टैरिफ के मामले में क्या भारत भी ट्रंप को चीन-ब्राजील जैसा जवाब दे सकता है?

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ट्रंप को ललकार के 2026 के चुनावों के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं. ध्यान रहे कि लूला कम्यूनिस्ट हैं. भारत में अगर कम्यूनिस्ट सरकार होती तो हो सकता है कुछ ऐसा ही यहां भी हो रहा होता. इकॉनमी भले चौपट हो जाती पर ट्रंप को भारत से भी ललकार मिलती.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:50 AM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निशाने पर लगातार भारत है. कभी टैरिफ के बहाने तो कभी एपल और अन्य अमेरिकी कंपनियों पर भारत में प्रोडक्शन न करने की चेतावनी देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को अपने अर्दब में लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं.भारत के बार-बार इनकार करने के बाद भी ट्रंप करीब 30 बार बोल चुके हैं कि भारत-पाकिस्तान की जंग उन्होंने व्यापार के नाम पर रुकवा दी. उनके व्यक्तित्व के हल्कापन का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है.

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भारत में एक कहावत है कि ऐसे लोगों के साथ जैसे को तैसा वाला व्यवहार ही सही रहता है. वैसे भी ट्रंप ऐसे ही लोगों से सही रहते हैं. चीन ने ट्रंप को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया और वो नरम पड़ गए. अब ब्राजील भी उन्हें उसी भाषा में जवाब दे रहा है. जिसकी उम्मीद ट्रंप को बिल्कुल भी नहीं रही होगी. ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इंसियो लूला डी सिल्वा ने डोनाल्ड ट्रम्प की नाक में बढ़िया दम किया है. 50% टैरिफ की धमकियों के बाद डी सिल्वा ने कहा कि हम इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं, लेकिन गंभीरता का मतलब ग़ुलामी नहीं होता है.

शायद उन्हें पता नहीं कि ये ब्राज़ील है और यहां न्यायपालिका स्वतंत्र है. मतभेद हो तो टैरिफ नहीं लगाया जाता, अल्टीमेटम नहीं दिया जाता. डी सिल्वा ने अमेरिका को धमकी भी दे दी कि कॉफी, बीफ और नारंगी का जूस ब्राजील से जाता है, अब अमेरिकी इसका अधिक दाम चुकाने के लिए तैयार रहें. अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत भी ट्रम्प को लूला जैसा जवाब दे सकती है.  

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1-भारत न चीन है और न ही ब्राजील

चीन आज दुनिया की दूसरी महाशक्ति है. जिस तरह चीन तरक्की कर रहा है वह जल्दी ही अमेरिका को भी पीछे छोड़ सकता है. चीन आज अपने शर्तों पर व्यापार कर सकता है. वह दुनिया की फैक्ट्री बोला जाता है. बिना चीन के आज दुनिया भर में काम ठप हो सकता है . इसलिए हम चीन की तुलना नहीं कर सकते हैं. रही बात ब्राजील की तो उससे अपनी तुलना हो सकती है. पर लूला जिस तरह से ललकार रे हैं ट्रंप को उस तरह से भारत कभी नही ंकर सकता है. क्योंकि हमारी प्रकृति ही ऐसी नहीं है.

लूला ने कहा कि ब्राजील एक संप्रभु राष्ट्र है और वह किसी "ग्रिंगो" (विदेशी, विशेष रूप से अमेरिकी) के आदेश को नहीं मानेगा. लूला ने ब्राजील की आर्थिक पारस्परिकता कानून (Economic Reciprocity Law) के तहत अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाने की धमकी दी. लूला ने इस विवाद को राष्ट्रीय गौरव से जोड़ा, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी. ट्रम्प की धमकी को उन्होंने बोल्सोनारो ( पूर्व राष्ट्रपित) के समर्थन के रूप में चित्रित किया, जिसे उन्होंने "देशद्रोही" करार दिया है. मतलब साफ है कि लूला अमेरिका विरोध को 2026 के चुनावों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. ध्यान रहे कि लूला कम्यूनिस्ट हैं. भारत में अगर कम्यूनिस्ट सरकार होती तो हो सकता है कुछ ऐसा ही यहां भी हो रहा होता. इकॉनमी भले चौपट हो जाती पर ट्रंप को भारत से भी ललकार मिलती.

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2-भारत की मजबूत स्थिति और मोदी सरकार की मजबूरियां

ब्राजील के विपरीत भारत के लिए अमेरिका एक महत्वपूर्ण बाजार है. ब्राजील का अमेरिका के साथ व्यापार जीडीपी का केवल 1.7% है. ब्राजील का व्यापार आधार चीन के साथ है.लूला की तरह जवाबी टैरिफ या खुले विरोध से भारत के निर्यात को नुकसान हो सकता है, जो 7% की जीडीपी वृद्धि दर को प्रभावित करेगा. भारत के दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने और पड़ोस में चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से निपटने में भी भारत के लिए मुश्किल हो सकती है.

 रूस से तेल आयात पर निर्भरता को तुरंत कम करना भारत की ऊर्जा सुरक्षा और मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए संभव नहीं है, जो ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की सीमा है. दूसरे भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक रूप से संतुलन पर आधारित रही है, और मोदी सरकार ने अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी (जैसे रक्षा तकनीक और क्वाड) को प्राथमिकता दी है.

पर एक बात और है कि अगर मोदी सरकार ठान ले कि ट्रंप को सबक सिखाना है तो अमेरिका भी परेशान हो सकता है. कपड़ों, ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयों और घरेलू उपकरणों की सप्लाई के लिए भारत एक बड़ा स्रोत है - ऐसे में इन चीजों के दाम बढ़ेंगे तो भारत से अधिक USA के आम लोगों को मुश्किल होगी. बढ़ी लागत का दुष्प्रभाव उन कंपनियों को भी झेलना होगा जो भारत से सामान ख़रीदते हैं.
अमेरिका से अगर भारत लड़ने को तैयार हो जाए तो दूसरी तरफ उसके लिए चीन और रूस के दरवाजे खुले हुए हैं. एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा कई बार अच्छे मौके भी लेकर आता है. ब्रिक्स को मजबूत बनाकर एक अलग मुद्रा बनाना अमेरिका के  लिए काफी महंगा पड़ सकता है. 

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3- पियूष गोयल ने देश की संसद से अमेरिका को दिया सधा हुआ संदेश

लोकसभा में गुरुवार को केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने जो बयान दिया है उससे एक उम्मीद जगती है कि भारत किसी भी कीमत पर अमेरिका के आगे झुकने वाला नहीं है. गोयल ने कहा कि भारत सरकार स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए है और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है. पीयूष गोयल ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच चार दौर की द्विपक्षीय बैठकें हुईं. हम अपने घरेलू उद्योगों की सुरक्षा करेंगे. देशहित में जरूरी हर कदम उठाएंगे.

गोयल ने जिस तरह कहा कि दुनिया के विकास में भारत का योगदान 16 फीसदी है और हम दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं. यह सीधा अमेरिका को संदेश ही है कि हमें कम आंकने की भूल न करें.  गोयल ने कहा कि सरकार उद्योगपतियों से बात कर रही हैं. हम देश को सुरक्षित रखने के लिए सारे कदम उठाएंगे. हम कुछ ही वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे. हमारे निर्यात में बढ़ोतरी हुई है.

गोयल आज जो कुछ भी कह रहे थे वो देश के लोगों से कम अमेरिकी अधिकारियों के लिए अधिक था. उन्होंने कहा कि भारत आज भी वैश्विक अर्थव्यवस्था का ‘ब्राइट स्पॉट’ है. गोयल का बार-बार यह कहना कि सरकार किसानों, MSMEs और उद्यमियों के हितों की पूरी तरह से रक्षा करेगी यह संदेश था अमेरिका को हम किसी भी कीमत पर झुकने वाले नहीं हैं. भारत ने UAE और ऑस्ट्रेलिया और यूके  के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स किए हैं, जिससे निर्यात को नई गति मिली और भविष्य में यह और बढने वाला है.

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