इंदौर: हिंगोट युद्ध में 30 से ज्यादा घायल, तुर्रा और कलंगी के योद्धाओं में चलती है परंपरा

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के गौतमपुरा में दिवाली के अगले दिन आयोजित पारंपरिक ‘हिंगोट युद्ध’ में इस साल 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए. गौतमपुरा और रुनजी गांव के दो दल एक-दूसरे पर बारूद से भरे हिंगोट फेंकते हैं. प्रशासन की सख्ती और सुरक्षा इंतज़ामों के बावजूद हर साल की तरह इस बार भी कई लोग घायल हुए.

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होलकर काल से चली आ रही परंपरा. (File Photo: ITG) होलकर काल से चली आ रही परंपरा. (File Photo: ITG)

aajtak.in

  • इंदौर,
  • 21 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:31 PM IST

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के गौतमपुरा में मंगलवार शाम दिवाली के बाद आयोजित पारंपरिक ‘हिंगोट युद्ध’ में इस बार भी 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए. यह युद्ध हर साल दिवाली के अगले दिन गौतमपुरा और पास के रुनजी गांव के लोगों के बीच लड़ा जाता है. स्थानीय लोग इसे बहादुरी और परंपरा का प्रतीक मानते हैं.

बारूद से भरे फल बने हथियार
‘हिंगोट’ एक जंगली फल होता है, जिसका आकार आंवले जितना होता है. इसे अंदर से खोखला कर उसमें बारूद भरा जाता है, जिससे यह रॉकेट जैसे पटाखे में बदल जाता है. दोनों गांवों के योद्धा गौतमपुरा के ‘तुरा दल’ और रुनजी के ‘कलंगी दल’ एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकते हैं.

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भीड़ ने देखी आग और उत्साह की बारिश
मंगलवार शाम मैदान में हजारों की भीड़ इस रोमांचक लेकिन खतरनाक परंपरा को देखने के लिए इकट्ठा हुई. ‘योद्धा’ सिर पर कपड़ा और हाथ में जलते हिंगोट लेकर मैदान में उतरते हैं. चारों ओर आतिशबाज़ी जैसी लपटें उड़ती हैं, और दर्शक तालियां बजाकर उनका हौसला बढ़ाते हैं.

30 से ज्यादा घायल, दो की हालत गंभीर
ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. वंदना केसरी ने बताया कि करीब 35 लोग घायल हुए हैं. इनमें दो को गंभीर चोटें लगी हैं. एक का हाथ टूट गया, जबकि दूसरे की नाक पर गहरी चोट आई है. उन्हें देपालपुर अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

सुरक्षा इंतज़ामों के बावजूद हादसे
एसडीपीओ संघप्रिय सम्राट ने बताया कि दर्शकों की सुरक्षा के लिए मैदान के चारों ओर ऊंचे जाल और बैरिकेड लगाए गए थे. करीब 200 पुलिसकर्मी और 100 प्रशासनिक अधिकारी मौके पर तैनात थे, साथ ही फायर इंजन और एंबुलेंस भी मौजूद थीं.

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होलकर काल से चली आ रही परंपरा
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है. माना जाता है कि होलकर काल में स्थानीय योद्धा मुग़ल सेना से मुकाबले के दौरान हिंगोट में बारूद भरकर उसे हथियार की तरह इस्तेमाल करते थे. आज भी लोग उसी बहादुरी की याद में यह अनोखा ‘हिंगोट युद्ध’ मनाते हैं, भले ही इसमें हर साल कई लोग घायल क्यों न हो जाएं.

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