुपये खर्चकर ‘शीशमहल’ बना लिया, लेकिन दिल्ली की जनता की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया - और वादा करते हैं, दिल्ली में कई काम हैं… जैसे, यमुना की सफाई, प्रदूषण पर लगाम लगाना... जब भाजपा की सरकार बनेगी, हम ये सारे काम करेंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तर्ज पर हमला बोलते हुए प्रवेश वर्मा कहते हैं, दिल्ली में मौजूदा सरकार सिर्फ आपदाएं ही लाई है. दिल्ली की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ताधारी पार्टी को ‘आप-दा’ करार दिया था. 

दिल्ली का CM नई-दिल्ली से ही होगा क्या?

नई दिल्ली विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटों को ज्यादा असरदार माना जाता है. हो सकता है, शीला दीक्षित को इस बात का भी फायदा मिलता रहा है, लेकिन 2013 में परिस्थितियां काफी बदली हुई थीं - तब भष्ट्राचार के खिलाफ योद्धा के रूप में सामने आये अरविंद केजरीवाल ने नये मानक स्थापित कर दिये. 

सवाल है कि क्या ब्राह्मण वोटर इस बार शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मौका देगा? 

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नई दिल्ली का ब्राह्मण वोटर बीजेपी और कांग्रेस दोनो का परंपरागत समर्थक रहा है, लेकिन केजरीवाल के प्रभाव के कारण 2013 के बाद से न तो कांग्रेस की चली, न बीजेपी की. 

पंजाबी और खत्री समुदाय के मतदाता भी इस सीट पर हैं, और अच्छी तादाद में दलित वोटर भी हैं.
1993 में नई दिल्ली सीट पर हुए पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कुंवर सेन जीते थे. तब मुख्यमंत्री तो बीजेपी के ही मदनलाल खुराना बने थे, लेकिन वो मोती नगर से विधायक थे. 

अब तक हुए 7 विधानसभा चुनावों में 3 बार कांग्रेस और 3 बार ही बीजेपी को जीत हासिल हुई है - और 7 में से 6 बार के विधायक दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 2013 से 2020 तक चुनाव जीत चुके हैं, और अब चौथी बार चुनाव मैदान में हैं. केजरीवाल से पहले 1998, 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में बतौर कांग्रेस उम्मीदवार शीला दीक्षित चुनाव जीतने में सफल रही थीं, और दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनीं. 

जमानत की शर्तों के हिसाब से इस बार चुनाव जीतने पर भी अरविंद केजरीवाल का मुख्यमंत्री बन पाना आसान नहीं लगता है, अगर सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिल जाती है तो बात अलग है. आतिशी के तो शपथ लेने से पहले ही आम आदमी पार्टी की तरफ से बता दिया गया था कि वो अस्थाई मुख्यमंत्री हैं. 

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नई दिल्ली सीट के ट्रैक रिकॉर्ड से तो चुनाव जीतने वाले के मुख्यमंत्री बनने की संभावना ज्यादा लगती है, लेकिन अभी तक ये साफ नहीं है कि सत्ता में लौटने की सूरत में कांग्रेस संदीप दीक्षित, और बीजेपी प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाएगी या नहीं. 
 

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