'सही समय पर ओम पुरी का घर छोड़ा, वो पछताए...' आजतक के मंच से सीमा कपूर ने और क्या कहा?

साहित्य आजतक 2025 के सत्र में सीमा कपूर ने अपने संस्मरण पर खुलकर बात की. उन्होंने ओम पुरी से तलाक, अजन्मे बच्चे के खोने और आर्थिक संघर्षों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ओम पुरी की जिंदगी से निकलना उनका सही फैसला था.

Advertisement
साहित्य आजतक के मंच से सीमा कपूर ने ओम पुरी के साथ अपने जटिल रिश्ते पर बात की साहित्य आजतक के मंच से सीमा कपूर ने ओम पुरी के साथ अपने जटिल रिश्ते पर बात की

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:44 PM IST

Sahitya Aajtak 2025: राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य के सितारों का महाकुंभ सज चुका है, साहित्य आजतक की बड़ी ही शानदार शुरुआत हो चुकी है. साहित्य आजतक के सत्र 'जो हमने दास्तां अपनी सुनाई- संस्मरण लेखन की चुनौतियां' में जानी-मानी लेखिका और फिल्ममेकर सीमा कपूर शामिल हुईं जहां उन्होंने ओम पुरी से अपने रिश्तों और उस रिश्ते की चुनौतियों पर खुलकर बात की. सत्र में सीमा कपूर के अलावा लेखक लीलाधर मंडलोई और संस्मरण लेखक यतीश कुमार भी शामिल हुए जिन्होंने अपने संस्मरणों पर बात की.

Advertisement

सीमा कपूर ने अपने संस्मरण 'यू गुजरी है अब तलक' में अपने बचपन, माता-पिता, ओम पुरी से शादी और तलाक, अजन्मे बच्चे को खो देना, सभी घटनाओं पर विस्तार से लिखा है.

ओम पुरी से अपने रिश्तों पर बात करते हुए सीमा कपूर ने कहा कि उनकी प्रकृति माफ करने की रही है और उन्होंने ओम पुरी को माफ कर दिया है. ओम पुरी ने सीमा कपूर के साथ शादी में रहते हुए नंदिता पुरी के साथ रिश्ता शुरू किया और फिर तलाक लेकर उनसे शादी भी की.

उन्होंने कहा, 'मैं बहुत जल्दी माफ कर देती हूं, वो मेरी प्रकृति में है. पति ने कुछ किया और फिर उन्होंने पश्चाताप भी किया. अगर वो नहीं पछताते तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता, मैं माफ कर देती. पश्ताचाप ही सबसे बड़ी क्षमा है. मैं अपने सुख के लिए ये सब करती हूं. अकबर इलाहाबादी का शेर है- नहीं मिला जो बंदूक का लाइसेंस गम नहीं, मैंने तो इस ख्याल को ही गोली मार दी. अगर मेरे साथ कुछ गलत होता है तो मैं उसे बिना बंदूक गोली मार देती हूं.'

Advertisement

'एकपल में ओम पुरी का घर छोड़ आई'

उन्होंने कहा कि वो उस जमाने में भी दबाव में नहीं आई और एक पल में पति का घर छोड़ आईं. उन्होंने कहा, 'मैंने उन्हें माफ कर दिया इसका मतलब ये नहीं कि मैं दबाव में आई गई. दबाव में आने का मतलब होता कि मैं अपने पति के घर में रहकर सबकुछ झेलती जैसा उस समय की स्त्रियां करती, लेकिन मैंने नहीं किया वैसा. मैंने एक क्षण में वो घर छोड़ दिया. मेरे पास अच्छा घर था, पैसा रुतबा, बड़े आदमी की बीबी होने का स्टेटस था लेकिन मैंने एक पल में सब छोड़ दिया. ये मेरी ताकत थी.'

सीमा कपूर ने कहा, 'मैंने मुश्किल रास्ता चुना, आर्थिक चुनौतियां थीं मेरे आगे. आज तलाकशुदा होने का टैग कलंक नहीं लेकिन उस समय मेरी प्रगतिशील मां ने भी ये छिपाया कि मैं तलाक ले रही हूं, घर छोड़ आई हूं. मां और परिवार की वजह से मुझे भी छिपाना पड़ा कि पति को छोड़ के आ गई हूं.'

उन्होंने ओम पुरी से रिश्ता खत्म करने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा, 'मैंने बहुत सही समय पर ओम पुरी का घर छोड़ा, वो गलत थे, वो पछताए. स्त्री में तब से लेकर आज तक बहुत बदलाव आया है लेकिन ज्यादा बदलाव इसलिए नहीं आया क्योंकि स्त्री तो बदल रही है लेकिन दुर्भाग्य से पुरुष नहीं बदल रहे. क्योंकि वो अच्छी आरामदेह स्थिति में हैं. पुरुषों को बदलना जरूरी है तब जाकर हमारी लड़ाई पूरी होगी.'

Advertisement

सत्र के दौरान सीमा कपूर ने बताया कि उन्हें अपने जीवन की चार बड़ी घटनाओं को अपने संस्मरण में लिखने में सबसे ज्यादा पीड़ा हुई. उन्होंने कहा, 'पहली घटना- पिता का निधन, दूसरी- मेरे बच्चे के मुझसे छिन जाना, तीसरा- पुरी साहब से मेरा तलाक बहुत असहनीय था. चौथी-मेरी मां का जाना.'

सीमा कपूर ने जब ओम पुरी का घर छोड़ा तो वो प्रेग्नेंट थीं. पांचवें महीने में उनका मिसकैरिज हो गया.

पाठकों को उनकी छोटी सी दुनिया से बाहर निकालता है साहित्य

सत्र के दौरान लीलाधर मंडलोई ने कहा, 'चमक-धमक के भीतर जो अंधकार है, उसे पहचानने के लिए कोई चाहिए, लेख उस अंधकार की तलाश करता है. और फिर एक ऐसा सच लाता है जिससे पाठक जान पाता है कि जो हम देख रहे हैं सच उतना नहीं है. क्योंकि एक जिंदगी हजारों जिंदगी से जुड़ी होती है. एक लेखक का काम लोगों को उनकी अपनी छोटी सी दुनिया से निकालना भी है.'

उन्होंने आजकल की पीढ़ी की चुनौतियों पर बात करते हुए कहा, 'मैं ये नहीं मानता कि आजकल के बच्चों के पास तकलीफ नहीं है, बल्कि उनके संदर्भ बदल गए हैं. उनके अनुभव ऐसा नहीं कि बेकार जाएंगे. हमारे समय के संकट दूसरे थे और इनके संकट हमसे कहीं ज्यादा हैं. हमारे समय में चार-चार नौकरियों के अवसर थे, आज बच्चे योग्य हैं लेकिन बेरोजगारी इतनी है कि कल्पना नहीं कर सकते. हम आठ घंटे काम करते थे, आजकल बच्चे रोबोट की तरह काम कर रहे हैं.'

Advertisement

उनके भीतर की मनुष्यता को नया संसार धीरे-धीरे चाट रहा है. उस दुख को बहुत गहराई से देखने पर ही पता चलेगा.'

सत्र के दौरान लेखक यतीश कुमार ने अपने संस्मरण 'बोरसी भर आंच' पर बात करते हुए कहा, 'बोरसी भर आंच मेरे लिए मीठी याद है, मैंने संघर्ष को खराब तरीके से नहीं लिया, दुख को दुख नहीं जीवन का हिस्सा समझा. मेरे लिए खुद को खाली करने का जरिया था बोरसी भर आंच.'

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement