साहित्य के सितारों का महाकुंभ, साहित्य आजतक 2025 का आगाज शुक्रवार को हो चुका है. साहित्य के रंगों से सजे इस कार्यक्रम में पहले ही दिन भारतीय सिनेमा के उस आइकॉन की दास्तान पेश की गई, जो आगे चलकर तमाम फिल्ममेकर्स के लिए इंस्पिरेशन बना— गुरुदत्त.
देश की इकलौती महिला दास्तानगो, फौजिया दास्तानगो ने गुरुदत्त की जिंदगी को दिलचस्प किस्सों में पेश किया. इस दास्तान-ए-गुरुदत्त में उनका साथ दिया सिंगर लतिका जैन ने. फौजिया ने गुरुदत्त के किस्से पेश किए, तो लतिका ने गुरुदत्त की फिल्मों के गीत गाकर समां बांध दिया.
रील पर फिल्म नहीं, शायरी उतारने वाला फिल्मसाज
दास्तान-ए-गुरुदत्त की शुरुआत करते हुए फौजिया ने कहा, 'डेढ़ घंटे में गुरुदत्त की बात करना, समंदर को कूजे में समेटना है.' उन्होंने आगे कहा कि गुरुदत्त रील पर फिल्म ही नहीं उतारते थे, बल्कि उसपर शायरी लिखते थे.
फौजिया ने पहला किस्सा गुरुदत्त की पैदाईश और उनके नाम का सुनाया. अपना भाग्य दिखाने गईं उनकी मां को एक ज्योतिष ने कहा था, 'तुम्हारे घर एक ऐसे बेटे का जन्म होगा जिसकी पहचान सरहदों में कैद ना हो सकेगी. दुनिया उसे उसके नाम से नहीं उसके हुनर से पहचानेगी.'
जब उनके पेरेंट्स काम की तलाश में कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंचे तो गुरुदत्त को वो पहले गुरु मिले, जिन्होंने उनका परिचय सिनेमा से करवाया था. ये बी बी बेनेगल थे, जो गुरुदत्त के रिश्ते के मामा थे. गुरुदत्त उनके कैमरे से खेलते रहते और कहते एक दिन मैं भी फिल्म बनाऊंगा. मगर घर के हालात ऐसे थे कि नौकरी करना जरूरी था. मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने पहले टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की. फिर उन्होंने हिंदुस्तान यूनीलीवर में भी कुछ दिन नौकरी की. बी बी बेनेगल की एक पेंटिंग ने ही गुरुदत्त को अपने सपने, सिनेमा की तरफ मोड़ा.
जब देव आनंद और गुरुदत्त की शर्ट हो गई एक्सचेंज
फौजिया ने इसके बाद गुरुदत्त के इंडिया कल्चरल सेंटर आने और फिर मुंबई पहुंचने का किस्सा सुनाया. फिल्म के सेट पर नौकरी कर रहे गुरुदत्त और उस फिल्म के हीरो देव आनंद की शर्ट कैसे बदली. कैसे ये कन्फ्यूजन एक वादे में बदला, जिसने गुरुदत्त और देव आनंद की यादगार डायरेक्टर-एक्टर जोड़ी दी. ये सारे किस्से फौजिया ने बहुत खूब्स्सूरत अंदाज में सुनाए. इनमें गुरुदत्त और गीता रॉय की पहली मुलाकात और उनके प्यार का किस्सा भी आया.
जिक्र बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी का भी हुआ जिन्हें गुरुदत्त ने जॉनी वॉकर बना दिया था. सिलसिले में किस्सा वहीदा रहमान से गुरुदत्त की पहली मुलाकात का भी निकला. और फिर बात उस दौर तक भी पहुंची जब गुरुदत्त की जिंदगी एक प्रेम-त्रिकोण की तरह बन गई. फिर गम की वो शाम, जिसे सिनेमा गुरुदत्त का आइकॉनिक काम मानता है. मगर यही शाम उनके जीवन के सूरज को भी निगल गई.
इस दास्तान-ए-गुरुदत्त को सिंगर लतिका जैन ने अपनी खूबसूरत आवाज से एक और रंग दिया. उन्होंने गुरुदत्त की फिल्मों से कई आइकॉनिक गाने सुनाए. इनमें 'तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले', 'सुनो गजर क्या गाए' और 'ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां' जैसे पॉपुलर गाने शामिल थे. इस दास्तान-ए-गुरुदत्त के अंत में श्रोता थोड़े से उदास जरूर हुए, क्योंकि गुरुदत्त के किस्से का अंत ही ऐसा था. मगर उनके चेहरे पर एक मुस्कराहट भी थी... ये सिनेमा के एक आइकॉन की जिंदगी को, किस्सों में सुनने के बेहतरीन एक्सपीरियंस की गवाही थी.
aajtak.in