MP हाईकोर्ट से 'हक' को हरी झंडी... शाह बानो की बेटी की याचिका खारिज; कोर्ट बोला- देरी से दायर हुई याचिका, रिलीज का रास्ता साफ

MP हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने फिल्म 'हक़' (Haq) की रिलीज पर रोक लगाने की मांग वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया है. इससे 7 नवंबर को फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ हो गया. यह फिल्म 1985 के ऐतिहासिक शाह बानो बेगम भरण-पोषण मामले से प्रेरित है.

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7 नवंबर को फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ.(Photo:Screengrab) 7 नवंबर को फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ.(Photo:Screengrab)

विद्या / धर्मेंद्र कुमार शर्मा

  • इंदौर/मुंबई,
  • 06 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:05 PM IST

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने दिवंगत शाह बानो बेगम की बेटी की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें हिंदी फिल्म 'हक़' (Haq) की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई थी. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिका निराधार है और इसमें  कोई दम नहीं है.

जस्टिस प्रणय वर्मा की बेंच 4 नवंबर को पारित इस आदेश की प्रति गुरुवार को जारी कर दी गई, जिससे 7 नवंबर को फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ हो गया.

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यामी गौतम धर और इमरान हाशमी अभिनीत यह फिल्म 1985 के ऐतिहासिक शाह बानो बेगम भरण-पोषण मामले से प्रेरित बताई जाती है. इस मामले के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार दिया था. 

इंदौर निवासी दिवंगत शाह बानो बेगम (निधन 1992) की बेटी सिद्दीका बेगम खान ने याचिका दायर कर दावा किया था कि फिल्म परिवार की सहमति के बिना बनाई गई है और इसमें उनकी दिवंगत मां के जीवन के व्यक्तिगत पहलुओं को गलत तरीके से पेश किया गया है.

हाईकोर्ट का निर्णय
सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस वर्मा ने याचिका में दम नहीं पाया और इसे खारिज कर दिया. आदेश में कहा गया, "इस प्रकार उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर मेरा विचार है कि याचिकाकर्ता इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई मामला बनाने में विफल रहा है. परिणामस्वरूप याचिका में कोई दम नहीं पाया जाता और इसे खारिज किया जाता है." 

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क्या है शाह बानो मामला 
शाह बानो ने 1978 में तलाक के बाद अपने वकील पति मोहम्मद अहमद खान से गुजारा भत्ता मांगने के लिए एक स्थानीय अदालत में मुकदमा दायर किया था. एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 1985 में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं भी कानून के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं.

मुस्लिम संगठनों के भारी विरोध के बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम बनाया, जिसने शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट के फैसले के बाद फिल्म के निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने इसे रचनात्मक स्वतंत्रता की जीत बताया है.

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