राष्ट्रवाद को खारिज करने वालों से भी मैं असहमत हूं: जावेद अख्तर

'साहित्य आजतक' को इस बार सौ के करीब सत्रों में बंटा है, तीन दिन तक चलने वाले इस साहित्य के महाकुंभ में 200 से भी अधिक विद्वान, कवि, लेखक, संगीतकार, अभिनेता, प्रकाशक, कलाकार, व्यंग्यकार और समीक्षक हिस्सा ले रहे हैं.

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जावेद अख्तर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर, गीतकार और पटकथा लेखक

विवेक पाठक

  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:29 PM IST

'साहित्य आजतक' के 'दस्तक दरबार' के 'साहित्य और हम' सत्र में मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने शिरकत की. उन्होंने देश में चल रहे विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से राय रखी.

देश में राष्ट्रवाद पर छिड़ी बहस पर जावेद अख्तर ने कहा कि कभी-कभी कुछ विषयों पर लोग एक्स्ट्रीम स्टैंड ले लेते हैं और उनका मानना है कि एक्स्ट्रीम स्टैंड कभी सही नहीं होता. एक तरफ लोग कहते हैं कि यही असली राष्ट्रवाद है, दूसरी तरफ कुछ लोग राष्ट्रवाद को अप्रचलित बता कर सिरे से खारिज हैं. मैं उनसे भी सहमत नहीं हूं.

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उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद नैसर्गिक है. जिस तरह हमें अपने शरीर से, शहर से प्रेम होता है उसी तरह हम जिस देश में पैदा हुए हैं उससे नफरत कैसे कर सकते हैं. हम सुदूर रहने वाली मैरीकॉम जिससे कभी मिले नहीं, जहां वो रहती हैं वहां गए नहीं, फिर भी जब वो जीतती हैं तो हमें खुशी होती है. ये क्यों होती है, क्योंकि हमारे अंदर देशप्रेम है.

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जावेद अख्तर ने कहा कि जो आपसे किसी भी बात से सहमत नहीं उससे आप कितनी नफरत करते हैं, इसे देशप्रेम का बैरोमीटर बनाया जा रहा है. हमें 5000 साल से लोकतंत्र में ट्रेनिंग मिली है. हमारे यहां असहमत होना पाप नहीं है, ये शुरू से हमारे देश की संस्कृति रही है. इस मुल्क में नास्तिक को संत माना गया है. जो लोग असहमत लोगों से नफरत करना सिखा रहे हैं, वे देश की संस्कृति के हमारा पीछा छुड़वा रहे हैं.

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उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रवाद से नफरत की भावना पैदा होती है तो गलत है, लेकिन राष्ट्रवाद यदि प्यार करना सिखाए तो सही है. राष्ट्रवाद के नाम पर फिल्म इंडस्ट्री के बंटे हुए होने पर जावेद अख्तर ने कहा कि जिस समाज में लोकतंत्र  होता वो बंटा हुआ ही होता है. सब एक तरह सोचे अगर ऐसा मानना है तो सउदी अरब चले जाना चाहिए.

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