दिल्ली में आजतक का सालाना लिटरेचर फेस्टिवल साहित्य आजतक 2025 का समागम शुरू हो चुका है. शुक्रवार को इस मौके पर प्रख्यात शिक्षक और मानवतावादी प्रेम रावत सैकड़ों दर्शकों की भीड़ से रू-ब-रु हुए. दर्शकों से खचाखच भरे मंच पर प्रेम रावत ने आनंद की परिभाषा बताई, परमानंद की लालसा पर जोर दिया और बैचेन मनुष्य को शांति का पता बताया.
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए प्रेम रावत ने कहा कि मनुष्य को आनंद की जरूरत है, लेकिन ये कोई नहीं बताता है कि असली आनंद क्या है. हम घर बनाते हैं, हमें वहां आनंद चाहिए, सफर करते हैं वहां आनंद चाहिए, लेकिन हमारी जिंदगी में सबसे जरूरी परमानंद हैं. जो भी आनंद मनुष्य इस पृथ्वी पर बनाने की कोशिश करता है वो परमानंद है. उसका लक्ष्य परमानंद होना चाहिए.
आजतक के साहित्य समागम को उन्होंने डिवाइन मेला बताया. उन्होंने कहा, "आप यहां आए हैं ये साहित्य का डिवाइन मेला है. हम दूसरों की जिंदगी के अंदर कुछ ऐसी बात ला सकें कि उनके जीवन में उन्नति हो, बढ़िया हो."
अपनी पुस्तक 'Hear Yourself' के लिए न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर में शुमार प्रेम रावत ने कहा कि वेद व्यास, तुलसी दास भारत की सभ्यता से जुड़े हैं, इन्होंने ये रचना क्यों की. इन रचनाओं में ट्रैजेडी है, महाभारत में ट्रैजेडी है. लेकिन इस ट्रैजेडी में भी ज्ञान भर दिया गया है. यह साहित्य का मनुष्यों को दान है. ये कभी खत्म नहीं होना चाहिए. ऐसी किताबें लिखना चाहिए जिससे मानवता की उन्नति हो.
उन्होंने कहा कि मान लिया जाए कि एक बाप है उसका बेटा बुरा है, निकम्मा है, वो मृत्यु के बाद नरक से अपने बेटे को चिट्ठी लिखे- सुनो मुकेश... यहां नरक है, इसलिए संभल जाओ, लेकिन कोई नहीं लिखता है. कोई अपनी पत्नी को नहीं लिखता है कि स्वर्ग में बहुत सुंदर सी जगह है, यहां मैंने एक सुंदर जगह देख ली है. यहां हम रहेंगे. लेकिन ये कोई नहीं लिखता है.
प्रेम रावत ने कहा कि 7000 सालों से मनुष्य स्वर्ग नरक की चर्चा करता है लेकिन इसे साबित करने के लिए उसके पास इतना सा भी प्रमाण नहीं है. लेकिन जब लोग लड़ाइयां करते हैं तो यही कहते हैं- जहन्नुम में जा. स्वर्ग में जाने के लिए कोई नहीं कहता है.
साहित्य आजतक के इस खास कार्यक्रम में लोगों को स्वर्ग नरक का कॉन्सेप्ट समझाते हुए प्रेम रावत ने कहा कि आज इस संसार की जो हालत है वो क्यों है. यह विचारणीय है. अभी हमारे पास मौका है कि जब तक हम जीवित हैं यहां स्वर्ग बनाएं. जब तक हम स्वर्ग बनाने में कामयाब नहीं होंगे, तब तक हम अपने आपको नरक में पाएंगे. यहां भगवान दुख देने के लिए नहीं आता है, यहां हम एक दूसरे को दुख देते हैं. ये नर्क हमारा बनाया हुआ है.
उन्होंने अकबर-बीरबल की कहानियों का उदाहरण देते हुए कहा है कि एक बार अकबर ने एक लाइन खींचकर अपने दरबारियों से कहा इसे बिना छुए छोटा कर दो. कोई नहीं कर पाया, लेकिन बीरबल आया और उसने उस लाइन के पास एक बड़ी लाइन खींच दी और पहली लाइन छोटी हो गई. तो हमें इसी नजरिये को समझना होगा.
जीवन में वैल्यू सिस्टम के बारे में उन्होंने कहा कि किताब पढ़ने के बाद जो ज्ञान प्राप्त होता है उस पर अमल करना हमारी जिम्मेदारी है, लेखक की जिम्मेदारी नहीं है. आप यहीं से आए हो और मृत्यु के बाद यहीं रह जाओगे. ये जिंदगी मिली है, इसे बर्बाद मत करो.
कार्यक्रम के दौरान उनसे पूछा गया कि वह आंतरिक शांति को मनुष्य का अधिकार बताते हैं. इसे कैसे हासिल किया जाए?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि आपके घर में खाना बनता है, इसके लिए आपके पास तरह तरह के पतीले होते हैं, तरह तरह के मसाले होते हैं. जूसर निकालने के लिए जूसर होता है. अगर आप दाल को फ्रूट जूसर में डालें तो काम बनेगा नहीं.
उन्होंने कहा कि गैलरी में आपको हजारों की फोटो मिलेगी. लेकिन आईने में देखेंगे तो अपना चेहरा दिखाई देगा. अपने को समझने के लिए आईने की जरूरत है, कैमरे की जरूरत नहीं है.
लोग भगवान को अंदर ढूंढ़ते नहीं है, फोटो टांग लेते हैं, कहते हैं इसी से काम चल जाएगा. अंदर की बात जानने के लिए अंदर की तरफ मुड़ना जरूरी है, बाहर की बात जानने के लिए बाहर की ओर मुड़ना पड़ेगा.
अध्यात्म की बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस दुनिया में एक चीज विश्वास , दूसरी चीज है भरोसा. और तीसरी चीज वैरिफिकेशन है. आप मालूम करो भगवान को, बिलीफ मत करो, भगवान को अनुभव करो. वो तुम्हारे अंदर है. सिर्फ भगवान कहने से नहीं होगा, अनुभव करना पड़ेगा. भगवान कहने से भगवान नहीं मिलेंगे. जब तक आप खुद उसका अनुभव नहीं करेंगे.
प्रेम रावत से पूछा गया कि शांति का पता क्या है, कहां मिलती है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इसका पता हैं आप, आपकी शांति का पता आप हैं, मेरी शांति का पता मैं हूं, एड्रेस बता दिया, वहां पहुंचोगे कैसे? ये ऐसी चीज है जो तुम्हें दुकान में नहीं मिलेगी, तुम्हें अंदर मिलेगी. इसके लिए समझ की जरूरत है, पैसे की नहीं. अंदर के खालीपन को शांति से भरो.
खुशी को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि खुशी मनुष्य के अंदर से आती है, हम सोचते हैं कि चीजें खुशी लाएगी, लेकिन हमारे जीवन में खुशी लाने वाला कोई और नहीं सिर्फ हम है, ये कहीं नहीं सिर्फ अंदर से आएगी.
उन्होंने कहा कि हमारे कार्यक्रमों से तेलंगाना में 5 जेल बंद हो गईं, ये हमारा मकसद नहीं था कि जेल बंद हो जाए, हम कैदी को एंटरटेन भी करना नहीं चाहते थे. हम चाहते थे कि वे कैदी जान जाएं कि वो कौन हैं, जब मनुष्य ये जान जाता है तो वो अपना लक्ष्य हासिल करता है, जेल में एक बार जाने के बाद लोग और भी बुरी-बुरी चीजें सीखते हैं, इस चक्र को रोकने के लिए पीस एजुकेशन प्रोग्राम है. ये प्रोग्राम जेल, हॉस्पिटल और पुलिस में भी है.
जिंदगी में फोकस के महत्व को समझाते हुए उन्होंने कहा कि बड़ी सिंपल सी बात है, आपका ध्यान कहां है? मां का छोटा बच्चा चारपाई पर लेटा है, तो वो काम करते हुए भी अपना ध्यान बच्चे पर रखती है, मतलब ये है कि वो और चीजें कर सकती है परंतु ध्यान वहां है जहां होना चाहिए. अगर हम ये बात न भूलें तो परेशानी नहीं होगी. आपका ध्यान अपने अंदर होना चाहिए. 10 प्रतिशत भी अंदर ध्यान है तो ठीक है, इस श्वास पर ध्यान होना चाहिए, दुनिया का सब तमाशा तब तक होगा जब तक सांस चल रही है.
उन्होंने कहा कि जहां से मुझे गाइडेंस मिलता है, वहां से लेने को तैयार हूं. मैं हमेशा अवसरवादी होना चाहता हूं, जहां से सीख मिले, वहां से सीख लेने को तैयार हूं. मेरे में सीखने की क्षमता है. मैं बुरा भी सीख सकता हूं अच्छा सकता हूं, ध्यान दूं तो अच्छा सीख लूंगा.
उन्होंने कहा कि अगर मेरे साथ कोई बुरा करने आए तो मैं कोशिश करूंगा कि वो बुरा न कर सके.
उन्होंने दुनिया को सबसे बड़ी सीख देते हुए कहा कि मुझे जिसकी तलाश भी नहीं थी मैंने उसे पा लिया है, मेरे पिता थी ने मुझे ऐसी चीज सिखाई जिसकी मुझे तलाश नहीं थी, लेकिन मैंने पा लिया है, जो मैंने पाया है उसे लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता रहूंगा.
aajtak.in