राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रहे साहित्यिक महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2025' का आज आखिरी दिन है. तीन दिनों तक चली कला, कविता और कहानियों की इस महफिल में देशभर के जाने-माने साहित्यकारों, कवियों और लेखकों ने शिरकत की. आज, आखिरी दिन, कई महत्वपूर्ण सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें 'हिंदी लेखन में आपबीती' विषय विशेष रूप से चर्चा का केंद्र रहा. इस सेशन में प्रमुख साहित्यकार प्रभात रंजन और कवयित्री और लेखिका जुवी शर्मा शामिल हुईं, जिन्होंने अपने लेखन के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि कैसे व्यक्तिगत आपबीती और अनुभव उनके साहित्यिक कार्यों को पूरी तरह प्रभावित करते हैं.
लेखक खुद को खोजने के लिए लिखता है: प्रभात रंजन
प्रभात रंजन लेखन को लेकर एक गहरी समझ रखते हैं. दुनियाभर के साहित्य पर पैनी नजर रखने वाले प्रभात का मानना है कि "लेखन, लेखन होता है" और लेखक जो भी लिखता है, वह अपने 'आपकी खोज' के लिए लिखता है. प्रभात रंजन की तीनों पुस्तकें-'हिंदी मीडियम टाइट', 'किसाग्राम' और 'पालतू बोहेमियन' भी उनकी अपनी जीवन यात्रा को गहराई से दर्शाती हैं.
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प्रभात रंजन ने संस्मरणों से शुरुआत क्यों की, इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि वह मनोहर श्याम जोशी के शिष्य हैं, जिनकी यह शैली थी कि वह हर गंभीर विषय को अपने जीवन से जोड़ देते थे. उन्होंने भी वही शैली अपनाई. उनका मानना है कि लेखक के पास अपना एक निजी स्पेस होता है, जिसे वह किसी भी रूप में व्यक्त कर सकता है. प्रभात रंजन ने 'आपबीती' विधा को समझाते हुए कहा कि यह वह विधा है, जिसमें निजी डायरी की सुगंध आती है, यह वह जगह है जहां लेखक बिना किसी मेकअप के अपनी त्वचा उतारकर रख देता है.
मनोहर श्याम जोशी पर संस्मरण लिखने का साहस
प्रभात रंजन ने अपने गुरु मनोहर श्याम जोशी पर संस्मरण लिखने के अपने साहसिक और रोचक अनुभव को साझा किया. उन्होंने बताया कि इस संस्मरण को लिखते समय उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे वह एक जिज्ञासु बालक की तरह सीधे अपने गुरु के मुख से ही बातें सुनकर उन्हें कागज़ पर उतार रहे हों. प्रभात रंजन ने एक मज़ेदार और व्यक्तिगत किस्सा सुनाया- "एक बार जोशी जी की पत्नी ने मुझे अपने घर पर बुलाया, उन्होंने मेरी लेखन शैली की बहुत तारीफ की और मुझे भोजन कराया. तारीफ के बाद उन्होंने मुझसे कहा, 'तुमने इस किताब में जोशी जी के बारे में लिखा है कि वह शराब पीते थे, लेकिन यह गलत है. उन्होंने तो कभी शराब पी ही नहीं, मैंने तो उन्हें कभी नहीं देखा. इस पर मैं क्या कहता, क्योंकि वह तो मेरे साथ ही शराब पीते थे."
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'हिंदी मीडियम टाइट' के पीछे का किस्सा
प्रभात रंजन ने अपनी चर्चित किताब 'हिंदी मीडियम टाइट' के पीछे की प्रेरणादायक कहानी साझा की. उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी माध्यम से आए छात्रों को किस तरह अंग्रेजी न आने के दबाव और भेदभाव का सामना हर जगह करना पड़ता था, जिससे उन्हें भारी मानसिक और सामाजिक दिक्कतें आती थीं. प्रभात रंजन ने इसी असमानता और दबाव को अपनी किताब का मूल आधार बनाया. उन्होंने एक व्यक्तिगत किस्सा सुनाया, जब वह अपने एक दोस्त के साथ विदेश में एक पार्टी में शामिल थे. उस अनुभव ने उन्हें गहराई से यह अहसास कराया कि अंग्रेजी भाषा किस तरह लोगों के बीच भेदभाव का माध्यम बन सकती है और सामाजिक दूरी पैदा कर सकती है. इसी अनुभव ने उन्हें प्रेरित किया कि वे इस पूरे विषय को हिंदी भाषा में लिखें, ताकि उन सभी छात्रों की भावनाएं व्यक्त हो सकें, जिन्हें भाषा के आधार पर हाशिए पर महसूस कराया जाता है.
चुप रहने की संस्कृति से जन्मी 'अबोलि की डायरी': जुवी शर्मा
कवयित्री और लेखिका जुवी शर्मा ने साहित्य आजतक 2025 में अपनी भावनात्मक कृति 'अबोलि की डायरी' के बारे में बताया और स्पष्ट किया कि यह डायरी शत-प्रतिशत सच्ची घटनाओं पर आधारित है. उन्होंने बताया कि 'अबोलि' का अर्थ है अबोल (चुप), और यह उस फूल का भी नाम है जो घाव भरने के काम आता है. जुवी ने सोचा था कि शायद उनकी इस निजी कृति को कोई नहीं पढ़ेगा, इसलिए उन्होंने इसका नाम 'जुवी की डायरी' न रखकर 'अबोलि' रखा, उन्होंने एक परेशानी वाला अनुभव भी साझा किया कि कोरोना काल में इसे लिखते समय यह डायरी एक बार डिलीट हो गई थी, जिससे उन्हें बहुत दुख हुआ था.
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जुवी शर्मा ने भारतीय समाज में हिंदू लड़कियों द्वारा अत्याचार सहने की प्रवृत्ति पर बात की. उन्होंने कहा कि भारतीय परिवार के संस्कारों के कारण लड़कियां परिवार से विद्रोह नहीं कर पातीं. उन्होंने बताया कि 'चुप रहना, चुप रहना' इसी चुप रहने की संस्कृति से 'अबोलि' का जन्म होता है, क्योंकि हमारे समाज में बेटियों को मायके हो या ससुराल, हर जगह चुप रहना ही सिखाया जाता है. जुवी ने कहा कि इस किताब को लिखने के बाद उन्हें संतुष्टि मिली.
जुवी शर्मा ने खेद व्यक्त किया कि हमारे समाज में पुरुषों को पश्चाताप करने के लिए नहीं लिखा गया है, बल्कि हमेशा स्त्रियों को ही झुकना पड़ता है. उन्होंने कहा कि इस किताब के आने के बाद जितनी भी लड़कियां उनसे मिलीं, उन्हें लगा कि यह किताब उनकी अपनी कहानी है.
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