नेता इंटरव्यू से क्यों कतराते हैं? साहित्य आजतक के मंच पर लोकतंत्र और मीडिया पर बेबाक बहस

राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रहे 'साहित्य आजतक 2025' का आज तीसरा और अंतिम दिन है. यहां 'लोकतंत्र: संसद से सड़क तक' सत्र में चर्चित लेखक और पत्रकार शाहिद सिद्दीकी, नीरजा चौधरी और राजदीप सरदेसाई शामिल हुए. इस दौरान लोकतंत्र, मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका पर चर्चा की गई. इसी के साथ लोकतंत्र के मायने और उसकी चुनौतियों को समझाने की कोशिश की गई.

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साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद लेखक-पत्रकार शाहिद सिद्दीकी, नीरजा चौधरी लेखक और राजदीप सरदेसाई. (Photo: ITG/K. Asif) साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद लेखक-पत्रकार शाहिद सिद्दीकी, नीरजा चौधरी लेखक और राजदीप सरदेसाई. (Photo: ITG/K. Asif)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:57 PM IST

राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रहे 'साहित्य आजतक 2025' के अंतिम दिन खास सत्र हुआ, जिसका नाम 'लोकतंत्र: संसद से सड़क तक' था. इस सत्र में चर्चित लेखक व पत्रकार शाहिद सिद्दीकी, नीरजा चौधरी के साथ लेखक व एंकर राजदीप सरदेसाई शामिल रहे. इस दौरान लोकतंत्र, मीडिया और नागरिक समाज के बीच की भूमिका पर खुलकर चर्चा की गई.

जब संपादक लेखक बन जाता है तो क्या कोई नॉस्टेल्जिया में रहता है... इस सवाल के साथ सेशन की शुरुआत एंकर मारिया ने की. इस पर लेखक व एंकर राजदीप सरदेसाई ने कहा कि देश में इतनी कहानियां हैं. ब्रेकिंग न्यूज के जमाने में आज की कहानी कल का इतिहास बन जाती है. मैं उस जमाने से आता हूं, मैंने 1977 का चुनाव देखा है. तब मैं 12 साल का था. लेकिन उस पर कोई किताब नहीं लिखी गई. अमेरिका में हर चुनाव के बाद किताबें लिखी जाती हैं, ताकि लोग जानें कि आखिर हुआ क्या है. कहानियां बतानी चाहिए, कहानियों के साथ अपनी बात रखनी चाहिए.

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उन्होंने आगे कहा कि मैं उन लोगों में नहीं हूं, जो कहूंगा कि मैं उस पीढ़ी में हुआ करता था, आज की पीढ़ी भी उतनी ही मेहनती है. ये पीढ़ी की लड़ाई मत कीजिए. 1992-93 में जब मुंबई दंगों के बाद हम किताब लिख रहे थे, मैंने उस वक्त मुंबई में एक किताब लिखी, लेकिन उस जेनरेशन में कोई पब्लिशर नहीं थे. अब तो बहुत सारे हो गए हैं. आज के जमाने में इंस्टाग्राम लव स्टोरी सब सुनना चाहते हैं. अब इंटेरेस्ट बदल गया है.

आज अगर मैं खुद के बच्चों को कहूं कि मेरी किताब पढ़ो तो उनके पास भी समय नहीं है. वे भी कह देंगे चैट जीपीटी पर समरी पढ़ता हूं. मैं कहता हूं कि इंस्टाग्राम थोड़ा कम करिए, और किताबें पढ़ना शुरू कीजिए. इतने बड़े देश में ऐसा नहीं है कि लोग पढ़ते नहीं हैं, लोग पढ़ते हैं.

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ऑडियंस में बैठे लोगों ने भी स्टेज पर बैठे सीनियर जर्नलिस्ट और लेखकों से सवाल पूछे. इस दौरान एक सवाल पूछा गया कि पत्रकार बेबाकी से बड़े नेताओं से सवाल करने में सहज रहते हैं, इसके जवाब में राजदीप सरदेसाई ने कहा कि हमारे पत्रकारों में सवाल पूछने की हिम्मत है, नेताओं में है कि नहीं? नेताओं ने कब कितनी प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं. ये पत्रकारों से पूछना आसान है, ये नेताओं से पूछिए, जिन्हें आप चुनते हैं कि वे क्यों इंटरव्यू से कतराते हैं?

वहीं एक सवाल पर राजदीप ने कहा कि हमारे समाज में बड़ा ध्रुवीकरण हुआ है. अगर आपको हमारी बात अच्छी लगती है, तो आप कहते हैं क्या अच्छी पत्रकारिता की, अगर अच्छी नहीं लगती तो आलोचना करने लगते हैं. उन्होंने कहा कि अटल बिहारी बाजपेयी ने कभी इंटरव्यू के लिए मना नहीं किया, न ही कभी कोई सवाल पूछने पर मना किया

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वहीं इसके बाद क्या संपादक जब पॉलिटिशियन बन जाता है तो क्या कहानियां बदल जाती हैं? इस सवाल पर पत्रकार व लेखक शाहिद सिद्दीकी ने कहा कि इमरजेंसी जब लगी थी, तो मैं 24-25 साल का था, तो विरोध में जेल चला गया. वहां जाने के बाद कहानी बदली. नेताओं से जो रिश्ता बना तो सब बदलता गया. राष्ट्रीय आंदोलन में पत्रकारिता और राजनीति एक दूसरे की मदद करते थे. मगर आज माहौल बदल गया है. जो पत्रकार है, उसके अंदर भी बहुत सारी कहानियां रहती हैं. नेता की बात करें तो उसके अंदर भी बहुत सारे डायमेंशन छुपे होते हैं. हमारी जिम्मेदारी है आने वाली पीढ़ियों के लिए लिखें, ताकि वे इस दौरान को जान सकें.

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मायावती के बारे में लिखी एक किताब पर शाहिद ने कहा कि मैं बहुत सी बातें कई नेताओं के बारे में जानता हूं, लेकिन मैं उन बातों को लिखने से बचा हूं. मायावती ने एक सामान्य परिवार से आकर इतना संघर्ष किया, जो भी बनाया उन्होंने खुद बनाया. उन्हें बना बनाया नहीं मिला. मैंने 1977 में इंदिरा गांधी का इंटरव्यू किया, लेकिन उससे कोई पहचान नहीं मिली, लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया, तो सभी जानने लगे. पहले सोशल मीडिया नहीं था, आज सोशल मीडिया आ गया है तो चीजें वायरल हो रही हैं.

वहीं लेखिका व पत्रकार नीरजा चौधरी ने कहा कि मैंने अपनी किताब में छह प्रधानमंत्रियों के बारे में लिखा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नहीं लिखा, क्योंकि मुझे लगा कि इस पर मुझे भविष्य में लिखना चाहिए. मुझे इस बारे में नहीं पता चल पाया कि प्रधानमंत्री कैसे निर्णय लेते हैं, जो जनता के लिए काम में आते हैं.

क्या पत्रकार या संपादक भी कलाकार हैं? इस सवाल के जवाब में नीरजा ने कहा कि प्रिंट में जो हमने सीखा वो पहली लाइन को सोचने में समय जाता था. ये भी बात सही है कि किस्से कहानियां, खासकर पॉलिटिक्स क्या है, इसे भी कैप्चर करना है. मुझे जब नौजवान पीढ़ी आकर कहती है कि मैंने आपकी कहानियां पढ़ी हैं, तो मुझे सबसे अच्छा लगता है. क्या मैं आपकी अटेंशन पा रही हूं, अगर पा रही हूं तो मैं सफल हूं. उन्होंने कहा कि नेता जो कहना चाहते हैं वो सोशल मीडिया की वजह से कन्युनिकेशन वन साइडेड हो गया है, वो डेमोक्रेसी के लिए ठीक नहीं है.

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उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि किताब लिखने के बाद ये तय करना बेहद मुश्किल हो जाता है कि कौन सबसे अच्छा है. इस सवाल का जवाब मैं नहीं दे सकती. हर प्रधानमंत्री का एक अच्छा और एक बुरा पहलू होता है. अगर आप कहें कि मैं किससे सबसे ज्यादा प्रभावित हूं. इंदिरा गांधी को मैं सबसे स्ट्रॉन्ग प्राइम मिनिस्टर मानती हूं. उनके अपोनेंट्स अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें दुर्गा कहा था. मैं मानती हूं कि 21वीं सदी इंडियन वीमेन को बिलॉन्ग करती है. यंग महिलाएं हमारे देश का स्वरूप बदलने वाली हैं.

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