रामकथा मानवता का इम्युनिटी बूस्टर है, साहित्य आजतक में बोले कुमार विश्वास

Sahitya Aajtak: दिल्ली में मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक की शुरुआत कवि, लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर कुमार विश्वास ने की. उन्होंने राम कथा सुनाते हुए कार्यक्रम का आगाज किया.

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साहित्य आजतक में बोले कुमार विश्वास (Photo: ITG) साहित्य आजतक में बोले कुमार विश्वास (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:22 PM IST

देश की राजधानी दिल्ली में साहित्य के सितारों का महाकुंभ यानी साहित्य आजतक 2025 का आगाज हो चुका है. तीन दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में कला, साहित्य और संगीत के क्षेत्र की शख्सियतें शामिल हो रही हैं. इस कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में हो रहा है जहां दर्शकों को तीन दिन तक अलग-अलग विधाओं के दिग्गजों से रूबरू होने का मौका मिलेगा.

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राजनीति के पास समाधान नहीं
साहित्य आजतक 2025 की शुरुआत 'अपने अपने राम' में कवि, लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर कुमार विश्वास ने रामकथा सुनाते हुए की. उन्होंने कहा कि समाज की समस्याओं का हल राजनीति के पास नहीं है. राजनीति समस्याओं की चर्चा करती है. समस्याओं का हल भी चाहती है, नीति भी निर्धारित करती है, लागू करने वाला तंत्र भी स्थापित करती है लेकिन फिर भी समस्या हल नहीं होती क्योंकि राजनीति उसका आदर्श उपस्थित नहीं करती बल्कि राम राजनीति का मॉडल, आदर्श स्थापित करते हैं. 

समाज में फैली अराजकता का बताया हल
कुमार विश्वास ने कहा,  भारत की सांस्कृतिक चेतना के पास इन समस्याओं का हल है. राजनीति में हम बीमारियों की चर्चा कर रहे हैं. भाई-भतीजावाद, परिवारवाद, करप्शन और आतंकवाद पर चर्चा कर रहे हैं. राजनीति इन समस्याओं पर उनके हल पर चर्चा कर रही है लेकिन राम कथा उस स्वास्थ्य पर चर्चा कर रही है जिससे ये बीमारियां ना हो. रामकथा मनुष्यता का इम्युनिटी बूस्टर है. अगर ये इम्युनिटी होगी तो समाज में बीमारियां नहीं होंगी. 

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अपने अंदर राम नाम का दीपक जलाएं
 
कुमार विश्वास ने समाज में फैली बीमारियां यानी अराजकता का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रेम विवाह के बाद भी आदमी नीले रंग के ड्रम में मिल रहा है. माई स्पेस, माई आइडेंटिटी बहुत ही अश्लील जुमला है. हम पैदा हुए थे ना कि डाउनलोड हुए थे. ये रिश्ता दो लोगों के प्रेम से बना. उन प्रेम के पीछे कई परिवार, कई लोग अलग-अलग भूमिकाओं में रहे लेकिन आज हम अपने लिए स्पेस मांग रहे हैं. गोस्वामी तुलसीदास ने कहा था कि जैसे देहरी ( दरवाजे की चौखट) पर रखा दिया बाहर और अंदर दोनों जगह प्रकाश फैलाता है, वैसा ही रामनाम का दीपक जीभ पर रख लेने से आत्मिक और बाहरी दोनों जगह जागृति आती है.

कुमार विश्वास ने कहा कि जो पीढ़ी अपने अतीत का आदर नहीं करती, वर्तमान छोड़ो, भविष्य भी उसे मार्ग नहीं देता. राम की कहानी बचपन में सुन लेते तो संपत्ति के लिए भाई, पिता की हत्या जैसी घटनाएं नहीं होतीं. जैसी खबरें आजकल हम सुनते रहते हैं. आखिर क्या दांव पर था कि हम परिजनों की ही हत्या कर दे रहे हैं.'

राम पर सवाल हो, तो नाराज ना हों

'राम पर कोई शंका करे तो गुस्सा मत होना. स्टालिन पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि राम पर तो उन्होंने भी शंका की जिनके खानदान का नाम ही राम पर था. उन्होंने कहा कि इंद्र के पुत्र जयंत ने भी राम पर शंका की थी. वो पूछता था कि राम हैं कहां? इंद्र ने बादलों को हटाकर दिखाया तो नीचे चित्रकूट में राम माता सीता के साथ बैठे थे.'

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'जयंत ने कौए का भेष रखकर माता सीता के पैर पर चोंच मार दी. रक्त निकला तो राम ने सींक ही फेंक दी. जयंत जहां जहां जाता तीर वहां जाता. उसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश किसी से शरण नहीं मिली तो वो नारद जी की सलाह पर वापस राम की शरण में ही गया. राम ने रामबाण से उसकी जान तो बचा ली लेकिन उसकी एक आंख फोड़ दी और अब विज्ञान साबित कर रहा है कि कौए की केवल एक पुतली काम करती है.'

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