पद्मश्री गिरिराज किशोर का निधन, 'ढाई घर' 'पहला गिरमिट‍िया' से रहेंगे याद

पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार गिरिराज किशोर का रविवार सुबह कानपुर में उनके आवास पर हृदय गति रुकने से निधन हो गया. वह 83 वर्ष के थे. उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य में मील का पत्थर हैं.

Advertisement
2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति से पद्मश्री लेते गिर‍िराज किशोर (wikipedia) 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति से पद्मश्री लेते गिर‍िराज किशोर (wikipedia)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 1:04 PM IST

हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार कथाकार, नाटककार और आलोचक गिरिराज किशोर ने 83 वर्ष की आयु में दुनिया को अलव‍िदा कह दिया. अपने लोकप्रिय उपन्यासों जैसे‘ढाई घर’ और 'पहला गिरमिटिया' आदि के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.

गिरिराज किशोर का रविवार 9 फरवरी को सुबह कानपुर में उनके आवास पर हृदय गति रुकने से निधन हो गया. वह 83 वर्ष के थे. उनके निधन से साहित्य के क्षेत्र में शोक की लहर छा गई. बता दें, मूलत: मुजफ्फरनगर निवासी गिरिराज किशोर कानपुर में बस गए थे. वो कानपुर के सूटरगंज में रहते थे. गिरिराज किशोर के परिवारिक सूत्रों ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने अपना देहदान किया है इसलिए सोमवार को सुबह 10:00 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा. उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है. तीन महीने पहले गिरने के कारण गिरिराज किशोर के कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया था जिसके बाद से वह लगातार बीमार चल रहे थे.

Advertisement

गिरिराज किशोरके सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे. साल 1991 में प्रकाश‍ित उनके उपन्यास ‘ढाई घर' को 1992 में ही ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था. गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया ‘पहला गिरमिटिया' उपन्यास भी काफी चर्चा में रहा, इसी उपन्यास ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई थी. इस उपन्यास महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था.

 IIT कानपुर में रहे कुलसचिव

गिरिराज का जन्म 8 जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फररनगर में जमींदार परिवार में हुआ था. उन्होंने कम उम्र में ही घर छोड़कर स्वतंत्र लेखन शुरू कर दिया था. वो जुलाई 1966 से 1975 तक कानपुर विश्वविद्यालय में सहायक और उपकुलसचिव के पद पर रहे. इसके बाद दिसंबर 1975 से 1983 तक आईआईटी कानपुर में कुलसचिव पद की जिम्मेदारी संभाली. राष्ट्रपति द्वारा 23 मार्च 2007 में साहित्य और शिक्षा के लिए गिरिराज किशोर को पद्मश्री पुरस्कार से विभूषित किया गया.

ये थे लोकप्रिय कहानी संग्रह

Advertisement

उनके कहानी संग्रहों में ‘नीम के फूल', ‘चार मोती बेआब', ‘पेपरवेट', ‘रिश्ता और अन्य कहानियां', ‘शहर -दर -शहर', ‘हम प्यार कर लें', ‘जगत्तारनी एवं अन्य कहानियां', ‘वल्द' ‘रोजी', और ‘यह देह किसकी है?' प्रमुख हैं. इसके अलावा, ‘लोग', ‘चिडियाघर', ‘दो', ‘इंद्र सुनें', ‘दावेदार', ‘तीसरी सत्ता', ‘यथा प्रस्तावित', ‘परिशिष्ट', ‘असलाह', ‘अंर्तध्वंस', ‘ढाई घर', ‘यातनाघर', उनके कुछ प्रमुख उपन्यास हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement